बिहार में छह राज्यसभा सीटो के लिए द्विवर्षीय चुनाव होने वाले हैं। चार राज्यसभा सीटें जनता दल(यू) और दो भाजपा के सांसदों का कार्यकाल समाप्त होने के कारण खाली हो रही हैं। सच यह भी है कि एक सीट तो एक जनता दल(यू) सांसद के दल बदल विरोधी कानून के तहत पहले ही समाप्त कर दी गई है। विधायकों की सदस्य संख्या को देखते हुए राज्यसभा में दो राजद, दो जद(यू), एक भाजपा और एक कांग्रेस की सीटें आनी चाहिए, लेकिन भाजपा अपने दो लोगों को सांसद भेजना चाहेगी और इसके लिए वह जोड़ तोड़ भी कर सकती है, जिसके कारण छठी सीट का चुनाव दिलचस्प हो सकता है।
243 सीटों वाली विधानसभा में एक राज्यसभा सांसद को चुनाव जीतने के लिए 35 वोट चाहिए। राजद के पास 80 विधायक हैं और दो सांसदों की जीत सुनिश्चित करने के बाद उसके पास 10 अतिरिक्त मत बच जाते हैं, जिसका इस्तेमाल वह कांग्रेस उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए कर सकता है। कांग्रेस के पास 27 विधायक हैं और राजद के शेष 10 विधायकों का मत पाकर उसका उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत सकता है।
उधर जद(यू) के पास 70 विधायक हैं, जो दो उम्मीदवारों को राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त है। भारतीय जनता पार्टी के 52 विधायक हैं। चार विधायक उसके समर्थक दलों के पास है। इस तरह उसके पास 21 वोट अतिरिक्त हैं। यदि भभुआ में उसका उम्मीदवार एक बार फिर जीत जाता है, तो उसके पास 22 अतिरिक्त मत आ जाएंगे। बिहार से उनके दो मंत्रियों का कार्यकाल पूरा हो रहा है। वे मंत्री है रविशंकर प्रसाद और धर्मेन्द्र प्रधान, लेकिन भाजपा अपने विधायकों की वर्तमान ताकत के बूते सिफ एक ही उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कर सकती है। इसलिए यदि वह दूसरा उम्मीदवार खड़ी करती है, तो राज्यसभा का यह चुनाव दिलचस्प हो जाएगा। इसका सबसे ज्यादा असर कांग्रेस पर पड़ सकता है, क्योंकि उसके विधायकों को पटाकर ही भाजपा अपने दूसरे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कर सकती है।
इन चुनावों के बीच राजनैतिक पाला बदल का खेल जारी है। दोतरफा पाला बदली हो रही है। हिन्दुस्तान आवामी मोर्चा के प्रमुख भूतपूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को छोड़कर लालू के राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम चुके हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चैधरी कुछ विधान परिषद सदस्यों के साथ पार्टी छोड़कर नीतीश कुमार के खेमे में जा चुके हैं। जीतनराम मांझी राजग में घुटन महसूस कर रहे थे। नीतीश कुमार ने उन्हें अपमानित कर मुख्यमंत्री के पद से हटाया था और उसी नीतीश को भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री बनाने के बाद उनका राजग में रहना असंभव लग रहा था। वे उसमें बने रहने के लिए मोलतोल कर रहे थे। केन्द्र की मोदी सरकार उन्हें सत्ता प्रतिष्ठान में कहीं भी स्थापित नहीं कर रही थी। इसलिए वे सही मौके का तलाश कर रहे थे, ताकि वे पाला बदल सकें। पाला बदली वे मु्फ्त में नहीं करना चाह रहे थे।
इन चुनावों ने जीतनराम मांझी को महत्वपूर्ण बना दिया है। वे अनुसूचित जाति के हैं और उनकी अपनी जाति के मतदाताओं की संख्या अररिया लोकसभा में बहुत ज्यादा है। राजद का उम्मीदवार सिर्फ मुस्लिम यादव समीकरण के बल पर अररिया से चुनाव नहीं जीत सकता, क्योंकि नीतीश के भाजपा के साथ आ जाने के बाद गैर यादव ओबीसी के ज्यादातर वोट भाजपा को ही पड़ेंगे। वैसी हालत में जीतनराम मांझी का समर्थन अररिया लोकसभा क्षेत्र से राजद की जीत को संभव बना सकता है, लेकिन इसके लिए मांझी कीमत वसूलना चाहेंगे और बहुत संभव है कि वे राजद के समर्थन से राज्यसभा की मंे प्रवेश कर जाएं।
लालू यादव और उनके राजद की समस्या यह है कि मुस्लिम और यादव समुदाय के बाहर उसकी अपनी बहुत सीमित है, लेकिन यह समीकरण राजद को सत्ता मंे नहीं पहुंचा सकता। इसलिए लालू यादव ने मायावती को राज्यसभा भेजना चाहा था, ताकि उनकी जाति के दलितों को राजद की ओर लाया जा सका। मायावती लालू के राजनैतिक पाश में नहीं आई, तो अब जीतनराम मांझी को अपने पाले में लाकर मुस्लिम यादव और हरिजन का समीकरण बना सकते हैं। इसकी कीमत के रूप में मांझी राज्यसभा में प्रवेश करना चाहेंगे या कम से कम अपने बेटे को विधानपरिषद की सदस्यता दिलवाना चाहेंगे।
दूसरी तरफ एक अन्य दलित नेता अशोक चैधरी ने अब भाजपा खेमे में अपनी जगह बना ली है। उनके साथ कुछ अन्य विधानपार्षद भी आए हैं। विधानसभा सदस्यों के बीच भी उनके कुछ लोग हैं, लेकिन सदस्यता समाप्त होने के डर से वे अभी पाला नहीं बदल रहे हैं। लेकिन वे राज्यसभा में मतदान के समय पाला बदलकर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत को हार में बदल सकते हैं। इसलिए कांग्रेस के लिए अशोक चैधरी का पार्टी से बाहर होना एक अपशकुन है।
उपचुनावों के नतीजे आने वाली राजनीति को दिलचस्प बना देंगे। जिन तीन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें से दो तो राजद के ही हैं। यदि उनमे से किसी की हार होती है, तो यह माना जाएगा कि लालू के जेल जाने से पार्टी कमजोर हुई है। भभुआ की सीट भाजपा के पास थी। वहां कांग्रेस का उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है। यदि वहां भाजपा हारती है, तो संदेश यह जाएगा कि नीतीश से हाथ मिलाने के बावजूद पार्टी कमजोर हुई है। विधानसभा उपचुनाव के नतीजे राज्यसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    बिहार के उपचुनाव में जारी है पाला बदली
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-03-07 10:39
                                            बिहार में एक लोकसभा और दो विधानसभा क्षेत्रों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं। इस बीच राज्यसभा चुनावों की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। अररिया लोकसभा क्षेत्र सांसद तस्लीमुद्दीन की मौत के कारण खाली हुआ है, तो जहानाबाद और भभुआ विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव क्रमशः राजद और भाजपा विधायकों की मौत के कारण हो रहे हैं। इन चुनावों के नतीजों से न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार पर किसी तरह का असर पड़ने वाला है, लेकिन इसके राजनैतिक संदेश आने वाले दिनों राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।