देश में जब भी अकाल, आकस्मिक दुर्घटना, बाढ़, भूकम्प की स्थिति आई है , इस संगठन से जुड़े लोग सेवा भाव से हर जगह खड़े मिलते है। यह भी माना जाता है कि भारतीय सौहार्द बनाने एवं आक्रमणकारियों से देश को बचाने में इस तरह के दल की भूमिका अपनी जगह पर काफी महत्वपूर्ण है। फिर भी यह संगठन अपने क्रियाकलापों से विवादों से घिरा ही रहा । हर संगठन का किसी न किसी राजनीतिक दल की ओर झुकाव देखा जा सकता हे। इस संगठन का भी भाजपा से राजनीतिक जुड़ाव बना हुआ है। सच तो यह है कि आरएसएस ने भाजपा का गठन किया है। भाजपा संघ का राजनैतिक चेहरा है।

देश के प्रायः सभी विपक्षी राजनीतिक दल भापजा के खिलाफ मोर्चा बनाकर आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ने की एकजुट तैयारी में सक्रिय जहां नजर आ रहे है वहीं सदा से कांग्रेसी रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव दा का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निमंत्रण पर नागपुर आना एवं उनके समारोह में शामिल होना गैर भापजा राजनीतिक दलों को अच्छा नहीं लगा। उन्हें इस बात का मन ही मन कहीं डर रहा कि भाजपा के खिलाफ बन रहे मोर्चा को इस तरह के परिवेश से नुकसान न पहुंचे। इस तरह के परिवेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंगन में खड़े पुर्व राष्ट्रपति प्रणव दा पर देश भर की निगाहें टिकी थी। वे क्या बोलते है एवं संघ की क्या प्रतिक्रिया रहती है ?

प्रणव दा देश के प्रथम नागरिक एवं सर्वोपरि सम्मानीय पद राष्ट्रपति पर विराजमान रह चुके है जहां वे किसी खास दल के न होकर सभी के माने जा सकते है। वैसे हमारे देश में इस सर्वोपरि पद पर चयन की प्रक्रिया ही कुछ इस तरह की है जहां इस पद पर विराजमान पर भी एकाधिकार बनाने के प्रयास बने रहते है। कुछ इसी तरह राज्य के सर्वोपरि पद राज्यपाल के साथ भी है जिससे इस पद पर विराजमान की गरिमा विवादों के घेरे में आती रही है। इस तरह के परिवेश निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहे है।

प्रणव दा का पूरा जीवन कांग्रेस के बीच ही बीता। उनके राष्ट्रपति बनने में भी कांग्रेस की ही भूमिका सर्वोपरि रही। राष्ट्रपति बनने के बाद से लेकर आजतक उनपर कांग्रेसी परिवेश की छाया विराजमान रही। जिसके कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निमंत्रण पर उनकी उपस्थिति चर्चा का केन्द ्रबिन्दु बनी रही, जब कि इससे पूर्व अनेक चर्चित कांग्रेसी राजनेता संघ के बुलावे पर कार्यक्रम में शामिल होते रहे है पर उनकी उपस्थिति को लेकर इस तरह की कभी चर्चा नही रही।

प्रणव दा देश के राष्ट्रपति रह चुके है। वे किसी के बुलावे पर देश में कहीं भी आ जा सकते है। उनकी उपस्थिति को लेकर इस तरह के चर्चा का महौल बनना राष्ट्रहित में कदापि नहीं हो सकता। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बुलावे पर नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित भी हुए एवं गरिमापूर्ण संदेश भी दिये जिसपर देशभर की निगाहें टिकी हुई थी। संघ में उनकी उपस्थिति को लेकर जो अनर्गल बयानबाजी हो रही थी, सभी पर उनकी उपस्थिति एवं उनके सारगर्भित विचार के बाद एक बार तो विराम लग गया । (संवाद)