यदि हम मान भी लें और यह मानना उचित होगा कि अनियमितता 2011 से ही शुरू हो गई थी, लेकिन अनियमितता के द्वारा जो पैसे उस समय निकाले जाते थे, वे बैंक को समय पर वापस भी कर दिए जाते थे। उसके कारण यूपीए के पूरे कार्यकाल मे किसी बैंक को कोई नुकसान नहीं हुआ। शायद उस समय उतने ही पैसे निकाले जाते थे, जिसे वापस करने की क्षमता नीरव मोदी और मेहुल चैकसी की कंपनियों की थी।
लेकिन मोदी सरकार के गठन के बाद अनियमित तरीके से पैसे निकालने वालों का उत्साह बढ़ गया और उन्होंने अपनी हैसियत से बाहर जाकर पैसे निकालना शुरू कर दिया। चुकाने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे, इसलिए वे पुराना बकाया अदा करने के लिए एक नया लेटर आॅफ अंडरटेकिंग लेकर नया कर्ज ले लेते थे। यह भी बात सामने आ रही है कि वे कच्चे हीरे के आयात के नाम पर पैसा भारतीय बैंकों के विदेशी ब्रांचों से लेते थे और वे उसे आयात में नहीं, बल्कि कहीं और खर्च कर दिया करते थे। आयात के मूल्य को जरूरत से ज्यादा दिखाया जाता था। यह खेल मोदी सरकार के कार्यकाल में बहुत ज्यादा बढ़ गया और उनकी कंपनियां कर्जजाल में लगातार फंसती रही और एक समय ऐसा आया कि बैंक ने नये अंडरटेकिंग देने से इनकार करना शुरू कर दिया। और इसके कारण नया कर्ज लेकर पुराना कर्ज अदा करने की मामा और भांजे की क्षमता समाप्त हो गई।
यह सब मोदी सरकार के कार्यकाल में ही हुआ। पहले से हो रही अनियमितता रोकने की जिम्मेदारी भी केन्द्र सरकार की ही थी। इसलिए यदि उसके कार्यकाल में यह जारी रही और इसने महाघोटाले का रूप ले लिया तो इसके लिए वह खुद सरकार है। वह कांग्रेस को दोष नहीं दे सकती। कांग्रेस की तो 2014 के लोकसभा चुनाव में हार ही इसीलिए हुई थी कि उसकी सरकार की ईमानदारी पर देश की जनता को शक हो गया था और जनता ने भारतीय जनता पार्टी को जनादेश पहले से हो रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए दिया था न कि उसे जारी रखने के लिए।
एक सप्ताह की चुप्पी के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उस महाघोटाले के लिए बैंको के प्रबंधन को दोषी करार दिया है। प्रबंधन दोषी है, इसमें दो मत नहीं, लेकिन सरकारी बैंको के कामकाज को लेकर सरकार से भी उम्मीद की जाती है कि वह सतर्क रहे। आखिर इन सरकारी बैंकों के उच्च प्रबंधन की नियुक्ति सरकार ही करती है। उनके चेयरमैन, प्रबंध निदेशक व अन्य निदेशकों की नियुक्ति केन्द्र सरकार ही करती है और बैंको के लिए वित्तमंत्रालय में एक अलग से विभाग भी होता है। उस विभाग का काम बैंकों पर निगरानी रखता है।
सरकार कह सकती है कि दिन प्रतिदिन होने वाले बैंकों के खातों में किए जाने वाले लेनदेन पर वह नजर रखे, ऐसा संभव नहीं है, लेकिन उसके पास इस बात का क्या जवाब है कि यदि बैंकों में हो रहे बड़े घोटाले की जानकारी उसके पास आती है और उसकी जांच करने की मांग की जाती है, तो उसकी जांच करने में उनके हाथ क्यो ठिठक जाते हैं।
