भाजपा कार्यकर्ता और एक सीपीआई (एम) नेता की जान लेने वाली एक घटना के बाद राज्यपाल ने पहली बार सरकार को लताड़ लगाई। उन्होंने राजनीतिक हत्याओं पर मुख्यमंत्री पिनाराय विजयन से एक रिपोर्ट मांगी है।

पिछले छह महीनों में यह दूसरी बार है कि राज्यपाल ने सीपीआई (एम) और बीजेपी से जुड़ी राजनीतिक हत्याओं पर मुख्यमंत्री से कार्रवाई की मांग की है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और बीजेपी समेत विपक्षी दलों के दबाव में राज्यपाल ने यह कार्रवाई की है। गौरतलब हो कि विपक्षी दलों ने विजयन सरकार को परेशान करने का एक भी मौका कभी नहीं छोड़ा है। वे राज्यपाल सथशिवम की भी आलोचना करते रहे हैं कि वे राजनैतिक हत्याओं के बाद भी राजकाज में उचित हस्तक्षेप नहीं करते।

महत्वपूर्ण बात यह है कि जून के पहले सप्ताह में दिल्ली में आयोजित होने वाले गवर्नरों की बैठक की पृष्ठभूमि मंे राज्यपाल की यह कार्रवाई आई है। जाहिर है, राज्यपाल को राज्य में केंद्र के प्रतिनिधि होने के नाते राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति को बैठक में साझा करना होगा।

इस बीच, केरल और तमिलनाडु पुलिस ने जुड़वां हत्याओं में आपसी सहयोग से जांच शुरू की है। सीपीआई (एम) नेता बाबू की हत्या महे में कन्निपोइल में हुई थी, जो पुडुचेरी के अधिकार क्षेत्र में आती है, बीजेपी-आरएसएस कार्यकर्ता शमेज को पड़ोसी न्यू माहे में मार डाला गया था, जो केरल में है।

हत्याओं के चलते एक शांति बैठक भी आयोजित की गई है। लेकिन ये मीटिंग उपहास का एक विषय बन गई है क्योंकि ऐसी बैठकों से कुछ भी नहीं होता है। बैठकों में किए गए निर्णय शायद ही कभी लागू किए जाते हैं। फॉलो-अप की कमी राज्य को सदमा देने वाली राजनीतिक हिंसा को बढ़ाने में योगदान करता है।

जबकि दोनों पक्षों को हिंसा में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी, लेकिन सत्तारूढ़ दल होने के नाते, सीपीआई (एम) की जिम्मेदारी ज्यादा है। ऐसा नहीं है कि पिनारायी सरकार पूरी तरह से निष्क्रिय है। पार्टी के कार्यकर्ताओं को गंभीर उत्तेजनाओं की स्थिति में भी संयम बरतने के निर्देश दिए गए है। लेकिन किसी भी तरह, जमीन पर स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। कहने की जरूरत नहीं है, हिंसा में बढ़ोतरी ने विपक्ष को एलडीएफ सरकार को बेदखल करने के लिए एक शक्तिशाली हथियार दिया है।

इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा रहा है कि गंभीर मुद्दे को हल करने में सरकार को शीघ्रता से मजबूत उपाय शुरू करना होगा। ऐसा करने में विफलता केवल राज्यपाल से मजबूत हस्तक्षेपों को आमंत्रित करेगी, जिससे केंद्र की मोदी सरकार को हस्तक्षेप करने का बहाना मिलेगा।

दूसरी ओर सीपीआई (एम) नेताओं का कहना है कि देश में एकमात्र कम्युनिस्ट सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है।

केरल राज्य सूचना आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए चुने गए उम्मीदवारों के पैनल से राज्यपाल द्वारा रशीद का नाम हटाने के लिए कहा गया है। यह सरकार पर राज्यपाल द्वारा लगाई गई दूसरी लताड़ है। गौरतलब हो कि रसीद सीपीएम का कार्यकर्ता है और मुख्यमंत्री के बहुत नजदीकी हैं लेकिन उनका नाम एक घोटाले में आया है और उन पर एक मुकदमा भी चल रही है। राज्यपाल ने इसके कारण ही उनका नाम हटा दिया है। (संवाद)