पर आम आदमी पार्टी उन विधायकों की सदस्यता को बचाने के लिए अदालत की शरण में है। अदालत ने कोई खास राहत तो उन्हें नहीं दी है, लेकिन अगले आदेश तक वहां विधानसभा चुनाव करवाने पर रोक लगा दी है। जब कोई मामला अदालत के विचाराधीन रहता है, तो आम तौर पर उस मामले पर आगे बढ़ने से रोक लगा दी जाती है और अदालती फैसले का इंतजार करने को कहा जाता है।
कानूनविदों की माने तो उन विधायकों की बर्खास्तगी के मसले पर अदालत से राहत नहीं मिल पाएगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि यदि लाभ के किसी पद पर बैठे व्यक्ति ने कोई वित्तीय लाभ नहीं भी हासिल किया हो, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और उसे लाभ के पद पर बैठा हुआ ही माना जाएगा। इसका कारण यह है कि लाभ के उस पद से सिर्फ वित्तीय लाभ ही नहीं होता, अन्य प्रकार के लाभ भी मिलते हैं, जो गैरवित्तीय हो सकते हैं। पर लाभ तो लाभ ही होता है।
अदालत से झटके खाने के बाद आम आदमी पार्टी उम्मीद पाले हुए कि शायद उनके विधायकों की सदस्यता वापस हो जाए, क्योंकि एक तकनीकी मसला भी इसमें शामिल है। वह मसला यह है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने उन 20 विधायकों को संसदीय सचिव पर नियुक्ति को ही अवैध घोषित कर दिया था। तकनीकी रूप से इसका मतलब यह होता है कि कानून की नजर में वे विधायक एक मिनट के लिए भी संसदीय सचिव रहे ही नहीं। अब इस उम्मीद में कितना दम है, इसका पता तो बाद में ही लगेगा, लेकिन यदि उन 20 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव करा दिए जाएं, तो क्या स्थिति होगी, यह सवाल उठना स्वाभाविक है।
नगर निगम के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत मिली थी और आम आदमी पार्टी की शर्मनाक पराजय हो गई थी। कांग्रेस की तो कुछ ज्यादा ही दुर्गति हो गई थी और वह तीसरे नंबर की पार्टी थी। लेकिन नगर निगम के चुनाव के बाद बवाना विधानसभा क्षेत्र में एक चुनाव हुआ। वह क्षेत्र आम आदमी पार्टी के विधायक के इस्तीफा देने के कारण खाली हुआ था। वह पूर्व विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गया था और भाजपा का उम्मीदवार भी वही था। पर उपचुनाव में आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार ही जीता। उसकी जीत भारी मतों से हुई थी। भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार लगातार तीसरे स्थान पर चल रहा था और अंत में वह कांग्रेस के उम्मीदवार से मामूली बढ़त के साथ दूसरा स्थान हासिल कर सका।
बवाना के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ और शिक्षक संघ के भी चुनाव हुए। शिक्षक संघ के चुनाव में भी भाजपा हारी और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में भी नतीजा उसके लिए निराश करने वाला ही रहा। पिछले कई सालांे से छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर उसका कब्जा था, लेकिन पिछले चुनाव में वह पद उसके हाथ से निकल गया। इन सबसे पता चल रहा था कि भारतीय जनता पार्टी की स्थिति लगातार कमजोर हो रही थी।
इस समय तो दिल्ली का मूड भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हो गया है और उसका कारण हो रही सीलींग है। भाजपा सीलींग की जिम्मेदारी किसी दूसरी पार्टी पर डाल भी नहीं पा रही है, क्योकि सीलींग दिल्ली नगर निगम कर रहा है और नगर निगम पर कब्जा भाजपा का ही है। सीलींग से बचाने के लिए केन्द्र सरकार ही कोई कार्रवाई कर सकती है और केन्द्र सरकार भी भारतीय जनता पार्टी की ही है। इसके कारण छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों तक भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हो गए हैं। इस माहौल में यदि चुनाव हो जाए, तो भाजपा की दुर्गति दिखाई देना लगभग तय है। सबसे ज्यादा सीटें तो आम आदमी पार्टी को ही मिलेगी, भले ही वह कुछ सीटें हार जाए। कांग्रेस भी फायदे में रहेगी और विधानसभा में अब अपनी अनुपस्थिति को समाप्त कर सकती है। (संवाद)
दिल्ली के 20 विधानसभा क्षेत्र: चुनाव हुए तो भाजपा की दुर्गति दिखेगी
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-01-27 11:06
नई दिल्लीः दिल्ली विधानसभा की 20 सीटें अभी खाली हैं, क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व करने वाले आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी गई है। उन पर लाभ के पद पर आसीन होने का आरोप लगाया गया था। निर्वाचन आयोग ने उस आरोप को सही पाया और राष्ट्रपति ने आयोग की अनुशंसा के अनुरूप आदेश जारी कर उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी।