वर्तमान संकट राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और मालदीव की उच्चतम न्यायपालिका के बीच टकराव से शुरू हो गया था। इसे जानने से पहले हाल के इतिहास के कुछ तथ्यों को याद करना सही होगा। ममून अब्दुल्ला गयूम ने 1978 से लेकर 2008 तक तीस साल तक इस द्वीप राष्ट्र पर शासन किया था, पहली बार लोकतांत्रिक ढंग से आयोजित चुनाव में मोहम्मद नशीद सत्ता में 2008 में आए। 2013 में नशीद सत्ता गंवा बैठे। वे भारत के करीब थे। उन्होंने दावा किया कि वे वह बंदूक की नोक पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किए गए थे। अब्दुल्ला गयूम के एक भाई अब्दुल्ला यामीन ने सत्त संभाली। नशीद को ब्रिटेन में चिकित्सा उपचार के लिए जाने की अनुमति दी गई थी, जहां वह स्वयं निर्वासन में रह रहे थे।

पिछली जनवरी के अंत में मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय ने यामीन के 9 विरोधियों को मिली सजा को निरस्त कर दिया और उनकी रिहाई का आदेश दिया। यामीन ने इसे सत्ता में बने रहने के लिए खतरा समझा। उन्होंने जल्दी एक्शन लेना शुरू कर दिया। उन्होंने एक पखवाड़े के लिए आपातकाल घोषित किया। 5 फरवरी को, उनके आदेशों के तहत, सेना ने सर्वोच्च न्यायालय की इमारत में घुसकर मुख्य न्यायाधीश और दूसरे न्यायाधीश को गिरफ्तार कर लिया। जल्द ही, अन्य न्यायाधीश यामीन की लाइन पर आ गए और मुख्य न्यायाधीश द्वारा जारी आदेश को रद्द कर दिया।

पूर्व राष्ट्रपति नशीद अपने देश की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए लंदन से श्रीलंका गए।

उन्होंने भारत से न्यायाधीशों और पूर्व राष्ट्रपति को मुक्त करने के लिए ‘भारतीय सेना द्वारा समर्थित’ एक दूत भेजने की अपील की। भारत ने आधिकारिक तौर पर प्रतिक्रिया नहीं की लेकिन रिपोर्ट थी कि सशस्त्र बलों की इकाइयों को एक छोटी नोटिस पर कार्रवाई करने के लिए तैयार कर दिया गया है। चीन ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत को मालदीव की संप्रभुता का सम्मान करने और द्वीप राष्ट्र के घरेलू संकट में हस्तक्षेप न करने को कहा।

चीन से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद है, क्योंकि यामीन चीन के बहुत करीबी हो गए हैं। यामीन ने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं। पर्यटन मालदीव का प्रमुख विदेशी मुद्रा अर्जक है और चीन पर्यटकों की सबसे बड़ी संख्या भेजता है। अगर मालदीव पर भारत अपने पर्यटकों की यात्राओं को हतोत्साहित करते हुए आर्थिक दबाव डालने का विकल्प चुनता है, तो चीन यात्रियों की संख्या में किसी भी गिरावट को कम करने के लिए कई पर्यटकों को भेज देगा। पिछले साल 21 दिसंबर को मालदीव टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एक साल में (नवंबर 2016 से नवंबर 2017 तक) चीनी पर्यटकों की संख्या लगभग 12 प्रतिशत बढ़ी।

भारत के लिए एक बड़ी चिंता यह है कि यामीन के तहत मालदीव ने हाल ही में एक कानून पारित किया है जो विदेशियों को देश में अपनी जमीन के लिए परमिट देता है। मालदीव में जमीन खरीदने और सैन्य ठिकानों की स्थापना के लिए चीन इस कानून का लाभ ले सकता है। मालदीव का स्थान बेहद सामरिक महत्व का है। प्रमुख तेल निर्यात व्यापार एडेन की खाड़ी और मलक्का स्ट्रेट के बीच किया जाता है। मालदीव द्वीपसमूह इस क्षेत्र के मध्य में स्थित है। इस क्षेत्र में चीन अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने जा रहा है। हिन्द महासागर में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने के लिए भारत लगातार अपने पनडुब्बी बेड़े को बढ़ा़ रहा है।

हिंद महासागर क्षेत्र और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वर्चस्व हासिल करने के लिए मालदीव के हालिया संकट को चीन-भारतीय प्रतिस्पर्धा के बड़े और दीर्घकालिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। मालदीव की स्थिति वास्तव में भारत के लिए चिंताजनक है लेकिन नई दिल्ली को हड़बडी में केाई कदम नहीं उठाना चाहिए। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि 1988 में भारत ने अपने सशस्त्र कर्मियों को सरकार के मुखिया, ममून अब्दुल्ला गयूम के आमंत्रण के जवाब में भेजा था। वर्तमान राष्ट्रपति यामीन ने इस तरह का कोई अनुरोध नहीं भेजा है। भारत को सीधे हस्तक्षेप करने के लिए फिलहाल कोई वाजिब बहाना नहीं है। (संवाद)