शुरुआत में बीजेपी व्यापारियों की पार्टी थी और अस्सी के दशक के अंत तक, भाजपा के खजाने पर्याप्त नहीं हुआ करते थे क्योंकि बहुत कम कंपनिया भाजपा में दिलचस्पी लेती थी। कांग्रेस स्वतंत्रता की शुरुआत के बाद से भारतीय कारोबारी घरों की प्रिय थी। हालांकि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भारतीय उद्योगपतियों के साथ तालमेल नहीं करना था, लेकिन कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष हमेशा दान के लिए भारतीय बड़े घरों पर निर्भर रहते थे। बिड़ला कांग्रेस पार्टी के सबसे करीबी थे और उन्होंने कांग्रेस सांसदों को भारी संख्या में अपनाया और उनके चुनाव खर्चों का ख्याल रखा। अन्य प्रमुख उद्योगों ने भी कांग्रेस पार्टी को पर्याप्त दान दिया।

यह स्थिति 1977 के बाद बदली, जब जनसंघ जनता सरकार का हिस्सा बन गई और उसके नेताओं ने सरकार के एक हिस्से के रूप में उद्योग के लोगों के साथ तालमेल बैठाना शुरू कर दिया। 1980 में भाजपा का गठन होने के बाद पार्टी नेतृत्व ने उद्योग जगत के असंतुष्ट लोगों को लुभाते हुए अपने पारंपरिक व्यापारियों के आधार के अलावा उद्योग के लोगों को पटाकर रखने पर विशेष ध्यान दिया। एक मजबूत उद्योग लॉबी का गठन भाजपा ने किया और शुरू में यह लॉबी उन लोगों की थी जो विदेशी प्रतियोगिता से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहे थे। बाद में कई मध्यम स्तर के उद्यमी भी भाजपा समर्थक बने। 1989 के बाद की स्थिति बीजेपी के पक्ष में और बेहतर हुई। अगले दस सालों में भाजपा ने उद्योग के लोगों, व्यापारियों और भाजपा के विदेशी मित्रों से भारी धनराशि एकत्र करना शुरू कर दिया। भाजपा ने वी.पी. सिंह की सरकार का पूरा फायदा उठाया। सरकार को बाहर से समर्थन देकर कई प्रमुख पदों पर अपने समर्थकों को स्थापित कर दिया।

भाजपा ने 1999 से 2004 के वाजपेयी के शासन में अपनी स्थिति और मजबूत की और खजाने के मामले में वह कांग्रेस से भी संपन्न हो गई। 2004 से मई 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दस वर्षों के दौरान भी संसाधन जुटाने के मामले में भाजपा मजबूत रही। इस बीच उसने अपने विदेशी आधार का बहुत विस्तार किया। नरेंद्र मोदी को अमेरिका में स्थित समृद्ध गुजराती उद्यमियों ने पसंद किया था और उन्होंने उदारतापूर्वक भाजपा कोष में योगदान दिया। विदेशों में स्थित वीएचपी की शाखाओं के माध्यम से और उनके द्वारा नियंत्रित हिंदू मंदिरों के माध्यम से भी धन भाजपा को आते रहे।

नतीजतन, मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद, संसाधनों के मामले में कांग्रेस कहीं भी बीजेपी के आसपास भी नहीं थी। उद्योग के लोग, जो उसके शासन के दौरान कांग्रेस को उदारता से पैसे देते थे अब सिर्फ उसे टोकन चंदा देने लगे, जबकि वे भाजपा को थोक के भाव में राशि उपलब्ध कराने लगे। इसके अलावा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के उद्योग जगत के नेताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं, जबकि सोनिया और राहुल उनके बीच लोकप्रिय नहीं हैं। कांग्रेस शासन के दौरान कॉरपोरेट मालिक कांग्रेस पार्टी के खजाने को भरने में एक दूसरे से होड़ लेते थे। एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि पिछले चार साल की अवधि में भाजपा को भारतीय कॉर्पोरेट दान का 74 प्रतिशत हिस्सा मिला, वह देश में हुए राजनीतिक बदलावों की तर्ज पर ही है।

संसाधनों के मामले में बीजेपी को कुछ फायदे हैं, जो अब कांग्रेस खो चुकी हैं। भाजपा अब ज्यादातर राज्यों पर शासन कर रही है, जबकि कांग्रेस बहुत कम राज्यों में सत्ता में है। कांग्रेस शासन के दो प्रमुख राज्य कर्नाटक और पंजाब हैं। इस राजनीतिक माहौल ने कांग्रेस के उद्योग चंदादाताओं से और भी दूर कर दिया है। व्यवसायी हारने वालों के साथ अपनी पहचान नहीं कराना चाहते। कांग्रेस उद्योग के लोगों को सुविधा देने की स्थिति में नहीं है। बीजेपी अब सुविधाएं देने के मामले में सबसे आगे है। स्वाभाविक रूप से बीजेपी नेताओं और मंत्रियों को काॅर्पोरेट से मदद मिल रही है। और कांगेस की मदद सूख रही है। इसके कारण कांग्रेस का हिस्सा आने वाले दिनों में भी कम होता जाएगा, जबकि भाजपा के खजाने में बढ़ोतरी होगी। भाजपा के विदेशी मित्रों की गतिविधियों और संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के मंदिरों के प्रबंधन में वीएचपी कार्यकर्ताओं के वर्चस्व के कारण बीजेपी की वित्तीय शक्ति पिछले चार वर्षों में बड़े पैमाने पर बढ़ी है। वास्तव में, भाजपा के एनआरआई समर्थक आधार के प्रमुख सदस्य प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों के कुल वित्तपोषण की जिम्मेदारी लेते हैं। भाजपा के विदेशी संसाधन इतना मजबूत हैं कि वे आगामी लोकसभा चुनाव- खर्चों को घरेलू संसाधन जुटाए बिना भी पूरा कर सकते हैं। अभी, 12 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार में बीजेपी की वित्तीय वित्तीय ताकत पूरी तरह से दिखाई दे रही है। कांग्रेस पार्टी राज्य में सत्ताधारी पार्टी है और उसने संसाधनों को व्यवस्थित करने में कड़ी मेहनत की है, लेकिन फिर भी वह भाजपा की बराबरी नहीं कर पा रही है। जानकार सूत्रों का कहना है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस से कम से कम तीन गुना ज्यादा धन खर्च कर रही है।

कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियां अप्रैल-मई 2019 में आने वाले लोकसभा चुनावों में पैसे की शक्ति के मामले में भाजपा की बराबरी नहीं कर सकते। भाजपा, घरेलू और विदेशी दोनों फंडों के साथ मजबूती से तैयार है। पार्टी ने 2019 के चुनाव के लिए अपने मिशन 350 की घोषणा की है। भाजपा द्वारा हर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए आबंटित धन बहुत अन्य पार्टियों की अपेक्षा बहुत ज्यादा होगा। और वही उसकी सबसे बड़ी ताकत होगी। (संवाद)