लेकिन 2018 के प्रवेश के साथ भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। दिसंबर में आए नतीजों में भाजपा के हाथ हिमाचल प्रदेश की सत्ता भी लगी और गुजरात में भी उसकी सरकार एक बार फिर शासन में आ गई, लेकिन जनवरीए 2018 उसके लिए खुशगबार नहीं रही। राजस्थान में उसे तीनों सीटो पर शिकस्त मिली। दो सीटें लोकसभा की थीं और एक विधानसभा की। भाजपा के लिए सबसे ज्यादा मनहूस तथ्य यह है कि दोनों लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की हार हुई। यानी कुल 17 विधानसभा क्षेत्र में वोट पड़े थे और सभी क्षेत्रों में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा वोट मिले। इसका मतलब यह हुआ कि यदि आज राजस्थान में विधानसभा का चुनाव हो तो भाजपा के लिए 200 में से 20 सीटों पर भी चुनाव जीतना कठिन हो जाएगा।

मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जा रहा है। पिछले लंबे समय से उसकी वहां सरकार है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान बहुत लोकप्रिय नेता हैं। जो स्थान नरेन्द्र मोदी को गुजरात में प्राप्त है, वही स्थान मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चैहान को प्राप्त है। श्री चैहान के नेतृत्व में भाजपा ने अब तक जितने भी चुनाव मध्यप्रदेश में लड़े हैं, उन सबों में पार्टी को जीत हासिल हुई है। उनके मुख्यमंत्री रहते भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव मंे भी जीती है, लेकिन अब वहां कांग्रेस की स्थिति पहले से बेहतर हो रही है। जो कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने की स्थिति में भी नहीं थी, वह कांग्रेस अब भारतीय जनता पार्टी को बराबरी की टक्कर दे रही है। यह नजारा मध्यप्रदेश के 19 शहरी निकायों के चुनाव में देखने को जनवरी महीने में ही मिला।

19 शहरी निकायों में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को 9-9 सीटों पर जीत हासिल हुई और एक अन्य सीट कांग्रेस के बागी एक निर्दलीय के पास गई। यान मध्यप्रदेश में अब शिवराज सिंह चैहान का पहले वाला जादू नहीं चलता। दो विधानसभा के उपचुनाव हो रहे हैं। उनमें भी मुकाबला बराबरी का है और हो सकता है दोनों पार्टियों को एक एक सीट पर सफलता हासिल हो जाए। लेकिन इससे भी यही साबित होगा कि वहां मुकाबला बराबरी का है।

भारतीय जनता पार्टी के गिरते ग्राफ के बीच पंजाब नेशनल बैंक से जुड़े नीरव मोदी घोटाले ने नरेन्द्र मोदी की छवि खराब करनी शुरू कर दी है। नीरव के साथ भी मोदी सरनेम लगा हुआ है, हालांकि उनसे प्रधानमंत्री की कोई रिश्तेदारी नहीं है। लेकिन इससे यह संकेत तो जा ही रहा है कि नरेन्द्र मोदीअ अपने लोगों के प्रति नरम हैं और उसके कारण ही वे लोग बैंक को लूटते हैं और लूटकर देश से फरार हो जाते हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी अपने तमाम संसाधनों को झोंककर देश को यह बताने की कोशिश कर रही है कि नीरव घोटाले के लिए भी कांग्रेस ही जिम्मेदार है, लेकिन उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि सत्ता में आने के चार साल के बाद भी वे पुराने घोटालेबाजों को अभी भी घोटाला क्यों करने दे रही है?

सच तो यह है कि अब भाजपा इस समय हो रहे और सामने आ रहे घोटालों के लिए कांग्रेस को जितना दोष दे रही है, वह उतना ही हास्यास्पद होती जा रही है। नीरव घोटाले के बाद एक कोठारी घोटाला भी सामने आया। उस घोटाले के बाद द्वारिका दास सेठ ज्वेलर का बैंक घोटाला भी सामने आ गया। यदि बात वहीं तक सीमित हो जाती तो फिर भी गनीमत थी, चीन उद्योग से जुड़े एक मिल मालिक द्वारा भी बैंकों में किए गए घोटाले की खबर आ रही है।

बैंकों में हो रहे घोटालों के बीच लोगों का विश्वास सरकार से टूटता जा रहा है। घोटाले चाहे जब भी शुरू हुआ हो, घोटालेबाजों को पकड़ना और उनसे पैसा वसूलना वर्तमान सरकार की ही जिम्मेदारी है। कांग्रेस पर कीचड़ उछालकर अपने कमीज को पाक साफ साबित करने की कोशिश सरकार को महंगी ही पड़ेगी, क्योंकि लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर ही इसीलिए किया था, क्योंकि उन्हें लगा था उसकी सरकार में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है और सरकार कुछ नहीं कर रही। मनमोहन सिंह की छवि एक ईमानदार नेता की रही है और उनकी यह छवि अभी भी बरकरार है। लेकिन लोगों ने उन्हें इसलिए नकार दिया, क्योंकि उनकी सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार की खबरें आती रहीं और मनमोहन सिंह की छवि ईमानदार होने के बावजूद एक ऐसे नेता की बनती गई, जो भ्रष्ट लोगों के सामने लाचार है।

लगभग वही छवि नरेन्द्र मोदी की भी बन रही है। वे अपने परिवार वालों को अपने राजनैतिक रसूख का फायदा नहीं पहुंचाते। उनकी छवि एक वित्तीय रूप से एक ईमानदार नेता की बनी हुई है, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बावजूद घोटाले जारी हैं और लोगों की बैंकों में जमा राशि के डूबने का खतरा मंडरा रहा है। इसके कारण नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल हो रही है और संघ से बाहर के ही नहीं, बल्कि संघ के अंदर के लोगों को भी लगने लगा है कि भ्रष्टाचार की समस्या पर वे गंभीर नहीं है। इस तरह की बनती छवि के बीच अगला लोकसभा चुनाव जीतना भाजपा के लिए बहुत ही कठिन होगा। (संवाद)