लेकिन सच्चाई तो यही है कि उनको दिक्कत हो रही थी। फूड पार्क के लिए उन्होंने आगरा एक्सप्रेस वे के समानान्तर 450 एकड़ जमीन का आबंटन पंतजलि समूह के नाम करवा लिया था। यह आबंटन उन्होंने 2016 में करवाई थी, जब वहां अखिलेश यादव की सरकार थी। बाबा रामदेव पूरी तरह से अपने आपको 2014 के चुनाव में भाजपा के साथ जोड़ चुके थे। उन्होंने तन-धन-मन से भाजपा की सरकार बनाने में योगदान किया था।

अखिलेश यादव भाजपा के विरोधी रहे हैं। उसके बावजूद उन्होंने बाबा की पतंजलि के नाम 450 एकड़ जमीन आबंटित कर दी और उसके लिए कुछ शुरुआती भुगतान भी बाबा की पतंजति ने कर दिया था। पेड़ काटने के कारण नेशनल ग्रीन प्राधिकरण की तरफ से कुछ शुरुआती समस्याएं आई थीं, जिसके कारण उस प्रोजेक्ट में देर हुई। लेकिन उस समस्या के हल के बावजूद मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा था, क्योंकि उत्तर प्रदेश मे इस बीच उस भाजपा की सरकार आ गई थी, जो भाजपा बाबा रामदेव की अपनी पार्टी जैसी ही है।

एक ओर केन्द्र की तरफ से उनकों आवश्यक क्लियरेंस मिल गया था और उसकी तरफ से जल्द से जल्द प्रोजेक्ट शुरू करने का दबाव भी था। बाबा अपनी पतंजलि का तेजी से विस्तार कर रहे हैं और उस विस्तार के लिए उत्तर प्रदेश स्थित उस फूड पार्क का जल्द से जल्द शुरू होना भी जरूरी था। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से समस्याएं आ रही थीं।

बाबा ने अवश्य योगी और भाजपा के अन्य नेताओं से उसके बारे में बात की होगी, लेकिन लगता है कि सरकार की मंशा ही कुछ और थी। उसका आबंटन अखिलेश सरकार ने किया था, शायद इसके लिए कुछ मन में शंकाएं रही होंगी या उस भूमि का कुछ वैकल्पिक इस्तेमाल करने की मंशा भी मन में रही होगी, लेकिन वैसा सोचते समय योगी यह भूल गए कि उस जमीन से बाबा रामदेव जुड़े हुए हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के अंदर लगभग उतनी ही अहमियत रखते हैं, जितना खुद योगी का पार्टी के अंदर है।

इसलिए बाबा रामदेव से इशारा पाकर आचार्य बालकृष्ण ने योगी सरकार की आलोचना कर डाली और अपना फूड पार्क प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश से बाहर किसी और प्रदेश में ले जाने की घोषणा भी कर डाली। मजे की बात तो यह है कि आर्चाय बालकृष्ण की उस घोषणा के एक या दो दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बाबा रामदेव से अपने संपर्क फाॅर समर्थन अभियान के तहत मुलाकात की थी और उस मुलाकात के बाद बाबा ने भाजपा और उसकी सरकार की भूरी भूरी प्रशंसा की थी।

लेकिन उस प्रशंसा के तुरंत बाद ही योगी सरकार की आलोचना भी सामने आ गई। तो क्या अमित शाह से अपनी मुलाकात में बाबा रामदेव ने फूड पार्क का वह मुद्दा नहीं उठाया होगा? जरूर उठाया होगा। तो फिर सवाल उठता है कि अमित शाह ने उस बाबा की उस समस्या को लेकर योगी से बात नहीं की होगी? लेकिन लगता है नहीं की होगी, क्योंकि अमित शाह के कहने के बाद आचार्य बालकृष्ण को उत्तर प्रदेश सरकार से शिकायत नहीं रह जाती।

बहुत संभावना है कि अमित शाह ने ही योगी को झटका देने के लिए बाबा को कहा होगा कि मामले को सार्वजनिक कर वे योगी सरकार पर दबाव बढ़ा दें। और वैसा कर भी दिया गया। वह दबाव साधारण नहीं था, क्योंकि प्रोजेक्ट बाहर ले जाये जाने के कारण उत्तर प्रदेश को नुकसान होता भी दिखाया गया। पतंजलि की ओर से कहा गया कि उस प्रोजेक्ट से उत्तर प्रदेश के 10 हजार लोगों को सीधा रोजगार मिलने वाला था और अन्य 75 हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता।

इस तरह योगी पर बाबा के साथ गलत व्यवहार करने का आरोप ही नहीं लगा, बल्कि यह भी आरोप लगा कि उत्तर प्रदेश के विकास में उनकी दिलचस्पी नहीं है और फूड पार्क के प्रदेश से बाहर जाने के कारण उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाला रोजगार पैदा नहीं हो पाएगी।

फिर तो उत्तर प्रदेश सरकार की घिग्घी ही बंध गई। उसके पास प्रोजेक्ट को विलंबित करने का कोई कारण नहीं था। हालांकि आचार्य बालकृष्ण के हवाले से यह बात सामने आई कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उस प्रोजेक्ट को ही कैंसिल कर दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से यह बात सामने आई कि प्रोजेक्ट को कैंसिल नहीं किया गया है, बल्कि यह विलंब का मामला है और इस समस्या को जल्द ही हल कर लिया जाएगा और फूड पार्क वहीं बनेगा, जहां उसे बनना है।

इस तरह बाबा योगी पर भारी पड़ गए। उपचुनावों में भाजपा की हार के बाद योगी वैसे ही हल्क पड़े हुए हैं और भाजपा का यह चिंता सता रही है कि यदि उन्हें आगे भी मुख्यमंत्री बनाए रखा गया तो पता नहीं कि भाजपा के चुनावी किस्मत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। भाजपा का एक गुट समय का लाभ उठाकर उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाने की कोशिश भी कर रहा है, हालांकि भारतीय जनता पार्टी के अंदर बदलाव आसानी से नहीं होते।

इस घटना ने भाजपा सरकारों द्वारा सुशासन के दावे की पोल खोल कर रख दी है। खासकर उत्तर प्रदेश सरकार की काफी भद्द हो चुकी है। यह तो तय है कि बाबा का फूड पार्क शुरू होगा और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से लगाई गई आपत्तियां वापस ले ली जाएगी, लेकिन खुद उत्तर प्रदेश सरकार की छवि व्यापार और उद्योग विरोधी हो गई है। यह सोचने के लिए लोग विवश हो रहे हैं कि यदि बाबा रामदेव के प्रोजेक्ट के साथ ऐसा हो सकता है, तो अन्य उद्यमियों के साथ और क्या क्या हो रहा होगा? (संवाद)