कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले हेगडे अपने गृह राज्य में एक समारोह में भाग ले रहे थे जब उन्होंने लोगों से अपील की,‘‘अपने को गर्व से मुसलमान, ईसाई, लिंगायत, ब्राह्मण तथा हिंदु बताइये। अपने माता-पिता के खून से अनजान लोग अपने को सेकुलर बताते हैं, उनकी कोई पहचान नहीं है। उन्हें अपने माता-पिता के बारे में मालूम नहीं है, लेकिन वे अपने को बुद्धिजीवी कहते हैं।
यहां चैंकाने वाली एक और जानकारी हेगडे के बारे में है कि वह मोदी सरकार के एक ऐसे मंत्री हैं जो आधिकारिक तौर पर ‘नई सोच’ (इनोवेटिव थिंकिंग) विभाग के प्रमुख हैं। गनीमत है कि वह इस विभाग के स्वतंत्र प्रभारी नहीं हैं, अन्यथा सभी भारतीयों को उनकी नई सोच का ‘कै्रश कोर्स’ उस अवधि के भीतर करना होता जैसी आधार के मामले में तय की गई है।
कौशल विकास तथा उद्यमिता मंत्रालय दावा करता है कि वह देश में कौशल विकास के प्रयासों में तालमेल, कुशल मानवशक्ति की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को दूर करने, व्यावसायिक तथा तकनीकी ढ़ांचा बनाने, नए कौशल का निर्माण और न केवल अभी की नौकरियों के बारे में बल्कि नई नौकरियों के बारे में नई सोच पैदा करने का काम देखता है।
संविधान सबंधी उनका बयान बिना सोचे-समझे वाण चलाने जैसा था। संविधान में संशोधन का काम न तो कौशल विकास के तहत आता है और न ही उद्यमिता के। यह जरूर है कि इसका अर्थ अलगाव दूर करना है, लेकिन हेगड़े के इस बयान का मानवशक्ति की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई पाटने से कोई ताल्लुक नहीं है। किसी साधारण आदमी को भी मालूम है कि संविधान का संशोधन उनके लिए भी कितना कठिन काम है जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। वह अपने दिल की बात कह सकते हैं, लेकिन उनके कहने भर से संविधान में राई रत्ती भर छेड़छाड़ भी संभव नहीं हैं।
कौशल विकास मंत्री को यह समझने में थोड़ा समय लगा कि उनकी कारस्तानी से क्या नुकसान हुआ है। विपक्ष उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा था और जोर दे रहा था कि उन्हें बर्खास्त करने से कम में काम नहीं चलेगा। हेगडे को अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांगने को मजबूर होना पड़ा और कहना पड़ा कि वह देश, संविधान और संविधान के निर्माता बी आर अंाबेडकर का अत्यंत सम्मान करते हैं। ‘‘एक नागरिक के रूप में संविधान के उल्लंघन की बात सोच नहीं सकता,’’ उन्होंने कहा।
लेकिन उन्होंने विपक्ष की मांग पर माफी मांगने का काम देर से किया। पहले उन्होंने इससे आसानी से निकल जाने की कोशिश की। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को हस्तक्षेप करना पड़ा और कहना पड़ा कि डा बी आर अंबेडकर के प्रति किसी के द्वारा असम्मान प्रकट करने का सवाल ही नहीं पैदा होता और किसी को आहत करने वाले बयान के लिए माफी मंागने से कोई छोटा नहीे हो जाता।
इसके पहले हेगडे को संसद के भीतर तथा इसके बाहर अपने ही सहयोगियों के खंडन की शर्मिदंगी उठानी पड़ी। ‘‘सरकार हेगडे की ओर से व्यक्त गए विचारों का समर्थन नहीं करती,’’ केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने राज्यसभा में कहा। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामन ने सदन से बाहर संवाददाताओं से कहा,‘‘सरकार हेगडे के विचारों से सहमत नहीं है।’’
हेगडे अपने पैतृक संगठन आरएसएस, जिसपर भड़काने वाले बयान देने का दोष अक्सर लगता रहता है, से भी ज्यादा कट्टर दिखाई दिए। पंाच बार के संासद हेगडे को संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता कि वह क्षणिक आवेग में यह बोल गए। यह साफ है कि उनका बयान एक सोची समझी कोशिश थी।
हेगडे जैसे लोगों के आचरण से ही मोदी सरकार बदनाम होती है। ऐसे भाजपा और हिंदुत्व-समर्थक नेताओं की कमी नहीं है जो गैर-जिम्मेदाराना बयान देते रहते हैं और प्रधानमंत्री के लिए शर्मिदंगी पैदा करते हैं। मोदी टेक्नोलाॅजी से लोगों को रोजगार और विकास के लिए नए-नए तरीकों की बात करते हैं, वहीं ये तत्व देश को अंधकार के उस युग में ले जाना चाहते हैं जो उनके दिमाग में अभी भी मौजूद है। उनकी यह सोच इस युग के स्वभाव से मेल नहीं खाती जहां टेक्नोलाॅजी गोली की रफ्तार से टेªन चलाती है और रोबोट व्यस्त सड़कों पर कार चलाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह गीता के उस महान दर्शन के खिलाफ हैं जो हेगडे तथा साक्षी जैसे लोगों की सोच के विपरीत धर्म तथा जाति की ग्रंथि पाले बगैर मन के अच्छे प्रबंधन और बेहतर जीवन के कुछ अत्याधुनिक उपाय बताता है।
बिना समय गंवाए हेगडे के बयान से अपने से अलग करने का मतलब है कि मोदी सरकार ने सबक सीखना शुरू कर दिया है लेकिन बेहतर अंक पाने के लिए उसे मेहनत करनी पडेगी। (संवाद)
अनंत हेगड़े की बड़बड़ाहट
हेगड़े की बदजुबानी से मोदी सरकार को सबक
के रविंद्रन - 2018-01-03 12:54
केन्द्रीय कौशल विकास तथा उद्यमिता मंत्री अनंत कुमार हेगडे की एक अपील ने देश में हंगामा खड़ा कर दिया। उन्होंने देश के मंत्री होने के नाते अपने को सेकुलर बताकर गौरवान्वित होने के बजाय जाति तथा धर्म की पहचान को गाढ़ा करने के इरादे से कह डाला कि ‘सेकुलर’ लोग बिना ‘‘मां-बाप’’ के हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि सेकुलर शब्द हटाने के लिए वह संविधान को भी बदल डालेंगे। ये और बात है कि हेगडे के व्यवहार से मंत्रिमंडलीय उनके सहयोगियों समेत सभी को झटका लगा और मंत्रियों ने उनके बयान से खुद और सरकार को अलग रखने में कोई देरी नहीं की।