फिल्मों के दो सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन भी राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। इससे राजनैतिक माहौल और भी धुंधला हो गया है। अतीत में तमिलनाडु की राजनीति पर फिल्म जगत से आए लोगों का दबदबा रहा है। अन्नादुरै, करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता राजनीति में आने के पहले फिल्मों से ही जुड़े हुए थे और प्रदेश के ये मुख्यमंत्री ही नहीं रहे, बल्कि बिना किसी सरकारी पद पर रहते हुए भी ये राजनीति को प्रभावित करते रहे। इसके कारण रजनीकांत और कमल हासन को बहुत उम्मीदें बंधी हुई हैं।
श्री रजनीकांत ने 31 दिसंबर 2017 को घोषणा की कि वे राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं जो ‘आध्यात्मिक’ होगा और उनका दल 2021 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। कमल हसन ने अपनी पार्टी, मक्कल नीती मय्याम (एमएनएम), न्याय की मांग करने वाले लोगों की एक पार्टी का गठन किया है। दोनों तमिलनाडु को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके अनुसार, डीएमके और एआईएडीएमके की सरकारें भ्रष्ट रही हैं।
भाजपा राजनीतिक जगह खोजने की कोशिश कर रही है। उसने रजनीकांत के राजनीति में आने का स्वागत किया है, और उनके ‘आध्यात्मिक’ दृष्टिकोण की प्रशंसा की है। रजनीकांत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त कहते हैं। भाजपा श्री रजनीकांत की अगुवाई में तमिलनाडु की राजनीति में अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है।
विधानसभा के चुनाव तीन साल बाद होने हैं और दोनों सुपरस्टार अपनी योजनाओं या कार्यक्रमों के के बारे में खुलकर नहीं बताते हैं। पिछले कुछ महीनों में, पलानीस्वामी-पन्नेरसेल्वम सरकार ने प्रधानमंत्री के साथ बेहतर संवाद बनाने की कोशिश की थी, ताकि वे परेशान हुए किसानों की सहायता व राज्य की शिकायतों का निवारण कर सकें। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू की टीडीपी के राजग से बाहर निकलने के बाद भाजपा दक्षिण भारत में एक नये सहयोगी की तलाश में है।
पार्टी के महासचिव के लिए शशिकला की पसंद श्री टीटीवी दिकरण सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के अंदर भूचाल पैदा करने में लगे हुए हैं। पिछले दिनों जयललिता के निधन से खाली हुई सीट के लिए उपचुनाव हुआ था। उसमें दिनकरण ने भारी मतों से सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को पराजित किया था। उन्होंने न सिर्फ सत्तारूढ़ दल के मंसूबे को घ्वस्त किया था, बल्कि मुख्य विपक्षी डीएमके को भी शर्मनाकर हार का सामना करना पड़ा था।
दिनकरण में आस्था रखने वाले 18 विधायकों की सदस्यता को पलानीसामी सरकार ने समाप्त करवा दिया है। उन विधायकों ने स्पीकर के उस निर्णय के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है, जिसपर फैसला आना बाकी है।
प्रमुख विपक्षी दल डीएमके ने 5 अप्रैल को कावेरी मुद्दे पर एक दिवसीय बंद का आह्वान किया था, जो कि पूरी तरह सफल रहा। अब विपक्ष के नेता स्टालिन राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रदेश बंद की सफलता उनकी पहली बड़ी जीत है। तमिलनाडु के कई जिलों में फैले एक लाख से अधिक लोगों ने गिरफ्तारी दी और सरकार ने आंदोलनकारियों को शांतिपूर्वक संभालने के लिए पुलिस को निर्देश दे रखा था।
पार्टी के साथ जनता का भारी समर्थन बना हुआ है। यह जानकर स्टालिन आत्मविश्वास से लबालब हैं। लेकिन एआईएडीएमके भी पीछे नहीं है। उसके 37 सांसदों ने 5 मार्च को संसद के पुनरीक्षित बजट सत्र के दौरान कावेरी प्रबंधन बोर्ड के तत्काल गठन की मांग की थी और आखिरी दिन 6 अप्रैल तक इस मसले को वे उठाते रहे। (संवाद)
तमिलनाडु में सत्ता संघर्ष चरम पर
सत्तारूढ़ एआईडीएमके को मिल रही है जबर्दस्त चुनौती
एस सेतुरमन - 2018-04-07 11:32
दिसंबर 2016 में अपने सबसे दुर्जेय एआईएडीएमके मुख्यमंत्री, सुश्री जे जयललिता के निधन के बाद से तमिलनाडु में राजनीतिक उथल-पुथल में रहा है। पहले अम्मा की विरासत का दावा करने वाले दो प्रतिद्वंद्वी गुट सत्ता के लिए एक हो गए और बिना स्पष्ट बहुमत के सत्ता पर काबिज हैं। अब उसको जबर्दस्त चुनौती मिल रही है। यह चुनौती न केवल विपक्षी डीएमके से मिल रही है, बल्कि पार्टी से बाहर कर दिए गए दिनकरण भी सत्ता को डांवाडोल करने का प्रयास कर रहे हैं। डीएमके तो स्टालिन के नेतृत्व में तेजी से प्रदेश की राजनीति में उभर रहा है।