कालाधन उगाही करने वालें दागी लोगों को बचाने की दिशा में अभी हाल ही में राजस्थान राज्य में वर्तमान भाजपा नेतृृत्व वाली राज्य सरकार ने एक विधेयक पेश किया था। उसका विरोध होने के कारण उस विधेयक को प्रवर समिति को सौंप दिया गया था। उसका कार्यकल बढ़ाने को लेकर सत्ता पक्ष के विधायक घनश्याम तिवारी एवं विपक्षी सदस्यों द्वारा बजट सत्र के दौरान जोरदार विरोध जताया गया । इस विधेयक के विरोध में पत्रकारिता जगत में विशेष अभियान जारी रहा ।

इस तरह के उभरते हालात को देखकर लग रहा है कि राजस्थान की राजनीतिक फिजा बदल रही है जिसका संकेत राजस्थान में अलवर एवं अजमेर की लोकसभा एवं माण्डलगढ़ की विधानसभा के उप चुनाव परिणाम से मिलने लगा है। जहां 17 विधानसभा क्षेत्र में सत्ता पक्ष ने कांग्रेस के हाथों मात खाई। इन उपचुनावों ने सत्ता पक्ष को अन्दर ही अन्दर हिला के रख दिया है। पिछले विधान सभा के आमचुनाव के दौरान दो तिहाई से भी ज्यादा जनमत पाकर भाजपा ने राजस्थान में सरकार बनाइ्र्र थी। अब वहीं वर्तमान में वर्ष के अंतराल में नवम्बर माह में होने वाले विधानसभा आमचुनाव को लेकर उप चुनाव परिणाम उपरान्त चिंतित नजर आने लगी है।

बदलते हालात एवं राजस्थान में हो रही आम चर्चाओं के बीच सत्ता पक्ष के खिलाफ हर दिशा में कुछ ज्यादा ही जनाक्रेाश नजर आ रहा है। जहां आम जन का मत यह है कि वर्तमान सरकार ने अपने कार्यकाल को यों ही गुजार दिया जिससे उममीदें बहुत थी । सरकार की कार्यशैली से आमजन के साथ - साथ यहां का मीडिया वर्ग भी नाखुश नजर आ रहा है। सबसे बड़ा विरोध सत्ता पक्ष के कार्यकार्ताओं के बीच भी सरकार बनने के कुछ अंतराल उपरान्त ही उभर चला जो आज तक बरकरार है। उप चुनाव में कांग्रेस को मिली इस जीत का मुख्य कारण सत्ता पक्ष के विरोध में हर दिशा में उपजा जनाक्रोश है, जिसे सत्ता पक्ष अन्तर मन से इस बात को समझने लगा है।

इस तरह के हालात के बीच राजस्थान सरकार का अंतिम बजट आ रहा है जहां सत्ता पक्ष उभरे जनाक्रेाश को कम करने एवं अपने पक्ष में जनमत बनाने के क्या प्रस्ताव लाती है यह तो बजट के गर्भ में छिपा है पर आम जन का विश्वास राजस्थान में सत्ता पक्ष से उठता नजर आ रहा है। राजस्थान में पूर्व में हुए विधानसभा चुनाव में पूरे देश में एक नई राजनीतिक फिजा बह चली थी जहां तत्कालीन सत्ता पक्ष की लोक लुभावनी एवं जन हितकारी अंतिम बजट की घोषणाएं एवं तत्कालीन सराकर द्वारा किये कार्य भी जनमत अपने पक्ष में छुटा नहीं सके । जिस जनमत को वर्तमान सत्ता पक्ष को उम्मीद नहीं थी , उससे भी ज्यादा जनमत मिला ।

राजस्थान का वर्तमान सत्ता पक्ष पूर्व कांग्रेस सरकार के समय की गई घोषणाओं से अलग हटकर कुछ नया नहीं कर पाया है, इस बात को यहां का जनमानस कहने लगा हे। कांगेस कार्य काल की ही मेट्रो योजना चालू तो हो गई पर रिफाईनरी जो अधर में पूरे कार्यकाल लटकी रही, अब उसे चालू किये जाने की बात की जा रही है। पत्रकारो के लिये पेंशन एवं आवास योजना जो कांग्रेस कार्यकाल में शुरू की गई थी वह फाईल अभी बंद ही पड़ी है। वर्तमान सरकार द्वारा पत्रकारो के लिये पूर्व बजट में घोषित कैशलेश मेडिकल बीमा योजना अभी तक लागू नहीं हो पाई है जिसे लेकर पत्रकारों में सरकार के प्रति आक्रोश है। किसानों एवं चिकित्सकों का आंदोलन वर्षभर चलता ही रहा। वर्तमान सत्ता पक्ष द्वारा चुनाव पूर्व 15 लाख नौकरी देने का वायदा भी खोखला ही साबित रहा जिसे सरकार युवकों को शिक्षित करने एवं लोन देकर रोजगार देने की बात कर रही है पर आमजन के गले में सरकार का यह तर्क उतर नहीं रहा हैं। नई नौकरियां तो खास न तो निकल पाई न राज्य में नये उद्योग धंधे में विस्तार हुआ। जो उद्योग चल रह है, वहां की हालत भी अच्छी नहीं है। वहां भी छंटनी का दौर जारी है। इस तरह राजस्थान के हालात पहले से भी बदतर दिखाई दे रहे है जिससे सत्ता पक्ष के विरोध में जनक्रोश उभरता दिखाई दे रहा है। इस तरह के हालात राजस्थान में होने वाले विधान सभा चुनाव में सत्ता पक्ष पर प्रतिकूल असर डाल सकते । इस तरह के हालात से बचाव के लिये सत्ता पक्ष के बजट के तरकश से अब कौन सा तीर निकलता है यह बजट के उपरान्त ही पता चल पायेगा । फिलहाल राजस्थान की राजनीजिक फिजा बदलती नजर आ रही है। (संवाद)