2003 में बीजेपी सत्ता में आने के बाद सभी मायनों में प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है। आम तौर पर लोगों को सभाओं में भाग लेने के लिए लाया जाता है, लेकिन इस बार लग रहा है कि लोग स्वयं ही आए थे। इस बड़ी भीड़ का मतलब क्या है? सबसे पहले इसका मतलब है कि लोग वर्तमान सरकार से तंग आ चुके हैं। 1956 में प्रदेश के गठन के बाद से राज्य भ्रष्टाचार में उतना लिप्त कभी नहीं था, जितना आज है।
जिस दिन कमलनाथ भोपाल आए हुए थे, उसी दिन एक उत्पाद अधिकारी के कार्यालय और घर में पड़े छापे में कई करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई। लगभग हर दिन इस तरह के छापे आयोजित किए जाते हैं और आय के ज्ञात स्रोतों के मुकाबले असमानता पाई जाती है। व्यापम घोटाले ने कई युवाओं को बर्बाद कर दिया है। ग्रामीण इलाकों में अराजकता है। किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के मामले में मध्यप्रदेश भारत में सबसे आगे है।
नौकरशाही में लगभग अराजकता की स्थिति बनी हुई है। सिविल सेवा दिवस को मनाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्यमंत्री चौहान ने इस तथ्य को स्वीकार किया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भारत और पाकिस्तान की तरह व्यवहार करते हैं। टिप्पणी प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में सदमे की लहर की तरह फैली। मध्यप्रदेश की स्थिति ऐसी है कि नीतिय आयोग के उपाध्यक्ष ने टिप्पणी की कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को देश की धीमी प्रगति के लिए जिम्मेदार है। नीति आयोग का यह अवलोकन चौहान के उस दावे के विपरीत है कि मध्य प्रदेश अब बिमारु राज्य नहीं रहा।
कमल नाथ का स्वागत करने के लिए भारी संख्या में आए लोगों का दूसरा कारक यह था कि वह अकेले नहीं आए थे। वह कांग्रेस के सभी समूह के नेताओं के साथ वे आए थे। इससे पहले सोचा गया था कि कमलनाथ दिग्विजय सिंह को महत्व नहीं दे सकते हैं। लेकिन जो लोग ऐसा सोचते थे, वे निराश हुए जब उन्हें पता चला कि कमल नाथ को चार्ज मिलने के बाद की गई अधिकांश नियुक्तियां उन लोगों की की गई थीं जो दिग्विजय सिंह के बहुत करीब हैं। उनमें से एक मानक अग्रवाल थे, जिन्हें राज्य कांग्रेस के जनसंपर्क सेल का प्रमुख बनाया गया था। गौरतलब है कि अरुण यादव को राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पीसीसी कार्यालय में आने से उन्हें रोक दिया गया था।
अग्रवाल को दिग्विजय सिंह कावफादार माना जाता है। गोविंद गोयल, एक अन्य दिग्विजय वफादार, को राज्य कांग्रेस का कोषाध्ययक्ष बनाया गया था। अपने असहनीय व्यवहार के कारण गोयल को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। कुछ समय के लिए वह एक समानांतर कांग्रेस चला रहे थे। उनकी नियुक्ति से पता चलता है कि पार्टी मशीनरी पर दिग्विजय सिंह की पकड़ बरकरार है। यही कारण है कि कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि आखिरकार चौहान बनाम कमल नाथ-दिग्विजय सिंह मुकाबला अब माध्य प्रदेश में हो सकता है।
कमल नाथ ने भोपाल में अपने संक्षिप्त प्रवास के दौरान पार्टी के लोगों से मुलाकात की, चयनित नेताओं को कार्य सौंपा। भोपाल में रहने के बाद कमलनाथ ने देवताओं का आशीर्वाद मांगने के लिए अपनी धार्मिक यात्रा शुरू की। उन्होंने पहले भोपाल में गुफा मंदिर का दौरा किया, फिर उज्जैन के लिए चले गए और महाकाल मंदिर में अभिषेक किया। उज्जैन से वह पित्तारा देवी के आशीर्वाद लेने के लिए दतिया गए।
शायद कमल नाथ की नियुक्ति के बाद उनके पक्ष में हो रही लोकप्रिय प्रतिक्रिया से परेशान बीजेपी ने भोपाल में तेज परामर्श शुरू कर दिया है। नई कांग्रेस टीम के प्रभाव का आकलन करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यहां दो घंटे की यात्रा पर थे। तय कार्यक्रम के अनुसार उन्हें हवाई अड्डे से बैठक के स्थान पर जुलूस में जाना था, लेकिन अचानक कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। रद्द करपने के लिए समय की कमी को कारण बताया गया, लेकिन कांग्रेस के लोगों ने टिप्पणी की कि भारी स्वागत समारोह में कमल नाथ से तुलना में होने के डर से अमित शाह का जुलूस रद्द किया गया। (संवाद)
कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में डाला बड़ा प्रभाव
उमड़ती भीड़ से भाजपा परेशान
एल एस हरदेनिया - 2018-05-07 09:47
भोपालः कमल नाथ की भोपाल की यात्रा और उनके भव्य स्वागत ने मध्यप्रदेश की राजनीति में एक नया अध्याय खोल दिया है। उनके परिपक्व व्यवहार ने सत्तारूढ़ बीजेपी को यह महसूस करने के लिए मजबूर कर दिया है कि चुनौती असली है और यह आत्ममुग्ध होने का जोखिम नहीं उठा सकती।