बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के बीच यह मांग भी तेज होती जा रही है कि बलात्कारियों को फांसी की सजा दे दी जानी चाहिए। फिलहाल इस तरह का प्रावधान हमारे कानून में नहीं है, लेकिन बलात्कार के बाद हत्या कर दिए जाने की स्थिति में फांसी की सजा देने का प्रावधान है और वह सजा वस्तुतः हत्या के कारण दी जा जाती है। ह्त्या के सभी मामलों में भी बलात्कार की सजा नहीं दी जाती। दुर्लभतम मामलों में फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान है। बलात्कार के बाद हत्या के मामले को दुर्लभ अपराध की श्रेणी में रखकर फांसी की सजा सुनाई जा सकती है और कुछ साल पहले दिल्ली में हुए निर्भया बलात्कार के मामले में अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई गयी थी। लेकिन अभी भी वह मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने का इंतजार कर रहा है।
बालात्कार एक जघन्य अपराध है और सच कहा जाय तो यह पीड़िता को एक ऐसी स्थिति में पहुंचा देने का अपराध है, जहां वह अपने को न तो जिंदा समझती और न ही मृत। इसलिए यदि इस तरह के अपराध के लिए भी फांसी की सजा का प्रावधान हो तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन सवाल यह है कि क्या अपराधियों को फांसी की सजा का प्रावधान करने से ही बलात्कार की घटनाएं समाप्त हो जाएंगी? तो इसका जवान नकारात्मक ही होगा।
दिल्ली के निर्भया काण्ड के बाद जस्टिस वर्मा समिति बनी थी। उसने बलाकार के कानून को सख्त बनाने के लिए कुछ सिफारिशें कीं और उसके आधार पर कुछ नए कानूनी प्रावधान किये गए, जिसमे एक था पीड़िता को घटना के बाद मजिस्ट्रेट के सामने कानूनी अपराध संहिता के तहत बयान दर्ज करने के लिए पेश करना, ताकि बाद में उस पर दबाव डालकर मुकदमे की सुनवाई के समय बयान नहीं बदलवाया जा सके। लेकिन उन्नाव बलात्कार मामले में इस प्रावधान का भी दुरुपयोग देखा जा सकता है। पुलिस ने तो, जैसा कि आरोप है, उस लड़की को डरा धमका कर गलत बयान मजिस्ट्रेट के सामने दिलवा दिया, जिसमे मुख्य बलात्कारी का नाम ही नहीं था। अब मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए उसी बयान को आधार बना कर आरोपी विधायक अपने को पाक साफ बता रहा है।
इसे हम निर्भया काण्ड के बाद बने तथाकथित कानून की विफलता ही कहेंगे कि उसके बाद भी बलात्कार के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। और अब तो बलात्कार के बाद ह्त्या के मामले भी सामने आ रहे हैं, ताकि पीडिता पुलिस के सामने शिकायत करने या मजिस्ट्रेट के सामने बयान देने के लिए जिंदा ही नहीं रहे। सच कहा जाय, तो तथाकथित कड़े कानून से महिलाओं के बलात्कार की आशंकाएं पहले से भी अधिक हैं।
दरअसल, बलात्कार की किसी लोमहर्षक घटना के बाद देश भर में उबाल आता है और बलात्कारियों को फांसी की सजा की बात करते करते गुस्से का यह उबाल समाप्त भी हो जाता है, लेकिन न्यायिक प्रणाली में जो व्यवस्थागत खामियां जिनके कारण बलात्कार की घटना पर लगाम नहीं लग रही है, उस पर चर्चा होती ही नहीं। बढ़ती बलात्कार की घटना का एक बड़ा कारण है बलात्कारियों को जल्द से जल्द सजा नहीं मिल पाना। उसे आप फांसी दें या 7 या 10 साल की सजा, लेकिन उसे सजा जल्दी मिलनी चाहिए। बलात्कारी के पकडे जाने के तुरंत बाद फास्ट कोर्ट में मामला ले जाया जाना चाहिए और एक जल्द से जल्द, हो सके तो एक ही सप्ताह में, उसे सजा मिल जानी चाहिए, तभी बलात्कार करने वालों को कानून का खौफ सताएगा।
लेकिन हो रहा बिलकुल उलटा है। निर्भया काण्ड के बाद फास्ट ट्रैक अदालत की बहुत चर्चा हुई थी। कहा गया था कि इस तरह के मामलों को फास्ट ट्रैक अदालत में ले जाया जाएगा, लेकिन वह चर्चा सिर्फ चर्चा ही रह गयी। निर्भया के हत्यारों को फांसी की सजा सुना तो दी गयी है, लेकिन उन्हें फांसी पर लटकाना अभी बाकी है, जबकि उस घटना के 5 साल से भी ज्यादा हो गए हैं। बापू आसाराम और उनके बेटे पर भी बलात्कार का मामला चल रहा है। वर्षों हो गए हैं, लेकिन अभी तक मुकदमा किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है।
जब किसी बलात्कार काण्ड पर पूरे देश उद्वेलित हो और उसकी स्मृति लोगों के जेहन में बनी हुई हो, उसी दौरान यदि सजा सुना दिया, जाए तो बलात्कार की मानसिकता रखने वाले लोग दहल जाएंगे और वे उस तरह के अपराध को अंजाम देने से डरेंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं है और बलात्कारी मानसिकता पर असर नहीं पड़ता।
इसलिए सजा को ज्याद कठोर करने की अपेक्षा जल्द सजा सुनाये जाने पर जोर होना चाहिए। इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया तो तेज करना होगा। बलात्कार के सभी मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में में जाना चाहिए और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी बलात्कार के मामलों की जल्द सुनवाई का प्रावधान होना चाहिए, तभी इस तरह की आपराधिक घटनाओं में कमी आएगी। फांसी की सजा के प्रावधान मात्र से बलात्कार की घटनाओं में कमी नहीं आ सकती। (संवाद)
बलात्कार की बढ़ती घटनाएं
तीव्र न्याय से ही इन्हें रोका जा सकता है
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-04-20 10:42
बलात्कार की घटनाएं छूत की बीमारी की तरह फैलती जा रही है। पहले बलात्कार की घटनाओं की खबर आती थीं, अब सामूहिक बलात्कार की घटनाओं की खबरें ज्यादा आती हैं। बलात्कार की घटनाएं अपने आप में लोमहर्षक होती हैं और यदि किसी बच्ची के साथ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की घटना की खबरें सुनने को मिले, तो फिर नीचे से ऊपर तक हिल जाना सभ्य समाज के व्यक्ति के लिए स्वाभाविक है। इसके बाद सहज ही यह विचार जेहन में आता है कि ऐसे लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया जाना चाहिए।