फिल्म से राजनीति में प्रवेश करने वाले वे पहले मेगास्टार नहीं हैं। उनसे पहले एमजी रामचन्द्रन, जे जयललिता और कैप्टन विजयकांत जैसे सुपर स्टार राजनीति में प्रवेश कर चुके है। सच तो यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुरै और डीएमके के करुणानिधि भी फिल्मी दुनिया में सक्रिय हुआ करते थे।

तमिलनाडु की राजनीति व्यक्तिवादी रही है। वहा के लोगों में व्यक्तिपूजा को लेकर जबर्दस्त लगाव है। लेकिन इस समय तमिल राजनीति में करिश्माई व्यक्तित्व का अभाव हो गया है। जयललिता की मौत और करुणानिधि की अधिक उम्र के कारण वहां एक शून्य तैयार हो गया है।

लेकिन इसके बावजूद रजनीकांत के लिए प्रदेश की राजनीति बहुत माकूल नहीं है। उन्हें भी इसके बारे में यह पता है। यही कारण है कि उन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि वे राजनीति में प्रवेश करने में इसलिए झिझक रहे हैं, क्योंकि वे इसमें प्रवेश करने के नतीजे जानते हैं। उन्होंने कहा कि वे राजनीति को समझते हैं और पिछले दो दशकों से इस पर उनकी नजर है। उन्हें इसकी गहरियों के बारे में पता है। इसलिए वे चाहते हैं यदि वे इसमें प्रवेश करें, तो जीतने के लिए ही प्रवेश करें।

सवाल उठता है कि क्या रजनीकांत राजनीति में सफल हो पाएंगे। कुछ लोग मानते हैं कि वे क्रांति करेंगे और चुनाव जीतकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन जाएंगे। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उनकी गति भी वैसी ही होगी, जैसी शिवाजी गणेशन, अमिताभ बच्चन और रजनीकांत की हुई। उनके लिए सही समय 1996 ही था। उस समय वे युवा थे और अपनी पार्टी बनाकर चुनाव जीत सकते थे। उनकी सफलता पर संदेह करने वाले यह भी कह रहे है कि वे राजनीति में नौसिखिए हैं और अभी तक वे अपने को जांच भी नहीं पाए हैं।

अतीत में कितनी बार उन्होंने राजनीति में प्रवेश का संकेत किया, इसकी गिनती करना भी मुश्किल है। लेकिन अपने प्रशंसकों दबाव में उन्हें यह फैसला अब करना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी उनपर राजनीति में आने के लिए दबाव था। भारतीय जनता पार्टी रजनीकांत की पूछ पकड़कर तमिलनाडु की राजनीति में अपनी पैठ बढ़ानी चाहती है।

उनका राजनैतिक दर्शन क्या है? इसे लेकर भी वे बहुत स्पष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि वे आध्यात्मिक राजनीति करेंगे, जिसमें सांप्रदायवाद और जातिवाद को जगह नहीं होगी। तमिलनाडु में धर्म विरोधी द्रविड़ आंदोलन का प्रभाव रहा है। इस माहौल में आध्यात्मिक राजनीति बात कर वे भारतीय जनता पार्टी की ओर अपने झुकाव का शायद इशारा कर रहे हैं।

रजनी प्रदेश की सभी 234 विधानसभा सीटों पर पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। इससे लगता तो यही है कि वे भाजपा से अलग राह तलाश रहे हैं, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी जबकि लोकसभा का चुनाव विधानसभा के चुनाव से पहले होना है।

कुल मिलाकर स्थिति स्पष्ट नहीं है और अभी यह तय करना मुश्किल है कि उनकी राजनीति कौन सा रूप लेती है और वे कितने सफल होते है। (संवाद)