लेकिन राजनेताओं को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने का शौक भी चढ़ता है। खासकर जब उनके अपने हित उस फैसले से जुड़े होते हैं, तो वे वैसा जरूर करते हैं। इसलिए दो साल पहले आए फैसले को निरस्त करने के लिए अखिलेश सरकार ने एक विधेयक विधानसभा से पारित कर कानून बनवा दिया था और पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले खाली न हों, इसके लिए कुछ प्रावधान उसमें शामिल कर दिए गए थे। इस तरह पूर्व मुख्यमंत्री अपने अपने बंगले पर काबिज रहे और सुप्रीम कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी हो गया।

पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बंगला बचाने वाले उस कानून के उन प्रावधानों को ही निरस्त कर दिया है, जिनके कारण वे बंगले पर अपने कब्जे को अपना अधिकार मानते थे। उन कानूनी प्रावधानों के सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त होने के बाद अब शायद उन पूर्व मुख्यमंत्रियों के पास कोई विकल्प नहीं बच गया है और उन्हें अब अपने अपने बंगले खाली ही करने पड़ेंगे।

यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचने वाला व्यक्ति अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद अपनी सुख-सुविधाओं का अग्रिम प्रबंध कर लेता है। पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले इसी के नतीजे हैं। उत्तर प्रदेश में यह बहुत पहले से चलता आ रहा है। 1980 के दशक में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री के पद से हटे थे, तो उनकी जगह मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले नारायण दत्त तिवारी ने संपदा निदेशालय को यह आदेश दिया कि पूर्व मुख्यमंत्री होने के कारण उनको एक बड़ा बंगला आबंटित कर दिया जाय। उस आदेश पर संपदा निदेशालय के अधिकारी ने आपत्ति की। उस आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया गया। लेकिन उसका असर यह हुआ कि बड़े बंगले की जगह छोटे बंगले आबंटित किए गएं

उसके बाद तो परंपरा ही बन गयी। आज उत्तर प्रदेश के छह पूर्व मुख्यमंत्रियों के पास इस तरह के बंगले हैं। वे मुख्यमंत्री हैं- नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, मायावती, राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव। इन सबके पास बड़े बड़े बंगले हैं जिनका किराया बाजार मूल्य के हिसाब से प्रति महीना लाखों में है, लेकिन ये लोग नाम मात्र का किराया देकर उन्हें अपने कब्जे में रखे हुए हैं। इन पूर्व मुख्यमंत्रियों में से कुछ के पास एक साथ दो दो सरकारी बंगले भी हैं।

सबसे पुराने मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को ही लें। प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तर प्रदेश के बाशिंदे भी नहीं रह गए हैं। वे उत्तराखंड के निवासी हैं और वहां मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। फिर भी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से एक बंगले पर काबिज हैं। यही नहीं, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्हें वहां भी एक सरकारी बंगला मिला हुआ है। यानी वे बिना किसी पद पर रहे दो सरकारी बंगले में रह रहे हैं। एक समय तो वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी थे और राजभवन में रह रहे थे। तो उस समय उनके पास तीन सरकारी बंगले थे। अब उन्हें लखनऊ का बंगला खाली करना होगा और यदि उनमें नैतिकता होगी, तो वे उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से प्राप्त अपने बंगले भी खाली कर देंगे। पर उनसे इस तरह की नैतिकता की उम्मीद करना बेमानी है।

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अभी राजस्थान के राज्यपाल हैं। जयपुर के राजभवन में उनका निवास है, लेकिन लखनऊ में भी उनके पास एक बड़ा सरकारी बंगला है। वे रहते हो जयपुर में ही हैं, लेकिन पता नहीं लखनऊ के बंगले का किस तरह इस्तेमाल करते हैं। यह सरकारी संसाधनों का भारी दुरुपयोग ही कहा जाय।

कल्याण सिंह के अलावा एक अन्य भाजपा नेता राजनाथ सिंह भी हैं, जो इस समय देश के गृहमंत्री हैं। गृहमंत्री की हैसियत से उनके पास दिल्ली में एक बड़ा बंगला है, लेकिन उत्तर प्रदेश में भी वे एक बड़े बंगले पर काबिज हैं। यही हाल मुलायम सिंह यादव का भी है। वे एक सांसद हैं और देश के पूर्व रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। अपनी वरिष्ठता के कारण दिल्ली में एक बड़े बंगले के हकदार तो वे हैं ही और वह हक उन्हें मिला हुआ भी है, लेकिन उनके पास लखनऊ में भी एक सरकारी बंगला मिला हुआ है।

मायावती अभी सांसद नहीं हैं और इसलिए दिल्ली में सरकारी बंगले के लिए अधिकृत नहीं हैं, लेकिन जब वे सांसद थीं, तो उनके पास भी दिल्ली में एक बड़ा बंगला था। जब वे मुख्यमंत्री थीं, तो उन्होंने अपने भूतपूर्व होने की दशा में पहले से ही अपने नाम एक बंगला आबंटित कर लिया था। उसके साथ एक और बंगले को जोड़कर उसका रकबा और भी बढ़ा लिया था। इतने में ही उनको संतोष नहीं हुआ। उन्होंने भूतपूर्व मुख्यमंत्री वाले अपने बंगले पर सरकारी खजाने से 80 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर डाले थे। सरकारी पैसे के दुरुपयोग का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता! यह क्या बात हुई कि कोई मुख्यमंत्री बनते ही अपने नाम दो बंगला आबंटित कर ले- एक बंगला मुख्यमंत्री होने के नाते और दूसरा बंगला भूतपूर्व मुख्यमंत्री की संभावित हैसियत प्राप्त होने की स्थिति में पहले से ही अपने नाम आबंटित कर उस पर करोड़ों रुपया फूंक डाला जाय।

यह रोग उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है। पड़ोसी बिहार में भी पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए इस तरह की व्यवस्था है। वहां पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या उत्तर प्रदेश की तरह बहुत ज्यादा नही है, लेकिन जो भी हैं वे इस तरह की सुविधा का उपभोग कर रहे हैं। वहां भी शायद कोई कोर्ट में जाए, तो कोर्ट उनको मिले बंगले को भी खाली करवा देगा। (संवाद)