संयोग से हम उस दिशा में आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। 2018 के गणतंत्र दिवस परेड के प्रमुख अतिथियों के रूप में एशियान क्षेत्र के 10 नेताओं की मेजबानी कर भारत ने उन देशों के साथ नये संबंधों के युुग शुरू होने का संकेत दे दिया है। भारत के लिए 2020 तक वैश्विक व्यापार का 5 प्रतिशत हिस्सा हासिल करने की आशा रखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि नई दिल्ली आसियान क्षेत्र के साथ इस दोस्ती का पोषण करे।

हालांकि भारत एसियान बैठक का ध्यान समुद्री सहयोग और सुरक्षा पर है, पर व्यापार और निवेश प्रवाह महत्वपूर्ण हैं। 2008 और 2016 के बीच, आसियान क्षेत्र के साथ भारत का व्यापार तेजी से अपने दो सबसे बड़े व्यापार भागीदारों, जैसे यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका से बढ़ गया है। भारत और आसियान के बीच दो-तरफा व्यापार 2015-16 में 65.1 अरब डॉलर से बढ़कर 2016-17 में 71.6 अरब डॉलर हो गया है। हालांकि, यह आंकड़ा 2016 में चीन के 452.3 अरब डॉलर के मुकाबले कम है।

पिछले 15 वर्षों में, चीन लगभग सभी दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के साथ पहले या दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में उभरा है। आसियान देशों के साथ कनेक्टिविटी और संस्थागत संबंधों का निर्माण करने के बारे में चीन सफल रहा और भारत विफल रहा। भारत के लिए आसियान के साथ मजबूत संबंध पांच कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, लाओस, कंबोडिया और म्यांमार में उत्पादन की लागत कम है, इसका मतलब है कि भारतीय कंपनियों इन देशों में निवेश करके काफी लाभ कमा सकती हैं। दूसरा, इन क्षेत्रों में निवेश करना भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार है। आसियान क्षेत्र में 2.7 खरब डॉलर का संयुक्त जीडीपी है। तीसरी बात, भारतीय कंपनियां आसियान क्षेत्र से निर्यात करना शुरू कर देती हैं, तो उनके निर्यात के खिलाफ लक्षित संरक्षक उपायों से बच सकते हैं। चैथा, इन क्षेत्रों में निवेश करने से भारत की कुछ ऊर्जा आवश्यकताएं कम हो जाएंगी, जिससे भारतीय कंपनियां कंबोडिया, म्यांमार और वियतनाम से सस्ती विदेशी ऊर्जा (तेल और बिजली) और खनिजों तक पहुंच सकें। पांचवीं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात, दक्षिण-पूर्व एशियाई उत्पादन नेटवर्क में भाग लेने से भारत अपने विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि कर सकता है। इसके अलावा इसकी युवा जनसंख्या के लिए नौकरियों के अवसरों का निर्माण भी संभव हो सकता है।

हर साल लगभग 120 लाख लोग भारत में श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं, जबकि लगभग 20 लाख लोगों को ही काम मिलते हैं। आर्थिक रूप से संपन्न आसियान देश, जैसे ब्रुनेई, सिंगापुर, मलेशिया और थाईलैंड, भारत के सस्ते श्रम का उपयोग कर लाभ उठा सकते हैं। हाल के दिनों में, चीन में श्रम लागत में काफी वृद्धि हुई है, और भारत इस बात का लाभ उठा सकता है। चीनी श्रम लागत अब अमेरिका की तुलना में केवल 4 प्रतिशत सस्ता है। चीन के विनिर्माण क्षेत्र में औसत मजदूरी ब्राजील और मैक्सिको की तरफ बढ़ रही है, और ग्रीस और पुर्तगाल के साथ तेजी से बढ़ रहे हैं यह भारत के विपरीत है, जहां विनिर्माण मजदूरी 2010 से सिर्फ 1 डॉलर प्रति घंटे था। (संवाद)