सब्सिडी खत्म किए जाने के फैसले का चैतरफा समर्थन किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के नेतागण भी खुश हैं, क्योंकि उनका कहना है कि सब्सिडी हाजियों को नहीं बल्कि एअर इंडिया के खाते में जा रही थी, क्योंकि सब्सिडी के अर्थशास्त्र के तहत हाजी सिर्फ एअर इंडिया से ही यात्रा कर सकते थे और एअर इंडिया उनकी हजयात्रा के लिए किराया बहुत बढ़ा दिया करता था। गौरतलब हो कि सब्सिडी का करीबी 90 फीसदी हिस्सा उन्हें हवाई यात्रा के खर्च को कम करने के लिए ही दिया जाता था।

पर यह आधा सच है। पूरा सच यह है कि भारत के एअर इंडिया के साथ साथ सउदी अरब के सरकारी एअरलाइंस का इस्तेमाल भी उनकी हवाई यात्रा के लिए होता था और यात्रा कराने की आय का एक हिस्सा सउदी को भी जाता होगा। मुस्लिम नेताओं की मानें तो सब्सिडाइज्ट रेट से एअर इंडिया का मिला टिकट अन्य प्रतिस्पर्धी एअरलाइंस के टिकटों से महंगा पड़ता था। लेकिन क्या यह वाकई सच है?

दरअसल हज यात्रियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। इस बार पौने दो लाख लोग भारत से मक्का की हज यात्रा पर जा रहे हैं। पिछले कई साल से लाख से ज्यादा लोग वहां हज के लिए जा रहे हैं। जब ज्यादा लोग यात्रा करें, तो अर्थशास्त्र के सामान्य सिद्ांत के अनुसार किराया कम हो जाना चाहिए, क्योंकि सीटें भर भर कर जहाज उड़ते हैं। पर हज यात्रा के मामले मे अर्थशास्त्र का यह सिद्धांत फेल हो जाता है। उसका कारण यह है कि हज पर जाने के और वहां से आने के समय के बीच लंबा अंतराल होता है। यदि हज यात्रियों के एक खेप को लेकर कोई हवाई जहाज मुंबई से जेद्दाह की ओर उड़े, तो वहां उन यात्रियों को छोड़कर उसे बिना किसी यात्री के या बहुत कम यात्री लिए ही वापस आना पड़ता है। यानी एक तरफ से जहाज यात्रियों से भरकर जाता है, तो दूसरी ओर से खाली वापस आता है। पर खाली वापस आने में भी तो तेल की खपत होती है।

उसी तरह जब हज करके यात्री भारत वापस आने लगते हैं, तो फिर अन्य यात्रियों को वहां से वापस लाने के लिए जहाज को मुंबई से जेद्दा खाली ही जाना पड़ता है। जाहिर है, आम दिनों में एअरलाइंस को एक यात्री को मुंबई से जेद्दा ले जाने में जितना खर्च होता है, उससे लगभग दुगना खर्च हज के दिनों मे एअरलाइंस को करना पड़ जाता है। और उस खर्च की भरपाई करने के लिए उसे टिकटों को महंगा करना पड़ता है और हज यात्रियों को लगता है कि उनसे टिकट महंगा कर सब्सिडी की राशि को एअर इंडिया हड़प रहा है। लेकिन जिस तरह वापसी की यात्रा बिना किसी यात्री के करनी पड़ती है, वैसी परिस्थिति में कोई भी एअरलाइंस वैसा ही करेगा, जैसा एअर इंडिया करता है।

पर सवाल उठता है कि एअर इंडिया का एकाधिकार क्यों? क्या बीमार एअर लाइंस को घाटे से उबारने के लिए उसे एकाधिकार दे दिया गया था या सरकार हज यात्रियों को सुरक्षित यात्रा करवाना अपना फर्ज समझ रही थी, जिसके कारण ही इस सरकारी वाहक को एकाधिकार दिया गया? पहला कारण तो हो नहीं सकता, क्योंकि एक तरफ की खाली यात्रा करने से इंडियन एअरलाइंस का खर्च तो बढ़ ही जाता था।

अब जब सब्सिडी समाप्त कर दी गई है, तो इसके साथ समुद्री यात्रा भी हाजियों के लिए उपलब्ध हो गई है। पहले वे समुद्र के रास्ते से ही आमतौर पर हज करते थे, लेकिन एक बार हाजियों से भरा एक पानी का जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, उसके कारण सरकार ने हाजियों की समुद्री यात्रा पर रोक लगा दी थी। हालांकि समुद्री यात्रा समाप्त करने पर सब्सिडी का खर्च भी एकाएक बढ़ गया था। अब जहाज की यात्रा सुगम हो गई है और इसका निम्न आय वर्ग वाले मुसलमान स्वागत करेंगे। जाहिर है, अब एअर इंडिया का एकाधिकार भी खत्म होगा। पर सवाल यह उठता है कि ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को ढोने के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले एअरलाइंस जब एक तरफ से खाली उड़ान लाएंगे, तो उन्हें भी अपना किराया बढ़ाना पड़ेगा और हज यात्रा महंगी हो जाएगी।

वैसे इस सब्सिडी को हटा कर अच्छा ही किया गया है। इसका मुस्लिम समुदाय द्वारा भी विरोध किया जाता था और हिन्दु समुदाय में इसके कारण यह संदेश भेजने की कोशिश की जाती थी कि सरकार मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही है। इस आधार बनाकर कुछ राज्य तो हिन्दुओं की यात्रा के लिए सब्सिडी तक देने लगे हैं। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य मे सरकार से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वह हज या तीर्थ यात्राओं के लिए सरकारी कोष से यात्रियों की यात्रा पर पैसा खर्च करे। यह दूसरी बात है कि यात्रा को सुगम बनाने के लिए सरकार रास्तों को ठीक करे और तीर्थस्थलों पर विकास का काम करे, ताकि वहां आने वाले लोगों को दिक्कत न हो। इस तरह के विकास को हम तीर्थाटन पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित करने वाला कदम कह सकते हैं, लेकिन यात्रियों को यात्रा खर्च देना गलत है। इसलिए हज पर सब्सिडी समाप्त करने के साथ साथ इस बात का भी कानूनी या संवैधानिक व्यवस्था की जानी चाहिए कि सरकार किसी भी धर्म के यात्री की धर्मयात्रा पर किसी प्रकार की सब्सिडी नहीं देगी। (संवाद)