वह हड़ताल बिल्कुल ही अनूठी थी। उससे लोग परेशान हो रहे थे, लेकिन उसकी खासियत यह थी कि उसका प्रायोजक या आयोजक कोई नहीं था। किसी ने सार्वजनिक रूप से उसके लिए अपील नहीं की थी। उस हड़ताल का कोई नेता नहीं था। वह युवकों ने सोशल मीडिया के माध्यम से कठुआ के बलात्कार की घटना के खिलाफ अपना विरोध प्रकट करते हुए उस हड़ताल का आहवान किया था। अज्ञात युवकों ने सोशल मीडिया के द्वारा उसकी अपील की। उसी के द्वारा उसे फैलाया गया और फिर सोमवार की सुबह का नजारा ही अलग था।
उस हड़ताल से सबसे ज्यादा कासरगोड, कन्नूर, कोझीकोड, मलप्पुरम और पलक्कड़ के उत्तर केरल जिले प्रभावित हुए। उसमें हिंसा भी खूब हुई। पूरे राज्य के कई स्थानों पर गुस्साई भीड़ को हटाने के लिए पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। भीड़ हिंसक हो रही थी और उसके कारण ट्रैफिक अवरुद्ध हो रहा था। हड़ताल के प्रायोजक परदे के पीछे ही बने रहे।
लेकिन पुलिस को दो राजनीतिक संगठनों के हाथ होने पर संदेह है जो उग्रवादी झुकाव का दावा करते हैं। मुस्लिम-प्रभुत्व वाले मलप्पुरम और कोझीकोड ने हिंसा की मार सबसे ज्यादा झेली। हड़ताल के दौरान लगाए गए नारांे का उद्देश्य सांप्रदायिक उन्माद को हवा देना था। हिंसा के मद्देनजर मलप्पुरम जिले के कुछ हिस्सों में पुलिस को निषेधाज्ञा का आदेश जारी करना पड़ा।
हड़ताल ने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को आश्चर्यचकित कर दिया है। इन पार्टियों के नेताओं ने तुरंत अपने आपको हड़ताल से अलग घोषित कर दिया और उसे चरमपंथी संगठनों द्वारा रची गई साजिश बताते हुए जोरदार प्रतिक्रिया व्यक्त की। सीपीआई (एम) के राज्य सचिव कोडियरी बालाकृष्णन ने राज्य में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश करने का आरोप इन कट्टरपंथी संगठनों पर लगाया। उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को झूठे प्रचार के शिकार होने से बचने कर चेतावनी दी।
विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने भी इसी तरह की भावनाओं को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक विभाजन को बनाने के प्रयासों का विरोध करना चाहिए और उसे पराजित भी करना चाहिए। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के महासचिव केपीए मजीद ने कहा कि उनकी पार्टी का हड़ताल से कोई लेना देना नहीं है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के राजशेखरन ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को हड़ताल के प्रायोजकों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया, जो लोगों को सांप्रदायिक लाइन पर बांटने की कोशिश कर रहे थे।
ऐसी हड़ताल सफलतापूर्वक आयोजित भी की जा सकती है। यह तथ्य पुलिस और राज्य खुफिया विभाग पर एक गंभीर टिप्पणी है। सोशल मीडिया में हड़ताल के लिए कॉल के बावजूद पुलिस सो रही थी। उसे इसके खिलाफ तैयारी करनी चाहिए थी। इस शरारत को दबाना चाहिए था। लेकिन यह अपने कर्तव्य में निराशाजनक रूप से असफल रही।
मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को भी इस प्रकरण से सही सबक सीखना चाहिए। अगर केवल वे सतर्क रहे, तो शरारती निराश हो सकते हैं। तथ्य यह है कि किसी ने सोशल मीडिया के माध्यम से हड़ताल कॉल को गंभीरता से नहीं लिया। पार्टियों और पुलिस ने इसे लापरवाही से लिया और सोशल मीडिया पर चल रहे प्रचार को कुछ लागों की शरारत भर समझा।
हड़ताल के वास्तविक प्रायोजकों ने खुद को गुमनाम रहने का फैसला किया। पर्दे के पीछे रहकर, उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के अपने भयावह खेल को अंजाम देना चाहा। यह राहत की बात है कि उनके खतरनाक डिजाइन सफल नहीं हुए। लेकिन राज्य के लिए यह एक चेतावनी है। (संवाद)
एक ऐसी हड़ताल, जिसे किसी ने आयोजित नहीं किया
केरल में घटी एक आश्चर्यजनक घटना
पी श्रीकुमारन - 2018-04-19 12:42
तिरुवनंतपुरमः केरलवासी पिछले सोमवार को जब सोकर उठे, तो उन्होंने उस सुबह एक अलग किस्म की हड़ताल देखी।