बुरहानपुर में पानी की कमी पहले से ही रही है, लेकिन भविष्य की चिंता किए बिना पानी के बेतरतीब दोहन ने इस इलाके में जल संकट को ज्यादा गहरा कर दिया। पूरी दुनिया को पानी सहेजने और उसके समुचित वितरण की सीख देने वाले शहर और उसके आसपास पानी की कमी महसूस होने लगी। बुरहानपुर में आज से तीन दशक पहले भूजल 300 फिट पर मिल जाता था, लेकिन अब यह 600 से 700 फिट गहराई तक चला गया है। 1990 के दशक में 971 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई थी, वहीं इस दशक में 2011 से 2017 तक यह वर्षा का स्तर 679 मिलीमीटर पर आ गया है। मानसून में वर्षा के दिन कम हो गए, जो पहले करीब 60 दिनों तक वर्षा होती थी अब वह 35 से 40 दिनों तक ही सीमित रह गई है।
इलाके में परंपरागत रूप से केले की खेती किए जाने और उसमें पानी के ज्यादा उपयोग ने समस्या को विकराल बना दिया। यद्यपि वर्तमान में केले के स्थान पर अरहर व उन फसलों को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें पानी की खपत कम हो एवं जमीन की उर्वरा भी बरकरार रहे और केले की खेती में पानी का कम से कम उपयोग हो, इसके लिए सिंचाई के आधुनिक तरीके पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन आज यह जरूरी हो गया कि पानी के समुचित उपयोग और वाटर रिचार्ज पर ज्यादा से ज्यादा जोर दिया जाए। स्थानीय विधायक एवं मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस ने पिछले कुछ सालों से पानी बचाने का अभियान चलाया हुआ है। पानी बचाने के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ इलाके में कुछ नवाचारी प्रयोग भी हुए हैं, जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया है।
यहां सबसे ज्यादा जोर ‘‘खेत कुंड’’ पर दिया जा रहा है। खेत कुंड यानी खेत के ढलान वाले हिस्से में 3 मीटर लंबा-चैड़ा-गहरा एक कुंड, जिससे कि वहां का पानी कुंड के सहारे जमीन में चला जाए और वाटर रिचार्ज हो सके। इसके लिए बुरहानपुर में अभियान चलाया जा रहा है और किसानों को खुद के खर्चे से खेत कुंड बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि खेत का पानी खेत में ही रुक जाए। श्रीमती अर्चना चिटनिस मानती हैं कि ये जल कुंडियां किसी भी बड़े तालाब की तुलना में भूजल के लिहाज से ज्यादा फायदेमंद साबित होती हैं। बुरहानपुर के फोपनार, बिरोदा, चापोरा, बोरसल, इछापुर, भावसा, जम्बूपानी, मोहद, बंभाड़ा एवं खामनी गांवों में किसानों ने खेत कुंड बनवाए हैं। खेत कुंड से भू-जल स्तर बढ़ने के साथ ही आस-पास के कुएं और टय्बवेल भी रिचार्ज होगें। इसे बारिश के पहले बनाना होता है। वाटर रिचार्ज के लिए खेत कुंड जैसे नवाचार के प्रति किसानों का आकर्षण तेजी से बढ़ा है। और इन गांवों के किसानों से प्रेरित होकर अन्य गांव के किसान भी खेत कुंड बनाने लगे हैं।
इसके साथ ही पारंपरिक जल स्रोतों को भी सहेजने एवं उन्हें पुनर्जीवित करने का काम किया जा रहा है। कुछ वैसे कुएं, जो पानी के बेहतरीन स्रोत थे, उनको पुनर्जीवित कर वहां बोर्ड लगाया गया है, जिसमें कुंआ कहता है, ‘‘मैं पीढ़ियों से आपकी प्यास बुझा रहा हूं......मैं जिंदा रहना चाहता हूं........कचरे का डब्बा नहीं हूं....आप मुझे संभालें, मैं आपको संभालूंगा।’’ इस अपीलिंग बोर्ड से लोगों में जल स्रोतों के प्रति जागरूकता देखने को मिल रही है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जल संकट से जूझता बुरहानपुर भविष्य में फिर एक बार जल सहेजने एवं उसे समुचित प्रबंधन के साथ वितरण के अपने तरीके के लिए जाना जाएगा। (संवाद)
खेत-खेत में कुंड से बढ़ेगा भूजल
पानी सहेजने के लिए नवाचार पर जोर
राजु कुमार - 2018-04-16 12:50
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में स्थित कुंडी भंडारा को देखने के लिए देश-दुनिया के लोग पहुंचते हैं। कुंडी भंडारा वह ढांचा है, जिसे 1615 में मुगल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने बनवाया था। कुंडी भंडारा एक जल संरचना है। उस समय बुरहानपुर में जल संकट था, जिससे निपटने के लिए यह जल संरचना इराक व ईरान की तर्ज पर बनाई गई थी। यह आज भी चालू अवस्था में है। मुगल बादशाह अकबर के समय बुरहानपुर एक प्रमुख सैनिक छावनी थी। बुरहानपुर को दक्खिन का द्वार माना जाता था। इसलिए इस महत्वपूर्ण नगर में पानी उपलब्ध कराने के लिए इसे बनाया गया था।