इलाहाबाद के एक निदेशक द्वारा विरोध में स्वर उठाने पर यूपीए सरकार द्वारा उसे उठा देने की बात का भाजपा और केन्द्र सरकार बहुत प्रचार कर रही है। पर फिलहाल यह घोटाला मुख्य रूप से पंजाब नेशनल बैंक का है और इस घोटाले के बारे में कुछ लोगों न 2016 में लगभग उन सभी फोरम में शिकायत की और चेतावनी दी कि यदि इन्हें नहीं रोका गया, तो देश के बैंकों को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान किया गया। वे लोग मोदी- चैकसी की कंपनियों से पहले जुड़े हुए थे। इसलिए अंदर की सारी बातें जानते थे।
उनकी शिकायतों पर केन्द्र सरकार की किसी भी एजेंसी ने घ्यान नहीं दिया। 2016 में मोदी जी की ही सरकार थी और उस समय तमाम एजेंसियों में शिकायत के बाद उसकी एक काॅपी प्रधानमंत्री कार्यालय में भी भेजी गई। प्रधानमंत्री कार्यालय ने उसे कंपनी मामलों के मंत्रालय को भेजा। वहां से उस पर कोई जवाब नहीं मिलने पर मंत्रालय को रिमाइंडर भी भेजा गया। उसके बाद कंपनी मामले के मंत्रालय ने पीएमओ को सूचित किया कि वह केस बंद कर दिया गया है।
संयोग से वित्तमंत्री अरुण जेटली ही कंपनी मामलों के मंत्री भी हैं। वित्तमंत्री होने के कारण सरकार का बैंक विभाग भी उनके ही पास है और कंपनी मामले के मंत्री तो हैं ही। उनके मंत्रालय की तरफ से पीएमओ का पत्र और रिमांडर आने के बाद भी उसकी जांच नहीं की गई और बिना जांच के ही मामले को बद कर दिया गया। अब इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इसके लिए भी भारतीय जनता पार्टी के नेता और उनकी सरकार मनमोहन सिंह की सरकार को यह कहते हुए जिम्मेदार ठहराएगी कि इलाहाबाद के किसी निदेशक को उसने शिकायत करने पर हटा दिया था?
वैसे अरुण जेटली ने अभी तक पुरानी सरकार पर आरोप नहीं लगाया है, बल्कि सिर्फ बैंक प्रबंधन को इसके लिए जिम्मेदा ठहराया है, लेकिन उनको यह भी बताना पड़ेगा कि पीएमओ की तरह से शिकायत फाॅरवर्ड किए जाने के बाद भी उस शिकायत पर गंभीरता क्यों नहीं दिखाई गई और बिना जांच के ही उस मामले को क्यों बंद कर दिया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय को भी इस बात का जवाब देना पड़ेगा कि कंपनी मामलों के मंत्रालय से उसने उस केस की जांच के बारे मे विस्तार से कैफियत तलब क्यों नहीं की। जाहिर है मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारी पूर्ववत्र्ती सरकार के ऊपर डाल नहीं सकती। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    पीेएनबी घोटाले की जिम्मेदारी से नहीं बच सकती मोदी सरकार
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-02-21 12:47
                                            पंजाब नेशनल बैंक का महाघोटाला सामने आने के बाद केन्द्र सरकारी और सत्तारूढ़ भाजपा गजब तर्क दे रही है। उनका कहना है कि इस घोटाले की शुरुआत यूपीए के कार्यकाल में हुई थी, इसलिए वही इसके लिए जिम्मेदार है। दूसरी तरफ पंजाब नेशनल बैंक ने जो प्राथिमिकी दाखिल की है, उसके मुताबिक संबंधित घोटाला 2017 की फरवरी और उसके कुछ बाद का है। यानी जो साढ़े 11 हजार या 20 हजार करोड़ की राशि का नुकसान पंजाब नेशनल बैंक का हो रहा है, उस राशि के लिए लेटर आॅफ अंडरटेकिंग जारी करने का समय मोदी सरकार के कार्यकाल के अंतर्गत आता है।