अब मूर्ति भंजन की बात करें। त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति टूटने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति टूटी। मुखर्जी भारतीय जनता पार्टी के प्रथम संस्करण भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनकी मूर्ति कोलकाता में तोड़ दी गई। इससे भी बदतर बात हुई। वी रामसामी पेरियार की मूर्ति भी तोड़ दी गई। पेरियार एक बड़े सामाजिक सुधारक थे और उनके आत्मसम्मान आंदोलन ने तमिलनाडु के इतिहास को ही बदल डाला है। अन्य सुधारों के अलावा, उन्होंने सामाजिक अन्याय और असमानता को दूर करने और जन्म नियंत्रण का प्रचार करने के उद्देश्य से आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया। उन्होंने देवदासी प्रणाली और बाल विवाह के उन्मूलन के लिए वे लड़े। पेरियार की तमिलनाडु में वस्तुतः पूजा की जाती है।

और, यूपी में बी आर अंबेडकर की मूर्ति को क्यों तोड़ा जाना चाहिए? वह एक दलित प्रतीक बन गए हैं और भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण निभाई है। उसी संविधान की शपथ लेकर सरकार चलाई जाती है।

हालांकि सोवियत संघ का पतन हो चुका है, पर लेनिन एक विश्व नेता है जिनकी विचारधारा ने आधी से ज्यादा दुनिया पर कभी न कभी राज किया। मॉस्को में उनका मकबरा अभी भी बरकरार है और सैकड़ों लोग वहां की यात्रा रोज करते हैं। लेनिन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया और उसके शीर्ष नेताओं को समर्थन किया। लोकमान्य तिलक की भारतीय आजादी में भमिका की लेनिन ने सराहना की थी। जब तिलक पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था और बर्मा में छः साल की कारावास की सजा सुनाई गई थी, तो लेनिन ने इसकी तीव्र भत्र्सना की थी और उसे एक कुख्यात सजा करार दिया था।

वास्तव में, लेनिन उस समय के शीर्ष स्तर के वैश्विक नेताओं में से एक थे, जो स्वतंत्रता संग्राम के उभरते चरण को देख सकते थे। उन्होंने तब कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन का अब अंत होने वाला है।

कुछ लोग ही जानते हैं कि क्रांतिकारी भगत सिंह लेनिन के प्रशंसक थे। उन्होंने बड़े पैमाने पर लेनिन के काम को पढ़ा। भगत सिंह की जीवनी के लेखक गोपाल टैगोर ने यह पुष्टि की कि भगत सिंह को अपनी आखिरी इच्छा बताने को कहा गया था तो उन्होंने कहा था कि कि वह लेनिन को पढ़ रहे हैं और फांसी पर चढ़ने के पहले वे उनके लेख को पूरा पढ़ लेना चाहते हैं।

बीएसपी-एसपी का गठबंधन एक अन्य महत्वपूर्ण घटना है। दो लोकसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में बसपा ने सपा का समर्थन कर दिया। यदि उसके नतीजे उत्साहजनक होते हैं, तो आने वाले समय में भी यह गठबंधन जारी रह सकता है। उसके बाद तो देश भर में एक महागठबंधन की उम्मीद की जा सकती है।

पिछले दो चुनावों से भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा को करारी शिकस्त देती आ रही है। लोकसभा के चुनाव में तो बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी और समाजवादी पार्टी के मुलायम परिवार से बाहर के सारे उम्मीदवार हार गए थे। विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने वह जीत दुहरा दी। सपा को 50 सीटें भी नहीं मिली और बसपा तो 20 सीटें भी नहीं पा सकी। लेकिन यदि विधानसभा में सपा और बसपा को मिले वोटों को जोड़ दिया जाय, तो वे भाजपा को मिले वोटों से भारी हो जाते हैं। इसलिए इन दोनों पार्टियों का एक साथ आना एक बहुत बड़ी राजनैतिक घटना है। (संवाद)