पर उसकी यह सोच कर्नाटक राज्य में सफल होती नजर नहीं आ रही है। कर्नाटक में जहां कांग्रेस का वजूद अभी भी जीवन्त नजर आ रहा है ,ऐसे हालात में कांग्रेस के गढ़ को ढाह पाना भाजपा के लिये मुश्किल सा लगने लगा है पर वह अतंतः कांग्रेस के गढ़ को गिराकर अपना परचम फहराने के प्रयास में जुड़ी दिखाई दे रही है। इसके लिये वह वहां के प्रमुख विपक्ष राजनीतिक दल जनता दल सेकुलर से ताल मेल बिठाने के प्रयास में भी लगी हुई है जब कि इस मामले में जनता दल सेकलुर अभी तटस्थ नीति को अपनाये हुये है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, उ.प्र. मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी सहित भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेता कर्नाटक विधान सभा सीट पर विजय हासिल करने के प्रयास में पूर्णरूपेण जुड़े दिखाई दे रहे है। इस राज्य के चुनाव से भाजपा के आगे का भाविष्य भी तय होना है। जहां वर्ष के अंतराल में देश के प्रमुख भाजपा शासित राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसढ़ विधान सभा के चुनाव होने वाले है एवं आगामी वर्ष के प्रारम्भ में लोकसभा के चुनाव ।
वर्तमान में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है जहां सŸाा परिवर्तन की उम्मीद लगाये भाजपा कर्नाटक में अपनी जीत मान बैठी है पर हालात उसकी इस उम्मीद से काफी दूर नजर आ रहे है। वहां के प्रमुख लिंगायत समूह जो कभी भाजपा के साथ रहे, फिलहाल भाजपा के साथ खड़े नजर नहीं आ रहे है। केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियां जहां पेट्रोल एवं डिजल की बढ़ती जा रही कीमतें आम जन को भाजपा से दूर करती नजर आ रही है जिसका प्रतिकूल प्रभाव कर्नाटक सहित आगामी हर चुनावों पर पड़ता दिखाई दे रहा है।
भाजपा में नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह का भी आंतरिक विरोध बढ़ता नजर आने लगा है। इस तरह के हालात आगामी चुनावों में भाजपा को सŸाा के करीब ला सकेंगे कह पाना मुश्किल है। कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का आमजन मंे कोई विशेष विरोध नजर नहीं दिखाई दे रहा है। भापजा ने बी.एस.येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बतौर पेश किया है , जिन्हें उम्मीद है कि कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभाव से भाजपा की ही सरकार बनेगी पर वर्तमान हालात में कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनती नजर नहीं आ रही है। वैसे कर्नाटक का चुनाव किसके पाले में जायेगा अभी कह पाना मुश्किल है। जबकि सर्वे कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहे है पर सर्वे में यह भी बात उभर कर सामने आ रही है कि कर्नाटक विधान सभा का भविष्य पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा का दल जनता दल सेकुलर के हाथ हो सकता है।
कर्नाटक चुनाव पर फतह हासिल करने के सारे राजनीतिक हथकंडे मुख्य दोनों राजनीतिक दल भाजपा एवं कांग्रेस द्वारा अपनाये जा रहे है। कर्नाटक के चुनाव को प्रभावित करने वाले लिंगायत गु्रप को अपने पक्ष में करने के सभी प्रयासरत्् है। आमजन को लुभाने के लिये बजट में लुभावनी घोषणाएं भी की जा रही है। कांग्रेस फिर से सŸाा में वापसी के लिये अपने घोषण पत्र के माध्यम से रोजगार से जुड़ी अनेक जनहितकारी योजनाओं को लागू करने का आश्वासन दे रही है तो भाजपा केन्द्र में सŸाा होने का झांसा देकर सŸाा में आने पर कर्नाटक विकास में चार चांद लगा देने का वादा आमजन के बीच कर रही है। देश की जनता अब सबकुछ समझने लगी है। उसे किसी की घोषणाओं पर विश्वास नहीं रहा। इसलिये कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में केन्द्र एवं राज्य सरकार के क्रियाकलाप प्रभावी रहेंगे। इसी आधार पर जनमत का फैसला टिका है।
कर्नाटक में जनता दल सेकुलर की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। जनता किसके पक्ष में अपना जनमत देती है यह तो चुनाव उपरान्त ही पता चल पायेगा पर फिलहाल किसी भी दल को सपष्ट बहुमत मिल पाना संभव नहीं दिख रहा। कांग्रेस को भाजपा से सर्वाधिक जनमत मिलने की संभावना तो की जा रही है पर सŸाा तक पहुंचने में किसी के सहयोग की जरूरत पड़ सकती है। इस तरह के हालात में जनता दल सेकुलर की भूमिका किंगमेकर की हो सकती है। वैसे इस पृृष्ठिभूमि में जनता दल सेकुलर के प्रमुख पूर्व पी.एम. एच.डी देवगौड़ा प्रारम्भिक दौर में भाजपा को समर्थन नहीं देने की घोषणा भी कर चुके है पर राजनीतिक दांव - पेंच में कब कथन बदल जाय कह पाना मुश्किल है। इस चुनाव में निर्दलीय भी हावी हो सकते है। कर्नाटक का युवा वर्ग का प्रवाह किस ओर जाता है, इसपर भी कर्नाटक का परिणाम टिका हुआ है। अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय नेतृृत्व का उभरा असंतोष भी कर्नाटक चुनाव को प्रभावित कर सकता है। सब मिलाकर देखा जाय तो कर्नाटक में फिलहाल अपले बल पर सरकार बना लेने की स्थिति किसी भी दल में स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रही है। कांग्रेस एवं भाजपा दोनों की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। (संवाद)
कांग्रेस एवं भाजपा के लिए प्रतिष्ठा बना कर्नाटक का चुनाव
पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा बन सकते हैं किंगमेकर
डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2018-05-04 10:31
दक्षिण भारत के कर्नाटक में, जहां कांग्रेस सŸााधारी है, मई माह के दूसरे सप्ताह में होने जा रहे विधान सभा चुनाव क्षण प्रति क्षण रोचक बनते जा रहे है जहां देश के प्रमुख दो राष्ट्रीय राजनैतिक दल भाजपा एवं कांग्रेस आमने सामने है जिनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वहां कांग्रेस अपनी सŸाा को बरकरार रखने के प्रयास में जी तोड़ मेहनत कर रही है वहीं भाजपा पूर्वोत्तर भारत की त्रिपुरा एवं मेघालय राज्य में अपना परचम लहराने के बाद दक्षिण भारत की प्रमुख विधान सभा क्षेत्र कर्नाटक पर अपना विजय पताका फहराकर यह साबित करने के अथक प्रयास में जुटी दिखाई दे रही है कि देश के चारो ओर उसी का सम्राज्य स्थापित हो चला है।