कर्नाटक भी एक ऐसा ही प्रदेश है। वहां लोकसभा की 28 सीटें हैं, जिनमें से 17 पर अभी भाजपा के सांसद हैं। लोकसभा चुनाव में वहां भाजपा अगले साल कैसा प्रदर्शन करती है, उसका अनुमान विधानसभा के हो रहे चुनाव से लगाया जा सकता है। कर्नाटक ही नहीं, बल्कि देश में भाजपा को लेकर क्या मूड बना हुआ है, इसके बारे में भी कुछ अनुमान लगाए जा सकते हैं। इसका कारण यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी के जिस जादू ने भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत दिला दिया था, वह कर्नाटक में भी चल गया था।

क्या मोदी का जादू अभी भी चल रहा है, इसका पता कर्नाटक के चुनाव से लगाया जा सकता है। राजस्थान ने तो यह स्पष्ट कर दिया है कि वहां अब मोदी का जादू नहीं चलता। मध्यप्रदेश में भी भाजपा हारी है, लेकिन जिन सीटों पर वह वहां हारीं, वे सीटें पहले भी कांग्रेस के ही पास थी। इसलिए मध्यप्रदेश के बारे में कुछ अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के एक साथ आने के बाद वहां भाजपा की स्थिति कमजोर होना स्वाभाविक है। इसलिए वहां भाजपा के लोकसभा सांसदों की संख्या मंे भारी गिरावट आएगी। बिहार में भी आसार अच्छे नहीं दिखते।

अब देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक क्या फैसला करता है। वैसे, वहां भाजपा की मिट्टी खराब हो चुकी है। 2014 लोकसभा चुनाव में उसे वहां शानदार सफलता हासिल हुई थी, लेकिन तब और अब मे काफी अंतर आ चुका है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपने आपकों एक मजबूत मुख्यमंत्री के रूप में वहां स्थापित कर चुके हैं। वे कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं, और वही वहां के कांग्रेस के मुख्य चेहरा भी हैं। गुजरात में कांग्रेस का मुख्य चेहरा राहुल गांधी थे और राहुल पर आक्रमण करना प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अन्य नेताओं को आसान होता है। पर सिद्धारमैया पर आक्रमण करना आसान नहीं होगा।

इसका पहला कारण तो यह है कि भाजपा वहां प्रधानमंत्री के एक पिछड़ी जाति के होने का फायदा नहीं उठा सकती। चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को इसका लाभ मिलता रहा है, पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री खुद ओबीसी हैं और उन्होंने जाति जनगणना करवा कर ओबीसी समुदाय के बीच अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई है, लेकिन लीक हुई रिपोर्ट ने लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय की आबादी को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। लिंगायत दावा करते रहे हैं कि प्रदेश में कुल आबादी का वह 18 फीसदी हैं, जबकि लीक की गई रिपोर्ट के मुताबिक उनकी जनसंख्या 14 फीसदी है। वोकालिगा अपने आपको 14 फीसदी बताते थे, लेकिन उनकी आबादी 11 फीसदी ही पाई है। इन आंकड़ों के आने के बाद इन दोनों समुदायों का दबदबा प्रदेश की राजनीति पर घटना स्वाभाविक है और इसका फायदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को मिल रहा है। ओबीसी में उनकी स्थिति मजबूत बनती दिखाई दे रही है।

दलितों और मुस्लिमों की आबादी भी लीक की गई रिपोर्ट के आधार पर ज्यादा दिखाई पड़ रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार कर्नाटक में 16 फीसदी दलित और 14 फीसदी मुस्लिम थे, लेकिन लीक की गई जनगणना रिपोर्ट के अनुसार वहां 19 फीसदी दलित और 14 फीसदी मुस्लिम हैं। मुसलमान को परंपरागत रूप से भाजपा के खिलाफ रहे हैं। मोदी सरकार के बनने के बाद उत्पन्न परिस्थितियों ने उनके भाजपा विरोध को नई ऊंचाई प्रदान कर दी है। लिहाजा वे भाजपा के विरोध में ही वोट डालेंगे, जिसका फायदा कांग्रेस को होगा।

दलित कानून को लेकर 2 अप्रैल को हुए भारत बंद ने इस समुदाय में भाजपा के प्रति खटास पैदा कर दी है। यह घारणा बल पकड़ रही है कि भाजपा दलित विरोधी है और वह आरक्षण को समाप्त कर सकती है। जाहिर है यह तबका भी आमतौर पर भाजपा के खिलाफ ही जाएगा, वैसा वहां दलितों में भी दो गुट बना हुआ है। एक दक्षिणमार्गी दलित वर्ग है, तो दूसरा वाममार्गी दलित वर्ग है। वाममार्गी दलित वर्ग कांग्रेस के खिलाफ रहा करता है, लेकिन दलित कानून और आरक्षण के प्रति संशय उनके मतदान को भी प्रभावित कर सकता है।

मुख्यमंत्री ने सबसे बड़ा हमला भाजपा के मूल आधार लिंगायत पर ही कर डाला है। 18 फीसदी हों या 14 फीसदी लिंगायत कर्नाटक का सबसे बड़ा समुदाय है और यदुरप्पा को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने के बाद भाजपा इस आधार पर अपना एकाधिकार मान रही थी, पर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अलग धर्म का मान्यता देने की लिंगायतों की मांग को स्वीकार कर भाजपा की हालत पतली कर दी है। भाजपा की सरकार केन्द्र में है और अब गंेद उसके पाले में है कि वह लिंगायत को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दे या न दे। भाजपा इस तरह की मान्यता देने का विरोध कर रही है। वह लिंगायतों को हिंदू धर्म से अलग मानने को तैयार नहीं है, जबकि लिंगायत अपनी अलग धार्मिक पहचान चाहते हैं और अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा चाहते हैं, जो केन्द्र सरकार ही दे सकती है।

जाहिर है भाजपा द्वारा उनको अल्पसंख्यक समुदाय मानने का विरोध करने से विधानसभा चुनाव में उसे दिक्कत होगी। लिंगायतों के अधिकांश मठ कांग्रेस का समर्थन करने की घोषणा कर चुके हैं और इस तरह भाजपा का मूल आधार ही अब कमजोर हो गया है। इसके कारण उसकी स्थिति पतली होती जा रही है। भाजपा नेता कर्नाटक सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी बहुत जोरशोर से उठाना चाह रहे हैं, लेकिन इस मामले मे यदुरप्पा भी बदनाम रहे हैं। जाहिर है, कर्नाटक भाजपा की राजनीति के लिए प्रतिकूल दिखाई दे रहा है। (संवाद)