इसके अलावा यह भी सच है कि गुजरात के मुसलमान ज्यादा संगठित भी है। मुसलमानों के बीच पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) तथा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया जैसे संगठन है जो मुसलमानों के सवाल आक्रामक ढंग से उठाते रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस को हिंदुत्व वाली लाइन को अधिक दूर तक ले जाना संभव नहीं है।

भाजपा के लिए हिंदुत्व के अलावा कोई सहारा नहीं है। देश के विकसित राज्यों में से एक कर्नाटक में भाजपा के लिए गुजरात माडल को बेचना संभव नहीं है। राज्य में गुजरात की तरह वहां व्यापार और उधोग विकसित हो रहे हैं, वह भी बिना किसी शोर-शराबे के। कंाग्रेस इसे आराम से भुना सकती है। वहां भाजपा बिजली है या नहीं और सड़क या सिंचाई जैसे मुद्दे के आधार पर कोई चुनौती नहीं खड़ी कर सकती है।

कर्नाटक के विकास की कहानी दक्षिण के चार राज्यों के विकास की कहानी से जुड़ी हुई है और समाजशात्रियों ने इसे विभिन्न तरीके से विश्लेषित किया है। समाजशात्रियों का मानना है कि दक्षिण के राज्यों के विकास के पीछे की एक खास वजह यही रही है कि इन राज्यों में पिछड़ी जाति के लोग बड़ी संख्या में उद्योग में आए और शिक्षा आदि में भी उनकी काफी भागीदारी रही। उनके अनुसार इससे समाज की जो ऊर्जा बाहर आई उसने इन राज्यों को विकास के मामले में उत्तर के राज्यों से मीलों आगे कर दिया। पहले के उद्योग में आगे दक्षिण के राज्यों ने वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था का लाभ भी जमकर उठाया है। कर्नाटक तो आईटी क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा है। ऐसे में भाजपा के लिए विकास का मुद्दा उठाना संभव नहीं है।

यही वजह है कि उसने चुनाव प्रचार की शुरूआत में ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उतारा, क्योंकि भाजपा के बाकी नेताओं को एक कट्टर हिंदु नेता के रूप में रातों-रात उतारने से वह संदेश नहीं दिया जा सकता था जो योगी आदित्यनाथ जैसे साधु से राजनेता बने व्यक्ति को मैदान में उतारने से दिया जा सकता है।

क्या सिद्दारम्मैया हिंदुत्व की चुनौती का सामना करने की सांगठनिक ताकत रखते हैं? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है क्योंकि राज्य में राम सेने से लेकर बजरंग दल तथा विश्व हिंदु परिषद जैसे संगठनों का बड़ा जाल है। ये संगठन लव जिहाद से लेकर पब पार्टियों तथा वैलेंटाइन डे के विरोध जैसे कार्यक्रम नियमित रूप से चलाते रहे हैं। ये संगठन कर्नाटक के तटीय इलाकों में चल रहे हिंदु-मुसलिम तनाव को भी हवा दे रहे हैं। राज्य में आरएसएस की शाखाओं का भी काफी विस्तार हुआ है। यह सब भाजपा को हिंदुत्व से चिपके रहने में मदद करता है। देश में होने वाले चुनावों के लिए महत्वपूर्ण समझा जाने वाला भ्रष्टाचार का मुद्दा कर्नाटक के चुनावों से फिलहाल गायब है। ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा नहीं उठेगा। भाजपा उसे किसी न किसी तरह उठाएगी। लेकिन भाजपा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि मुख्यमंत्री का इसका चेहरा एस येदुरप्पा को भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री पद ही नहीं छोड़ना पड़ा था, बल्कि पार्टी से बाहर जाने को बाध्य होना पड़ा था। भाजपा इस मुद्दे को वह मीडिया तथा दूसरे रास्तों से उठाएगी।

कर्नाटक में राहुल गांधी का प्रचार अभियान शुरू नहीं हुआ हुआ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के नरम हिंदुत्व को वह किस तरह पेश करते हैं। लेकिन इतना तय है कि भाजपा का सामना वह गुजरात से ज्यादा मजबूत तरीके से करेंगे क्योंकि कंाग्रेस के लिए कर्नाटक को बचाना बेहद जरूरी है। पार्टी के अध्यक्ष के रूप में भी उन्हें यह साबित करना होगा कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव जीत सकती है। उनके लिए गुजरात के समीकरण आसान भी है। सिद्धारम्मैया ने जो सामाजिक समीकरण विकसित किए हैं उसका मुख्य आधार ओबीसी, दलित तथा मुसलमान तीनों मिलाकर एक जीतने लायक समीकरण बनाते हैं। इस समीकरण में दरार लाने की क्षमता एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (एस) में है। उन्हें किसान जाति वोकालिग्गा का समर्थन है और उनकी वजह से कांग्रेस और भाजपा दोनों को परेशानी है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से उनके बेटे कुमारस्वामी के तौर-तरीकों से देवेगौड़ा के जनाधार में कमी आई है। हालांकि वह अभी भी किंग-मेकर बनने का सपना देख रहे हैं।

पिछले कुछ महीनों में, खासकर गुजरात चुनावों के समय से, देश की राजनीतिक बहस में काफी बदलाव आया है। एक तो, राहुल गंाधी ने जीएसटी तथा नोटबंदी के साथ बेरोजगारी को भी एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। दूसरी तरफ, जिग्नेश मेवानी जैसे नेताओं के मैदान में आने के बाद भाजपा के साथ जुड़े दलित नेताओं का प्रभाव काफी कम हो गया है। भाजपा इस स्थिति में नहीं है कि उन्हें दिखाकर कर्नाटक के दलितों को लुभा सके।

कुल मिलाकर भाजपा के सामने धार्मिक ध्रुवीकरण ही एक रास्ता है और कंाग्रेस के सामने इसे रोकने की चुनौती है। अगर गहराई से देखें तो हाल में हर चुनाव राजनीतिक तौर पर देश के विमर्श को पीछे ले जाने वाले हैं। धार्मिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए कंाग्रेस नरम हिंदुत्व के बदले आर्थिक सामाजिक मुद्दों का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन वह ऐसा करने से डर रही है। यह एक बेहद खराब स्थिति है। दूसरी पार्टियां सिकुड़ रही हैं और इस चुनौती का सामना करना उनके लिए संभव नहीं है। (संवाद)