बिल ने जमाकर्ताओं में भय पैदा कर दिया है कि सरकार बैंको को बंद करेगी और बैंकों में जमा पैसे बैंकों को बचाने के लिए रखे गए बेल-इन प्रावधान की वजह से वापस नहीं किए जाएंगे।
पिछले मार्च, 2016 में वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अजय त्यागी की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई गई थी जिसने इस बिल का मसविदा तैयार किया। इस मसविदे को सुझावों के बाद कैबिनेट ने संसद में पेश किए जाने के लिए स्वीकृत कर दिया।
बिल में फाइनांसियल रिजोल्यूशन कारपोरेशन नामक एक प्राधिकरण बनाने का प्रावधान है जो बैंको, बीमा तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं के बंद होने के मामले की देखरेख करेगा।
इस प्राधिकरण को इन मामलों में रिजर्व बैंक आफ इंडिया और अन्य संस्थाओं से भी ज्यादा अधिकार रहेगा। वर्तमान में मौजूद डिपोजिट इंश्योरेंस कारपोरेशन बैंक के बंद होने की स्थिति में प्रति जमाकर्ता को एक लाख रूपए वापस करने की गारंटी देता है। यह डिपोजिट फाइनांस कारपोरेशन को बंद कर दिया जाएगा और इसकी जगह लेने वाली फाइनांसियल रिजोल्यूशन कारपोरेशन जमाकर्ता को वापस की जाने वाली रकम के बारे में फैसला करेगा।
जहां तक एक लाख रूपए की वर्तमान सीमा का सवाल है वह भी पुराना है और 1993 में तय किया गया था। इसका अब कोई मतलब नहीं रह गया है। अभी 2125 कामर्शियल बैंक तथा कोआपरेटिव बैंक डिपोजिट इंश्योरेंस कारपोरेशन की बीमा-संुरक्षा में है। इसके तहत 103 लाख करोड़ रूपए की जमाराशि बीमा की हुई है।
भारत जैसे देश में बैंको में जमा पूरी राशि को बीमा में रखने की जरूरत है ताकि आम आदमी अपनी मेहनत से की गई बचत के बारे में आश्वस्त रहे और उनकी जमा राशि को कोई खतरा न हो।
ऐसा करने के बदले एफआरडीआई बिल एक लाख रूपए की जमाराशि की वापसी की गारंटी भी हटा रहा है। सरकार को इस बारे में स्पष्टीकरण देनी चाहिए। इसके अलावा फाइनांसियल रिजोल्यूशन कारपोरेशन को किसी भी बैंक को बंद करने का अधिकार होगा। एफआरसी को यह अधिकार होगा कि वह बंद हो रहे बैंक को बेल-इन (जमानत) के लिए जमाकर्ताओं की रकम इस्तेमाल करने की इजाजत दे दे। यह प्रावधान लोगों के मन में संदेह और भय पैदा कर रहा है।
अंाकड़ों के मुताबिक भारत में 1913 से 1960 के बीच 160 निजी बैंक बंद हुए और जमाकर्ताओं ने अपनी रकम गंवा दी।
आल इंडिया बैंकिंग इम्पलाईज एसोसिएशन मामले को संसद तक ले गई और 1960 में बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट बना जिसमें बंद होने के कगार पर खड़े हो गए बैंकोें को उन्हें दूसरे बैंकों के साथ विलय करने का प्रावधान है। पिछले 55 वर्षो में कई बैंकों ने बंद होने की स्थिति का सामना किया, लेकिन उन्हें दूसरे बैंक के साथ विलय कर दिया गया और किसी भी बैंक को बंद नहीं किया गया। किसी भी जमाकर्ता को अपनी रकम गंवानी नहीं पड़ी।
