कांग्रेस ने आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की नियुक्ति रोक दी गई है क्योंकि बीजेपी सरकार स्वतंत्र स्वतंत्र न्यायाधीश नहीं चाहती है और यही जो कांग्रेस दुनिया को दिखाने की कोशिश कर रही है और इसके लिए उसपे युद्ध छेड़ दिया है।
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ, जो उत्तराखंड उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश हैं, स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट के लिए उपयुक्त न्यायाधीश की बीजेपी की परिभाषा में फिट नहीं हैं क्योंकि उन्होंने भाजपा के पक्ष में एक बार फैसला नहीं दिया था। उनकी फाइल को फिर से विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में वापस भेज दिया गया है। सरकार यह भी कहती है कि न्यायमूर्ति केएम जोसेफ से ज्यादा वरिष्ठ 11 न्यायाधीश अन्य न्यायाधीश हैं।
मोदी सरकार स्पष्ट रूप से सोचती है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और उच्च न्यायालयों में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों सहित उच्च न्यायपालिका में पहले से ही केरल से बहुत से न्यायाधीश हैं। केरल से एक और न्यायाधीश का प्रमोशन इसलिए, न्यायसंगत नहीं है। सरकार यह भी कह सकती है कि जोसेफ नाम के अन्य बहुत से न्यायाधीश पहले से ही हैं!
कांग्रेस को जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि कांग्रेस खुद दोषी है। सत्ता में रहने पर उसने अपने समय के में वरिष्ठ न्यायाधीशों को लांघकर जूनियर न्यायाधीशों को नियुक्त किया था। प्रसाद कहते हैं, कांग्रेस के अपने रिकॉर्ड इतने खराब हैं कि उसके इस मामले पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है। उनका आरोप है कि कांग्रेस ने हमेशा न्यायपालिका की गरिमा से समझौता किया है।
उम्मीद के अनुसार, प्रसाद ने कांग्रेस पर बैलिस्टिक मिसाइल चलाते हुए बीच में आपातकाल को भी ला खड़ा कर दिया। उन्होंने याद दिलाया कि कांग्रेस ने उस समय कैसे न्यायपालिका की ऐसी तैसी कर दी थी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला पारित किया था। प्रसाद ने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों के बारे में उनसे बात करने का कांग्रेस का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
लेकिन इंदिरा गांधी की गलतियों के लिए न्यायमूर्ति केएम जोसेफ को दंडित क्यों करें? आपातकाल 40़ साल पहले हुआ था। उस समय न्यायमूर्ति केएम जोसेफ तो एक युवक थे, शायद वे एक महत्वाकांक्षी न्यायाधीश भी नहीं नहीं रहे होंगे।
केंद्र को कोलेजियम में फाइल वापस भेजने का अधिकार है। लेकिन अगर कॉलेजियम दूसरी बार सरकार को फाइल भेजता है, तो सरकार स्वीकार करने के लिए बाध्य है। अगर यह तब भी न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की नियुक्ति को खारिज कर देता है, तो कांग्रेस से सहमत होने का कारण है होगा कि मोदी सरकार न्यायपालिका को अपने लोगों से भर देना चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई है, वह सही विकल्प है क्योंकि हमेशा सर्वोच्च न्यायालय में कम से कम एक महिला होनी ही चाहिए और अब तक न्यायमूर्ति फातिमा बीबी से शुरू होकर केवल छह महिला सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश रही हैं।
यही कारण है कि इन्दु मल्होत्रा के नाम पर न तो भाजपा को कोई आपत्ति हो सकती है और न ही कांग्रेस ना नुकुर कर सकती हैं, क्योंकि महिला वोट बैंक का मामला है। दोनों में से किसी को भी महिला विरोधी नहीं दिखना है। बार बार चुनाव हो रहे हैं और दोनों को चुनावों में महिलाओं के वोट चाहिए।
लेकिन न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ईसाई हैं और बीजेपी उनकी नियुक्ति करते समय ध्यान रखेगी कि केरल या अन्य जगहों पर उसका हिन्दू वोट बैंक खराब न हो जाय। हिन्दु सबसे पहले एक हिन्दू पार्टी है और उसके बाद ही वह एक राष्ट्रवादी पार्टी है।ट्रवादी पार्टी है।
दूसरी तरफ कांग्रेस को अपना आधार, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष वोट बैंक देखना है जिसमें मुस्लिम और ईसाई धर्म जैसे अल्पसंख्यक प्रमुख रूप से हैं। केरल में, ईसाई वोट बैंक बहुत महत्वपूर्ण है। (संवाद)
जजों की नियुक्तियांः इस युद्ध का अंत नहीं
केएम जोसेफ के खिलाफ भाजपा को अनेक आधार हैं
सुशील कुट्टी - 2018-04-27 11:17
न्यायाधीशों पर युद्ध निरंतर जारी है। यदि युद्ध रेखाएं खींची जाती हैं, तो युद्ध के मैदान के कैनवास दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। अब, मामला सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों तक पहुंच गया है। जबकि एक न्यायाधीश को कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सहमति से नियुक्त किया गया है, तो मलयाली न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति पर संघर्ष चल रहा है।