संगठन के दो नेताओं और कांग्रेस के विधायक दल के नेता ने भी दोनों निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं को कांगेस को जीत दिलाने के लिए धन्यवाद दिया है। पर उन्होंने सिंधिया द्वारा कड़ी मेहनत किए जाने को कोई उल्लेख नहीं किया। नतीजे की घोषणा के बाद जारी एक बयान में, राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने जीत के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया, जो विधानसभा चुनावों के बाद होने वाले परिवर्तन का स्पष्ट संकेत देता है। उन्होंने बीजेपी के इस दावे का उपहास किया कि वह 2018 विधानसभा चुनाव में 200 सीटें जीत पाएंगे। यादव ने चुनाव अभियान के दौरान सिंधिया की कोशिशों का कोई उल्लेख नहीं किया।

इसी प्रकार विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने एक अलग बयान में कहा कि परिणाम बताते हैं कि भाजपा सरकार ने लोगों का विश्वास खो दिया है। परिणाम यह भी दिखाते हैं कि लोगों ने राहुल गांधी को नेता के रूप में स्वीकार किया है और राज्य और केंद्र दोनों में जनता कांग्रेस को सत्ता सौंपने को तैयार हैं। यादव और अजय सिंह दोनों ने मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी की ख्वाहिश करते हैं।

यहां तक कि राहुल गांधी ने भी ट्विटर पर की गई टिप्पणी में मुंगावली और कोलारस विधानसभा उपचुनावों में सिंधिया द्वारा की गई कड़ी मेहनत को कोई उल्लेख किया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि 90 प्रतिशत कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उपचुनावों में अपनी सारी ताकत लगा दी, लेकिन 10 प्रतिशत कार्यकत्र्ता और नेता चुनाव में पार्टी की मदद को नहीं आए। उन्होंने कहा कि वे उनके खिलाफ कठिन कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि वह स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं या आप कितने बड़े हैं, अगर आप कांग्रेस के साथ नहीं हैं तो आपका पार्टी में कोई भविष्य नहीं है।

कांग्रेस नेता ने सिंधिया की भूमिका को महत्व देने में सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन मीडिया पूरी तरह से उनकी प्रशंसा कर रही है। यहां तक कि बीजेपी के समर्थक मीडिया ने भी सिंधिया की प्रमुख भूमिका को मान्यता दी है। बीजेपी के दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने टिप्पणी की है कि हालांकि जीत का अंतर कम हो गया है और बीजेपी ने पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा वोट हासिल किए हैं, जोतिरादित्य को अपने गढ़ में हराने की रणनीति सचमुच विफल रही है। महाभारत से उद्धृत करते हुए, गौर ने कहा कि सिंधिया को अभिमन्यु के रूप में करार दिया गया लेकिन वह अर्जुन के रूप में उभरा, विपक्षी दल द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह को तोड़ डाला।

जीत ने कांग्रेस के मनोबल को बढ़ा दिया है। मध्यप्रदेश के प्रभारी एआईसीसी के महासचिव दीपक बाबरिया ने घोषणा की कि भोपाल में 13 मार्च को पार्टी ‘भारतीय जनता पार्टी भारत छोड़ो’ अभियान चलाएगी। उपचुनाव की जीत ने 2018 में कांग्रेस की मध्यप्रदेश पर कब्जा करने की उम्मीद को पुनर्जीवित किया है। ये परिणाम भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को निजी तौर पर झटका लगा रहे हैं। चैहान और उनके कैबिनेट का 80 प्रतिशत हिस्सा लगभग आठ हफ्तों तक वहां डेरा लगाए हुए थे। हर रोज मुख्यमंत्री 12 रोड शो कर रहे थे, जबकि ज्योतिरादित्य एक अकेली लड़ाई लड़ रहे थे। कमलनाथ आखिरी दिनों में चुनाव अभियान में शामिल हुए। उप-चुनावों को ‘शिवराज बनाम महाराज’ के रूप में समझाया गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि चुनाव अभियान के दौरान 1500 करोड़ रुपये की सरकारी योजनाओं की घोषणा की गई लेकिन यह मतदाताओं को आकर्षित करने में विफल रहा।

जाहिरा तौर पर चुनाव रणनीति के तहत भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट के तीन मंत्रियों को शामिल किया और वे सभी अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से थे। एक कैबिनेट और राज्य के दो मंत्रियों को उनके प्रभाव के क्षेत्रों में मतदाताओं को लुभाने के लिए नियुक्त किया गया था, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें धूल चटा की। एक वरिष्ठ आरएसएस कार्यकर्ता ने कहा भविष्यवाणी की कि आगामी विधानसभा चुनावों में जाति की राजनीति एक बड़ी भूमिका निभाएगी।

‘‘राजनीति बदल गई है। मध्यप्रदेश के आने वाले चुनावों में एक नया रुझान देखेंगे। नैतिकता और सिद्धांतों की राजनीति का दिन खत्म हो गया है दलों को अपनी जाति के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करना होगा। अधिकांश लोगों को टिकट मिलेगा जो लोग बाहुबली हैं और धन की शक्ति रखते हैं। वे ही अब राज्य पर शासन करेंगे।’’

भाजपा ने अभियान के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुुआ यशोधरा सिंधिया को सामने कर सिंधिया-बनाम-सिंधिया रंग की लड़ाई देने की असफल कोशिश की। लेकिन यह रणनीति विफल हो गई, क्योंकि यशोधारा अपने भतीजे पर किसी के निजी हमले से बच रही थी।

कुल मिलाकर, परिणाम पार्टी उम्मीदवारों को वोट दिलाने की चैहान की क्षमता को संदेहास्पद बनाते हैं। (संवाद)