पिछले 50 वर्षो में दूसरे बैंकों में विलय किए बैंकों में बैंक आफ बिहार बेलगाम बैंक, लरूमी कामर्शियता बैंक , मिरज स्टेट बैंक, हिंदुस्तान कामर्शियल बैंक ट्रेडर्स बैंक, बैंक आफ तमिलनाडु, आफ तंजौर, परूर सेंट्ल बैंक, पूर्र्बांचल बैंक, बैंक आफ कराड, काशीनाथ सेठ बैंक, बनारस स्टेट बैंक, नेदुनगाडी बैंक, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक तथा यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक शामिल है।
ये सारे बैंक बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत सुरक्षित थे और उन्हें दूसरे बैंकों के साथ विलय कर दिया गया। इसलिए बैंकों के फेल होने से जमाकर्ताओं का एक भी पैसा नहीं गया।
बड़ी कारपोरेट कंपनियों और दूसरे बकायदारों को दिए गए खराब कर्जो को वापस लेने के कड़े कदम उठाने तथा बैंकों को मजबूत करने के बदले सरकार ने इटरनेशनल मानिटरी फंड (आईएमएफ) को खुश करना चाहती है और फाइनांसियल स्टैबिलिटी बोर्ड के दबाब में एफआरडीआई बिल ला रही है। इस बिल की जरूरत उन देशों को है जहां बैंक निजी हाथों में हैं और बैंकों के नियम उदार बनाए गए हैं।
भारत में बैंकों को कड़े नियमों से बंाधा गया है और ज्यादातर बैक सार्वजनिक क्षेत्र में हैं और उन्हें सरकार की संप्रभु गारंटी मिली हुई है।
इसलिए बैंकों को बंद करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है और इसलिए बेल-इन की कोई जरूरत नहीं है।
इसलिए भारतीय संदर्भ में एफआरडीआई की कोई आवश्यकता नहीं है और इसे गलत समय में लाया जा रहा है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और पूरे बिल को अभी रोक लेना चाहिए तथा लोगों को यह आश्वासन देना चाहिए कि बैंकों में जमा उनका पैसा सुरक्षित है और सरकार ने उसे गारंटी दे रखी है। सरकार को खराब कर्ज वापस लाने तथा बैंकों को टिकाऊ तथा गतिशील बनाए रखने के लिए मजबूत कदम उठाने चाहिए।
यह एक विडंबना है कि सरकार बैंकों को निजीकरण की ओर धकेल रही है और जोखिम बढ़ा रही है इसके बाद वह बेल-इन की चर्चा कर रही है।
सरकार को सभी बैंकों को सार्वजनिक क्षेत्र में लाना चाहिए और लोगों की सभी जमा राशि की गारंटी देनी चाहिए।
यह अचरज की बात है कि सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देती है, लेकिन यह तभी संभव है जब बैंक अर्थव्यवस्था में जरूरतमंद लोगों को कर्ज दे। इसके लिए बैंकों को ज्यादा से ज्यादा संसाधन तथा जमा राशि मिलने की जरूरत है। इसके बदले सरकार एफआरडीआई बिल ला रही है जिसमें बेल-इन का प्रावधान है। यह लोगों में भय पैदा करेगा और लोग बैंकों से दूर भागेंगे तथा जिसके परिणाम स्वरूप बैंक टिकाऊ नहीं रह जाएंगे।
आल इंडिया बैंक इम्लाईज एसोसियशन संयुक्त संसदीय समिति के सामने उपस्थित हुआ तो उसने इस बिल को खारिज करने का आग्रह किया। अगर सरकार इस बिल पर आगे बढ़ती है तो एसोसिशन इसके खिलाफ हड़ताल की कारवाई करने पर विचार कर रही है। (संवाद)
बैंक कर्मचारी एसोसिएशन विरोध करेंगे एफआरडीआई बिल का
जमाकर्ताओं के लिए खतरनाक है बिल
सी एच वेंकटचलम - 2018-01-02 10:06
सरकार ने एफआरडीआई बिल (फाइनांसियल रिजोल्यूशन एंड डिपोजिट इंश्योरेंस बिल) को संसद के पिछले सत्र में पेश किया था। फिलहाल इस पर संसदीय संयुक्त समिति विचार कर रहा है।