और जिस रणनीति से भाजपा त्रिपुरा में सफल हुई, उसी नीति पर केरल में भी चल रही है। वह नीति है कांग्रेस में फूट डालो और उसके नेताओं को अपने पाले में लाओ। ‘आपरेशन पोचिंग’ की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी ने यहां कर भी दी है। और यह काम बहुत ही सावधानी से किया जा रहा है।

रणनीति के एक भाग के रूप में, बीजेपी के विचारकों और रणनीतिकारों ने राज्य के विधायकों सहित कुछ कमजोर कांग्रेस नेताओं को चुना है। उनमें से हैं कांग्रेस के नेता प्रसिद्ध नेता के सुधाकरन, जो विधायक रह चुके हैं। कन्नूर में कांग्रेस के मजबूत नेता सुधाकरण ने फिलहाल यही कहा है कि भाजपा में शामिल होने का उनका कोई इरादा नहीं है। हालांकि, उन्होंने यह स्वीकार किया है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दूतों ने कुछ समय पहले एक प्रस्ताव के साथ उनसे संपर्क किया था।

सुधाकरन के इस वक्तव्य ने केरल में शीर्ष कांग्रेस के नेताओं में चिंता पैदा कर दी है। विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला और केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष एम एम हसन ने कहा कि सुधाकरन समेत कोई भी कांग्रेसी भाजपा में शामिल नहीं होगा।

हालांकि, कांग्रेस के नेताओं की इन घोषणाओं ने कुछ वरिष्ठ नेताओं के भाजपा में शामिल होने की अटकलों को समाप्त नहीं किया है। अन्य कांग्रेसी नेता जो लक्ष्य भाजपा के पाले में जा सकते हैं वे हैं तिारुवनंतपुरम के पार्टी सांसद शशि थरूर और विधायक वी.एस. शिवकुमार।

भारतीय नेताओं को केरल की राजनीति की जमीनी हकीकत मालूम है। उन्हें पता है कि केरल त्रिपुरा नहीं है और त्रिुपुरा की तरह केरल में कांग्रेसी नेता थोक भाव में नहीं आएंगे। इसलिए भाजपा ने यहां अलग किस्म की रणनीति अपनाई है।

सबसे पहली बात तो यह है कि केरल उन कुछ राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस अभी भी एक शक्ति है और जो सत्ता में वापस आने की उम्मीद पाल रही है। इसके अलावा, अगर केरल में कांग्रेस के नेता त्रिपुरा की तरह पाला बदलते हैं, तो उन्हें बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक वोटों से हाथ धोना होगा। इसलिए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले नेताओं को यह गणना करनी होगी कि अल्पसंख्यक मतों से वंचित होकर वे चुनाव जीत भी सकते हैं या नहीं।

फिर भी भाजपा ने केरल में त्रिपुरा प्रयोग को दोहराने की कोशिश क्यों की है, इसे समझना कठिन नहीं है। भाजपा जानती है कि केरल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की यूपी रणनीति को लागू नहीं किया जा सकता है। इसलिए पार्टी ने आसान मार्ग लेने का फैसला किया है और वह कांग्रेस से दलबदल कराने की रणनीति अपना रही है। इस तरह, बीजेपी के स्पिन डॉक्टरों को उम्मीद है कि पार्टी राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी बन सकती है, जो सीपीआई (एम) की सर्वोच्चता को चुनौती देगी।

यह सच है कि केरल त्रिपुरा नहीं है, लेकिन फिर भी कांग्रेस निश्चिंत नहीं रह सकती। उसमें अनेक ऐसे नेता हैं, जो भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। यही कारण है कि भाजपा उन कमजोर नेताओं को अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बयानबाजी कर भाजपा के उन प्रयासों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सिर्फ बयानबाजी काफी नहीं है। कांग्रेस को अपने नेताओं को बचाने की भी कोशिश करनी चाहिए। (संवाद)