अब जब कांग्रेस ने इस विधेयक का समर्थन कर दिया है, तो इसका संसद से पास होना भी आसान हो गया है। लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा मे सरकार को कांग्रेस के समर्थन की जरूरत है और इसमें दो मत नहीं कि कुछ झिझक या संशोधन के साथ कांग्रेस इसके पक्ष मे ही जाएगी। संशोधन भी कुछ ऐसा पेश करेगी, जिससे यह कानून मजबूत होता हो और इससे प्रस्तावित कानून की मूल भावना का उल्लंघन नहीं होता हो।

कांग्रेस पर यह आरोप लगता रहा है और वह गलत भी नहीं है कि वह मुसलमानों का सांप्रदायिक तुष्टीकरण करती रही है। मुस्लिम समुदाय की राजनीति कुछ ऐसी है कि उस पर इसके धार्मिक नेताओं का कब्जा है और वे धार्मिक नेता राजनीति के साथ धर्म का घालमेल करते रहते हैं। सांप्रदायिकता आखिर है क्या? यह राजनीति के साथ धर्म का घालमेल ही तो है। इस तरह का घालमेल कर वह सत्ता पर दबाव बनाते हैं और वह सफल भी हो जाते हैं। इससे गैर मुस्लिम तबकों मे संदेश जाता है कि सरकार उनके दबाव में आकर उनके सांप्रदायिक आग्रहो के कारण झुक जाती है। इसका इस्तेमाल कर ही भारतीय जनता पार्टी अपनी राजनीति की रोटियां सेंकती है और मुस्लिम तुष्टीकरण का कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए हिन्दुओं के बीच अपना जनाधार मजबूत करती रही है।

पर मुस्लिम धार्मिक नेताओ को भाजपा और संघ के हिन्दुओं पर बढ़ते जनाधार से कोई मतलब नहीं रहता। बस उन्हें उम्मीद रहती है कि कांग्रेस, लेफ्ट और अन्य सेक्युलर पार्टियां भाजपा और संघ से उनकी रक्षा करते रहें। लेकिन राजनीति को प्रभावित करने वाले अपने सांप्रदायिक आग्रहों को त्यागने के लिए मुस्लिम धार्मिक नेता तैयार नहीं होते।

तीन तलाक मामले में भी वह यही कर रहे हैं। एक झटके में तीन तलाव को वाजिब ठहराने के लिए वे तरह तरह के कुतर्क देते हैं और अपना मजाक खुद उड़वाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह साबित करने में वे विफल रहे कि एक झटके मे तीन तलाक की प्रथा कुरानसम्मत है। उलटा यह साबित हुआ कि तीन तलाक की कोई व्यवस्था न तो कुरान मे है और न ही मोहम्मद साहब ने इसकी कभी कोई पैरवी की। उल्टे इसे इसे इस्लाम मे पाप माना गया है। इस्लाम के पहले से ही कुछ अरबी कबीलों मे तीन तलाक की यह प्रथा थी, जिसे भारत के मुसलमान भी अपना रहे थे। शायद कथित मुस्लिम विद्वान आम मुसलमानों को इसे लेकर गुमराह भी कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट की पारदर्शी सुनवाई के दौरान यह साफ हो गया िकइस प्रकार के तीन तलाक का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध ठहरा दिया। उसके बाद इन मुस्लिम धार्मिक नेताओं को इस तरह की तलाक के खिलाफ माहौल बनाना चाहिए था और इस तरह के प्रैक्टिस की सामाजिक मान्यता को समाप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए थी। पर उन्होने वैसा कुछ नहीं किया और उलटे सुप्रीम कोर्ट को उसी प्रकार चुनौती देने की मुद्रा मे दिखाई पड़े, जिस प्रकार की चुनौती संघ परिवार के लोग दिवाली के पहले दिल्ली मे पटाखेबाजी पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दे रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की तलाक को रोकने के लिए कानून बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन सरकार को लगा कि कानून की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक झटके में दी गई तीन तलाक को समाप्त कर दिया गया है। सरकार के एक मंत्री ने कहा भी था कि इस तरह की तीन तलाक देकर महिला को यदि तंग किया जाता है, तो घरेलू हिंसा कानून के तहत उनका बचाव किया जाएगा, लेकिन घरेलू हिंसा कानून इस तरह की तलाक की चुनौतियो के सामने बौनी साबित हुई और फिर सरकार को यह कड़ा कानून बनाना पड़ा।

मुस्लिम समाज ने यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का निरादर कर तलाक देने वाले लोगों पर कोई प्रभावी लगाम लगाई होती, तो एक अलग से कानून बनाने की जरूरत ही नहीं होती, लेकिन समाज से उस तरह का स्वर नहीं उभरा और एक झटके में तीन तलाक देने की घटनाएं जारी रहीं। कानून बनने के दौरान कुछ मुस्लिम धार्मिक और राजनैतिक नेता प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं, वे भी बहुत ही दोषपूर्ण है। वे एक से एक कुतर्क दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि इस कानून से उलटा महिलाओं का ही नुकसान हो जाएगा, क्योकि तलाक देने वाला उसका पति जेल चला जाएगा। जेल से बाहर रहकर ही वह उस महिला का कैसे कल्याण कर सकता है, जिसे उसने तलाक देकर घर से बाहर कर दिया है, यह मुस्लिम नेता नहीं बताते हैं।

कांग्रेस पर भी मुस्लिम नेताओं की राय अपनाने का भारी दबाव रहा होगा, क्योंकि पार्टी में वैसे अनेक मुस्लिम नेता हैं, जो उस तरह की राय रखते हैं। वे राहुल गांधी पर जरूर दबाव डाल रहे होंगे और मुस्लिम मतों के खराब हो जाने का वास्ता भी दे रहे होंगे, लेकिन काग्रेस के लिए यह अच्छी बात है कि राहुल उन दबावों मे नहीं आए और आखिरकार उन्होंने वही फैसला लिया, जो एक प्रगतिशील नेता को लेना चाहिए था।

तीन तलाक विरोधी कानून के पक्ष में फैसला लेकर राहुल गांधी ने राजनैतिक परिपक्वता का परिचय दिया है। यह उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए तो अच्छा है ही, यह देश के लिए भी अच्छा है, क्योंकि यदि कांग्रेस मुस्लिम कठमुल्लों के दबाव मे आ जाती, तो फिर उसका और पतन होना सुनिश्चित था। कांग्रेस का पतन देश के लिए अशुभ ही होता। (संवाद)