सरकार का यह बजट गरीबों एवं किसानों के लिये विशेष फायदेमंद बताया जा रहा है पर देखा जाय तो इस वर्ग के लिये भी कोई खास बात बजट में नजर नहीं आ रही है। जब तक बाजार मुनाफाखोरों के चंगुल से मुक्त नहीं होगा तब तक किसानों को राहत नहीं मिलेगी । कर्ज देकर किसानों को और कमजोर बनाया जा रहा है जिसका बजट में प्रावधान दिखाई दे रहा है। मुनाफाखोरों से बाजार कैसे मुक्त होगें जिससे किसानों की फसलों का उचित मूल्य मिले, बजट में इस बात की चर्चा कहीं से नहीं नजर आ रही है। बजट में सांसदों के भत्तें हर वर्ष बढ़ायंे जाने की बात तो की जा रही हैे पर आम जन की रोजी रोटी से जुडी़ समस्याओं के निदान की कहीं चर्चा नहीं है।

बजट में 70 लाख रोजगार देने की बात की जा रही है पर रोजगार किस तरह से दिये जायेंगे , इसका समाधान बजट में कहीे नजर नहीं आ रहा है। बजट में उद्योग जगत को भी निराशा हुई है। इस दिशा में सरकार कोई खास प्रावधान बजट में नहीं ला सकी है जिससे देश में उद्योंगो का विकास हो सके । देश में जो बड़े उद्योग बंद होते जा रहे हैं उन्हे बचाये जाने के लिये बजट में कोई प्रावधान दिखाई नहीं दे रहा है । जब देश में नये उद्योग ही नहीं आयेंगे, जो चल रहे है वे बंद हो जायेंगे तो रोजगार कहां से मिलेगा । इस हालात में सरकार की 70 लाख युवाओं को नौकरी देने की बात मात्र खोखली ही साबित होगी ।

शिक्षा एवं स्वास्थ क्षेत्र में जिस तरीके से आम जन को लुटा जा रहा है, इससे राहत आम जन को कैसे मिलेगी , बजट में इस बात की कहीे चर्चा नहीं है। शिक्षा एवं स्वास्थ क्षेत्र में माफिया वर्ग हावी है जिससे हर जगह लूट जारी है। दोनों सेवाएं आम जन के बजट से बाहर होती जा रही है। सरकार इस दिशा में आम जन को किस तरह राहत दिला पायेगी, कहीं नजर नहीं आ रहा है।

जहां तक रेल बजट की बात है बजट में नई इंजन एवं बड़ी लाईन की बात तो की गई पर नई तकनीक लाने की कहीं चर्चा नजर नहीं आ रही जिससे भारतीय रेल का आवागमन किसी भी कारण बाधित न हो, रेल समय पर पहुंचे, एवं आपस में न टकराये।

इस बार बजट रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मामले को भी नहीं छू पाया जिसकी जरूरत देश एवं हर नागरिक को पहले है। जो देश की सीमा की रक्षा जान जोखिम में डाल करते है, उनके लिये बजट मौन है।

देश का युवा वर्ग जो बेरोजगार है, जो लूट के कगार पर खड़ा है उसके लिये बजट में कहीं राहत नहीं दी गई जो मोदी सरकार से बहुत बड़ी उम्मीदें लगा बैठा था । जिसने सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका भी निभाई पर इस सरकार का अंतिम बजट भी उसे राहत नहीं दे पाया। अब भी वह पूर्व की भॅति लूटा जाता रहेगा । देश में नौकरी है नहीं पर आवेदन के माध्यम से बेरोजगार युवाओं की लूट भविष्य में भी जारी रहेगी।

बजट में सफाई के लिये 2 करोड़ शौचालय बनाये जाने की बात की गई, पर उसके रख रखाव के लिये भी व्यवस्था होना जरूरी है। जिसका प्रावधान बजट में कहीं नजर नहीं आ रहा है। रख रखाव के बिना सराकर की यह योजना भी अंततः खोखली साबित हो सकती है।

सरकार की एक टैक्स की नीति जीएसटी के प्रतिकूल प्रभाव से राहत की चर्चा बजट से पुर्व तो अवश्य की गई पर बजट में इस दिशा में चर्चा मौन है। जीएसटी की जटिलताओं से व्यापारी वर्ग एवं आमजन को कैसे राहत मिल पायेगी, बजट में प्रवधान होना चाहिए। आज आम सुविधाएं भी जीएसटी के कारण महंगी हो चली है जिससे टेलीफोन पर बातचीत, दवाई एवं जनसेवाएं आदि पर खर्च पहले से ही ज्यादा हो चला है।

उम्मीद की जा रही थी कि यह बजट जनोपयोगी बजट होगा जहां आम आदमी को राहत मिल पायेगा । पर बजट में फिलहाल आम आदमी को कोई खास राहत कही से नजर नहीं आ रहा है। किसानों के हित में बजट बताया जा रहा है पर जब बजट का स्वरूप सामने आयेगा तब किसान ठगा रह जायेगा । बाहर से किसानों के लिये लुभावना लगने वाला बजट उसे राहत दे पायेगा ऐसा कहीे से नजर नहीं आ रहा है।

टैक्स की जटिलताएं से मुक्ति , बाजार में महंगाई से राहत एवं युवा वर्ग को रोजगार देने के लिये इस बजट में विशेष उम्मीदें थी पर ऐसा कहीे कुछ जनर नहीं आया। खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत इस बजट में ज्यादा नजर आ रही है जहां किसी वर्ग को बजट से संतुष्टि नजर नहीं आ रही है। इस पर मंथन होना चाहिए।(संवाद)