सवाल उठता है कि पिछले 1 फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्तमंत्री ने लोगों की उम्मीदों को पूरा करने की कितनी कोशिश की है? लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों को उन्होंने जो सबसे बड़ी राहत दी है, वह है उस पर लगने वाला काॅर्पोेरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर देना। यह एक बड़ी बात है। इसकी मांग की जा रही थी। इससे इन उद्योगांे को निश्चित तौर पर लाभ होगा। कम काॅर्पोरेट टैक्स देने के कारण इन कंपनियों की बचत बढ़ेगी और वे उस बचत का इस्तेमाल कर अपना विस्तार कर सकेंगे। उनके विस्तार से रोजगार के अवसर भी सृजित हो सकेंगे। जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि हमें विकास के शाही माॅडल को अपनाना चाहिए न कि विकास के रिलायंस माॅडल को, क्योंकि शाही माॅडल कम पूंजी निवेश पर ज्यादा रोजगार पैदा करता है, जबकि रिलायंस माॅडल बहुत ज्यादा पूंजी पर भी कम रोजगार पैदा करता है।

इसलिए इस बजट का यदि लघु एवं मध्यम उद्योगों से संबंधित कोई निर्णय सबसे ज्यादा स्वागत योग्य है, तो वह काॅर्पोरेट टैक्स का 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दिया जाना है और उसके दायरे में 250 करोड़ रुपये तक की कंपनियों को डाल दिया जाना है। गौरतलब हो कि पहले 50 करोड़ रुपये तक की कंपनियों को ही इस दायरे में रखा जाता था।

1991 के पहले अनेक आयटमों के उत्पादन लघु और मध्यम इकाइयों के लिए आरक्षित थे। लेकिन बाद में वे सारे प्रतिबंध हटा दिए गए और बड़े उद्योगों को भी उनमें प्रवेश की इजाजत दे दी गई थी, लेकिन वहां से इन सेक्टरों में निवेश नहीं आ पा रहा था। उसका एक बड़ा कारण यह था कि उत्पादन के ये क्षेत्र श्रमबहुल हैं और बड़े घराने अब श्रमबहुत उत्पादन के दिलचस्पी नहीं लेते, क्योंकि श्रम कानूनों के कारण वे श्रमिकों से ही दूर भागते हैं। वैसे भी छोटे छोटे उद्योगों में हाथ डालना शायद वे अपने स्टैटस के खिलाफ समझते हों।

लगता है इसके कारण ही अब लघु और मघ्यम उद्योग के दायरे को बढ़ाकर 250 करोड़ रुपये कर दिया गया है और उसे टैक्स राहत भी दी गई है। सरकार के इस कदम से बड़े घरानों द्वारा श्रम बहुल इन उद्योगों में निवेश की उम्मीद तो बढ़ गई है, लेकिन क्या यह उम्मीद पूरी हो भी पाएगी? यदि वे भारी पैमाने पर इस सेक्टर में प्रवेश करते हैं, तो इसमें दो मत नहीं कि रोजगार सृजन को तेजी प्राप्त होगी और लघु व मध्यम उद्योगों की उपस्थिति बेहतर होगी, लेकिन अभी हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा की बड़ी पूंजी मध्यम उद्योगों में आती है भी या नहीं।

बड़ी पूंजी आए या नहीं, लेकिन जो पहले से इकाइयां इस सेक्टर में हैं, वे इससे जरूर फायदा उठाएगी। टैक्स राहत के साथ साथ मध्यवर्ग को बैंकिंग और गैरबैंकिंग सेक्टर से वित्त पोषण की भी आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए मुद्रा योजना पहले से ही काम कर रही है। अच्छा होता कि वित्त मंत्री अपने भाषण में इस मुद्रा योजना पर भी कुछ प्रकाश डालते और बताते कि यह किस तरह और किस दक्षता के साथ काम कर रही है।

टैक्स राहत देने और दायरा बढ़ाने के अलावा भी सरकार से उम्मीद की जा रही थी। इस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए गुप्ता रिपोर्ट की सबसे बड़ी सिफारिश मजदूरों को सब्सिडी देने की थी। लघु उद्योग क्षेत्र में श्रमिकों की बहुलता होती है और उद्यमियों के सामने श्रमिकों के भुगतान की समस्या बनी रहती है। ये लघु उद्योग ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में ही हैं और इसमें श्रमिकों का रिकार्ड भी ढंग से रखा नहीं जाता। उनका भारी शोषण होता है और उन्हें काम की गारंटी नहीं होती और नौकरी की सुरक्षा नहीं होती। उनके हितों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों से उनका कोई मतलब नहीं होता। इसलिए उनको औपचारिक क्षेत्र में लाने के लिए उन्हें सब्सिडी देने की एक सिफारिश गुप्ता रिपोर्ट का हिस्सा थी। अपने बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली उस सिफारिश का लाभ लघु उद्यमियों, श्रमिकों और देश की अर्थव्यवस्था को पहुंचाने मे चूक गए।

गौरतलब हो कि मनरेगा और अन्य रोजगार सृजन कार्यों के लिए सरकार अपने खजाने से अरबों अरब रुपये सलाना खर्च करती है। खुद प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि इस योजना के द्वारा गड्ढा बनाने और उन गड्ढों को भरने का काम किया जाता है। यानी सरकारी खजाने से उन पर किया गया खर्च ज्यादातार अनुत्पादक है। तो फिर उस राशि को लघु उद्योगों में काम करने के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल किया जा सकता? यह सच है कि उद्योगों में कुशल और अर्द्ध कुशल श्रमिकों की जरूरत पड़ती है और कुछ अकुशल श्रमिकों के वहां काम करने की भी गंुजायश रहती है। लेकिन हमारे लघु उद्यमी भी कौशल विकास केन्द्र का काम कर सकते हैं।

रोजगार सृजन, रोजगार सब्सिडी, लघु उद्योग और कौशल विकास के कार्यक्रमों को एक साथ मिलाकर अनेक किस्म की समस्याओं को हल किया जा सकता था। लेकिन वित्त मंत्री उस ओर नहीं बढ़ पाए। बहरहाल, उन्होंने टैक्स राहत और दायरा विस्तार के द्वारा जो राजकोषीय प्रबंध किए हैं, उसका कुछ न कुछ फायदा तो होगा ही, लेकिन रोजगार सृजन के लिए जिस बड़े सोच की आज आवश्यकता है, उस सोच से हम अभी भी दूर हैं। (संवाद)