कर्नाटक चुनाव एक अनिश्चित राजनीतिक माहौल में आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें बीजेपी की की लोकप्रियता गिरती दिखाई पड़ रही है। यद्यपि इसने त्रिपुरा में पूर्ण बहुमत और मेघालय व नागालैंड में गठबंधन के साथ सत्ता पर कब्जा कर लिया है, फिर भी केंद्र सरकार में इसकी वापसी का फैसला उन राज्यों द्वारा किया जाएगा, जो पारंपरिक रूप से उसका गढ़ रहे हैं। हालांकि कर्नाटक बीजेपी का बहुत पुराना गढ़ नहीं है, पर यह उन राज्यों में से एक है, जिन्होंने उसे पर्याप्त लोकसभा सांसदों को संसद में चुनकर भेजा है। यह उल्लेखनीय है कि में संसद के निचले सदन में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले 28 लोकसभा सांसदों में से 17 भाजपा के ही हैं।
पूर्वोत्तर में जीत के बाद, यूपी, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के हिंदीभाषी में हुए लगभग सभी उपचुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। उन उपचुनावों के नतीजे तथाकथित मोदी जादू पर सवाल चिह्न डाल चुके हैं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी जादू खत्म हो गया है। कर्नाटक चुनाव के नतीजे या तो राजनीतिक विश्लेषकों के इस अवलोकन को खारिज करेंगे या पुष्टि करेंगे। यदि बीजेपी हार जाती है, तो इसका उसके हौसले पर प्रभाव पडेगा और यदि यह जीत जाती है, तो वह लोकसभा के अगले आम चुनाव के लिए उच्च मनोबल को प्राप्त करेगी। दूसरी तरफ, कांग्रेस की हार से देश की सबसे पुरानी पार्टी को गहरा सदमा लगेगा और यहां तक कि राहुल गांधी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए जाएंगे।
कर्नाटक की सत्ता पर कब्जा करने के लिए एक-दूसरे को चुनौती देने वाली मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ही हैं। एक तीसरा दल जनता दल (सेकुलर) इस मुकाबले का तीसरा पक्ष है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चुनावी नतीजों पर सिर्फ इन्हीं तीनों दलों की नजरें हैं। सच तो यह है कि जिन पार्टियों का कर्नाटक की राजनीति में कोई दखल नहीं है, वे भी सांस रोककर इसके नतीजे का इंतजार कर रही हैं।
वजह साफ है। कर्नाटक के नतीजों के बाद ही सभी बीजेपी विरोधी दलों को अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति तय करनी होगी। बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी के लिए वे सभी पार्टियां शोर तो बहुत ज्यादा कर रही हैं, लेकिन कुछ व्यवहारिक समस्याओं के कारण उस दिशा में कोई ठोस कदम उठा नहीं पा रही हैं।
पहली समस्या तो नेता से संबंधित है। मोदी विरोधी मोर्चा का नेतृत्व कौन करेगा सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है और इस सवाल का अभी तक जवाब नहीं मिल पाया है। राजनीतिक प्रभाव के मामले में बीजेपी के बाद कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए भाजपा के किसी भी विरोधी मोर्चे के नेतृत्व के लिए इसका दावा स्वभाविक है। लेकिन, कई महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय नेता हैं, जो कांग्रेस और खासकर राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
कर्नाटक चुनावों के विश्लेषण के बाद, वे अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति बनाना चाहते हैं। यदि कांग्रेस जीतती है, तो राहुल गांधी के नेतृत्व को अस्वीकार करने वाले भाजपा विरोधी दलों में की संख्या में कमी होगी और यदि यह हार गई तो राहुल के लिए नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रमुख भूमिका निभाना मुश्किल होगा। जाहिर है, कर्नाटक चुनाव के नतीजे देश की राजनीतिक ताकतों के समीकरण को प्रभावित करेंगे।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले, तीन प्रमुख राज्यों को भी विधानसभा चुनावों का सामना करना पड़ेगा। वे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं। इन राज्यों में भी, कांग्रेस और बीजेपी को एक दूसरे के खिलाफ मैदान में मांसपेशियों चमकाती दिखेंगी। कर्नाटक के नतीजे इन चुनावों के लिए भी पृष्ठभूमि तैयार करेंगे। यदि कांग्रेस जीतती है, तो अन्य तीनों राज्यों के चुनाव अभियान में वह भाजपा पर हावी रहेगी और वह हार जाती है, तो फिर भाजपा का मनोबल इन तीनों राज्यों में भी सातवें आसमान पर होगा।
दिल्ली में सत्ता के गलियारे में बात पर खूब चर्चा हो रही है कि मोदी सरकार उन तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव कराना चाहती है। यदि बीजेपी कर्नाटक में हार जाती है, तो 2019 के लोकसभा चुनावों को समय से पहले कराने की वह हिम्मत नहीं कर पाएगी। वह वैसी गलती कभी नहीं करेगी, जैसी गलती अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में की थी और समय से 6 महीने पहले ही लोकसभा का चुनाव करवा दिया था। इसके कारण वह समय से 6 महीने पहले ही सत्ता गंवा चुकी थी।
वैसे तो हर चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनाव होता है और किसी भी चुनाव में उसकी हार उसके पराभव की ओर इशारा करती है। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में उसे करारा झटका लगा था, लेकिन उन झटकों को उसने उत्तर प्रदेश में जीतकर बर्दाश्त कर लिया था। बाद में उसने तो बिहार की सरकार में भागीदारी भी कर ली।
लेकिन कर्नाटक के चुनाव के बाद उसे उस झटके को बदाशर््त करने का मौका शायद नहीं मिले, क्योंकि उसके बाद जिन तीन हिन्दी राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां भी उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसकती जा रही है। राजस्थान में उसकी हालत सबसे ज्यादा खराब है। छत्तीसगढ़ की स्थिति भी अच्छी नहीं है। मध्यप्रदेश भाजपा के लिए सुरक्षित माना जा रहा था, लेकिन कमलनाथ के नेतृत्व में वहां कांग्रेस एकजुट हो चुकी है और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत इन तीनों राज्यों में उसके मनोबल को मजबूती प्रदान करेगी। जाहिर है, कर्नाटक चुनाव नतीजे कर्नाटक से बाहर की राजनीति को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। (संवाद)
कर्नाटक चुनाव के नतीजे होंगे महत्वपूर्ण
यह देश की आने वाली राजनीति को भी करेंगे प्रभावित
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-05-12 10:46
कर्नाटक में विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। यह चुनाव राज्य की सरकार चुनने के लिए हैं, लेकिन इसका प्रभाव सिर्फ कर्नाटक राज्य तक ही सीमित नहीं होगा। चुनाव के नतीजे आगे के दिनों में राष्ट्रीय राजनीति का स्वर निर्धारित करेंगे। हालांकि, बीजेपी ने देश के अधिकांश हिस्सों में अपना प्रभाव बढ़ाया है और इसे 21 राज्यों और भारत के केंद्र शासित प्रदेशों पर शासन करने का गर्व है, कर्नाटक का नुकसान लोकसभा के अगले आम चुनाव में उसकी जीत पर एक प्रश्न चिह्न लगाएगा।