राहुल गांधी ने अपनी शुरुआती टिप्पणियों में प्रेम और भाईचारे पर आधारित कांग्रेस की नीतियों को अभिव्यक्त करते हुए भाजपा के क्रोध और विभाजन के प्रसार की नीति की आलोचना की। इस तरह उन्होंने अपनी पार्टी के गांघीवादी रवैये पर जोर डाला और भाजपा की अहिष्णुता की नीति पर हमला किया। वे दोनों पार्टियों का अंतर दिखाने के लिए इस तरह की तुलना कर रहे थे। इस तरह राहुल गांधी दार्शनिक अंदाज में बोलते दिखाई दिए जबकि सोनिया गांधी के भाषण का जोर राजनीति पर अधिक था।
सोनिया गांधी ने भाजपा के ‘कांग्रेस-मुक्ता भारत’ बनाने के जवाब में कहा कि भारत को आज भय, अहंकार, प्रतिशोध, पक्षपत और हाहाकर से मुक्त करने की जरूरत है। भाजपा पर हमला करते हुए इन पहलुओं पर प्रकाश डालना प्रभावी साबित हो सकता है और सोनिया गांधी ने यही किया।
यह संभव है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस इन दोनों दृष्टिकोणों को आगे बढ़ाते हुए भारतीय जनता पार्टी पर हमला करे। यदि ये दोनों दृष्टिकोण तालमेल के साथ आगे बढ़ाए गए, तो इसका चुनाव पर अच्छा असर पड़ सकता है और भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
ल्ेकिन केवल भाषण काफी नहीं। इससे भी ज्यादा महत्वपूण है कांग्रेस द्वारा भाजपा विरोधी पार्टियों तक अपनी पहुंच बढ़ाना। इसमें कुछ संदेह नहीं है कि 1998 के पंचमढ़ी प्रस्ताव के समय से कांग्रेस अपनी कमजोरियों के बारे में अधिक जागरूक हो गई है, जब गठबंधन को ‘तात्कालिक रणनीति’ के रूप में माना गया था। हालांकि अब यह महसूस हो रहा है कि अन्य पार्टियों के साथ जाना ही एकमात्र रास्ता बचा है।
इसके पहले पार्टी को पहले अपना घर ठीक करना होगा। नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के बीच जो दीवार खड़ी हो गई है, उसे भी तोड़ना होगा और दोनों के बीच प्रेम का वातावरण बनाना होगा। जाहिरा तौर पर युवा पीढ़ी और पुराने नेताओं के बीच भी एक दीवार है। कांग्रेस को नरेन्द्र मोदी की तरह क्रूर होने की जरूरत नहीं है, जिन्होंने पुराने नेताओं को निपटा दिया, लेकिन 70 से अधिक उम्र के नेताओं और भ्रष्टाचार के दाग से दगे नेताओं से उसे अपने आपको अलग दिखाना होगा। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं की पदोन्नति कांग्रेस को लाभ पहुंचा सकती है।
पार्टी की जरूरत क्या है? ताजा चेहरे को प्रोत्साहित करना और प्रगतिशील दिखना। पर दुर्भाग्य से, ईवीएम को हटाने की मांग प्रतिगामी कदम है। डिजिटल युग में जब 12-12 साल के बच्चे माता-पिता के मुकाबले स्मार्ट फोन से ज्यादा परिचित हैं। यदि ईवीएम की विश्वसनीयता के बारे में कोई संदेह है (जो आमतौर पर हारने वालों करता है), तो पार्टी को उनको दुरुस्त करने की मांग करनी चाहिए, न कि उसकी जगह पुराने मत्रपत्र से चुनाव करवाने की। इसलिए, कागज के मतपत्रों की बात करने से केवल इस विश्वास का बल मिलेगा कि 133 वर्षीय पार्टी ने अपनी उम्र दिखाना शुरू कर दिया है। यह काले और सफेद टीवी और अंबेसडर कारों के जमाने में वापस जाने की तरह होगा (संवाद)
ईवीएम की जगह बैलट पेपर पर चुनाव की बात करना गलत
कांग्रेस सूई की घड़ी पीछे करना चाहती है
अमुल्य गंगुली - 2018-03-23 11:35
दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के पूर्ण सत्र की हुई बैठक की दो उल्लेखनीय विशेषताएं थीं। एक सोनिया गांधी के बारे में था, जो यह दर्शाती थी कि वह अपने बेटे की तुलना में अधिक आक्रामक वक्ता हैं। हालांकि बाद में राहुल ने अपने दूसरे भाषण में इस कमी को दूर करने की कोशिश की। दूसरा, पार्टी की अतीत के प्रति लगाव था। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की जगह बैलट पेपर को वरीयता देना उसका एक उदाहरण है।