बार बार एक ही बात को अलग अलग मंचों से उठाने से तो यही लगता है कि नरेन्द्र मोदी वाकई एक साथ चुनाव कराए जाने को लेकर गंभीर हैं, हालांकि उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ा किया जा सकता है। जब हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों की बात चल रही थी, तो उन दोनों राज्यों के चुनाव तक एक साथ नहीं कराए गए। अपनी राजनैतिक सुविधा को देखते हुए प्रधानमंत्री ने न केवल गुजरात के चुनाव बाद में करवाए, बल्कि वहां होने वाले चुनाव की अधिसूचना तक विलंबित कर दी, ताकि आदर्श चुनावी संहिता लागू होने के पहले ही कुछ लोकलुभावन काम कर दिए जाएं।
एक साथ चुनाव कराने के प्रति मोदी की प्रतिबद्धता लोकसभा के उपचुनावों में भी कमजोर दिखाई देती है। गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश की दो और बिहार की एक लोकसभा का सीट खाली है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे और बिहार में तस्लीमुद्दीन की मौत के कारण सीटें खाली हुई हैं। 19 जनवरी को राजस्थान की दो लोकसभा और पश्चिम बंगाल की एक लोकसभा सीट के लिए तो मतदान हो गए, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार की लोकसभा सीटों पर उपचुनाव नहीं हुए।
इसलिए लोग सवाल कर रहे हैं कि यदि मोदीजी लोकसभा की सभी खाली सीटों का उपुचनाव एक साथ नहीं करा सकते, तो फिर सभी राज्यो की विधानसभाओं और लोकसभा का एक चुनाव एक साथ कराने का दंभ क्यों दिखा रहे हैं? आखिर इस तरह के विरोधाभास का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री की करनी और कथनी का यह अंतर थोड़ा भ्रम पैदा करने वाला है।
करनी और कथनी के बीच के अंतर के बावजूद यह मानना पड़ेगा कि मोदीजी द्वारा इस बार बार एक ही बात को अलग अलग मंचों से दुहराने का कोई न कोई मतलब तो जरूर ही होगा। पहले यह माना जा रहा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी जीत के प्रति निश्चिंत वे 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव करवाना चाहते हैं। लेकिन 2019 को तय लोकसभा चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है, एक साथ चुनाव कराने की बात जोर पकड़ रही है।
तो क्या आगामी लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभाओं के चुनाव भी मोदी जी कराना चाहते हैं? और क्या यह संवैधानिक रूप से संभव है? इस साल 7 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने जा रहे हैं। तीन राज्यों में तो चुनाव की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है। अप्रैल-मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने हैं। साल के अंत में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव होने हैं। अब यदि वास्तव में मोदी एक साथ चुनाव कराने को गंभीर हैं, तो फिर इन तीन राज्यों मंे चुनाव अभी क्यों करवाए जा रहे हैं? क्या कर्नाटक विधानसभा का चुनाव अपने तय समय पर होने से प्रधानमंत्री रोक सकते हैं? और यदि उसका चुनाव भी हो गया, तो निर्धारित काल के बहुत पहले वहां दुबारा चुनाव कैसे कराया जा सकता है?
जाहिर है कि देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के चुनाव के साथ होना निकट भविष्य में संभव नहीं है, लेकिन बार बार एक ही बात को दुहराकर केन्द्र सरकार यह संकेत दे रही है कि अगले लोकसभा चुनाव के साथ ज्यादा से ज्यादा राज्यों के चुनाव करवाए जा सकते हैं। जिन प्रदेशों में भाजपा या उसके गठबंधन की सरकार है, वहां तो विधानसभा का चुनाव समय से पूर्व करवाया ही जा सकता है। कुल मिलाकर संकेत उसी ओर है, लेकिन ऐसा करते समय भी भाजपा अपने नफा और नुकसान का आकलन तो करेगी ही। यदि किसी राज्य में उसे नुकसान होता दिखाई देगा, तो वहां वह समय से पहले चुनाव क्यों करवाएगी? हम देख चुके हैं कि भाजपा ने किस तरह गुजरात विधानसभा चुनाव देर से करवाया और लोकसभा की खाली सीटों का चुनाव भी वह एक साथ नहीं करवा रही है।
एक संभावना लोकसभा चुनाव इसी साल के अंत में करवा दिए जाने की है। इस साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने हैं। बिहार का चुनाव भी उसके साथ करवाया जा सकता है और महाराष्ट्र का भी, जहां भाजपा की गठबंधन सरकारें हैं। यदि भाजपा को लगा कि हरियाणा में चुनाव से फायदा होगा, तो वहां भी समय से एक साल पहले ही चुनाव कराया जा सकता है। झारखंड में भी भाजपा की सरकार एक साल पहले विधानसभा चुनाव करा सकती है, क्योंकि जहां नरेन्द्र मोदी को ही चेहरा बनाकर ज्यादा से ज्यादा वोट पाए जा सकते हैं, वहां लोकसभा चुनाव के साथ साथ विधानसभा चुनाव में जाना फायदेमंद ही साबित होगा। गोवा और मणिपुर में भाजपा की सरकार जोड़ तोड़ से बनी थी। वहां भी चुनाव कराए जा सकते हैं।
इस तरह भारतीय जनता पार्टी दावा कर सकती है कि चुनावी खर्च को रोकने के लिए वह बहुत ही गंभीर है और बार बार होने वाले चुनावों के कारण नीतिगत लुंजपुंजता से देश को होने वाले नुकसान से बचान के लिए भी वह गंभीर है, इसलिए उससे जितने राज्यों का चुनाव लोकसभा के साथ कराना संभव हुआ, उतना वह कर रही है। इसका फायदा उसे उन राज्यों में भी हो सकता है, जहां विधानसभा के चुनाव नहीं होंगे, बल्कि सिर्फ लोकसभा के ही चुनाव होंगे।
एक और बड़ा सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा का आमचुनाव भाजपा करवाना चाहेगी, जहां तीन चैथाई बहुमत वाली सरकार है? यह पूर तरह से नरेन्द्र मोदी की इच्छा पर निर्भर करता है। प्रधानमंत्री वहां भी ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीट जीतने के लिए वहां भी मध्यावधि चुनाव करा सकते हैं। लेकिन सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है। (संवाद)
क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ साथ होंगे?
राष्ट्रपति के अभिभाषण में एक बार फिर जिक्र
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-01-30 13:11
सत्ता संभालने के बाद ही प्रधानमंत्री लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ साथ होने चाहिए। इस बार राष्ट्रपति के संसद मे दिए गए अभिभाषण में भी इसका जिक्र आया है। गौरतलब हो कि राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार के इरादों और आकलन की ही अभियक्ति होती है। सवाल उठता है कि क्या वास्तव में नरेन्द्र मोदी एक साथ चुनाव कराने के लिए गंभीर हैं?