इस काल की पवित्रता को देखते हुए जम्मू - कश्मीर में राज्य सरकार की मांग पर केन्द्र सरकार ने अपनी सेना को किसी पर भी गोली न चलाने का आदेश देकर साहसिक कदम तो उठाया पर उसके इस साहसिक कदम की कितनी हिफाजत हो पाई, यह तो वहां के उभरे प्रतिकूल परिवेश से ही पता चलता है जहां आतंकवादियों ने सेना के जवानों को शिकार तो बनाया ही , निर्दोषों पर गोलियों की बौछार की, जिसमें पत्रकार सहित सेना जवान की जान गई , जो अपने घर ईद मनाने वापिस आ रहा था। जब कि दोनों मुस्लिम धर्म के अनुयायी थे और उनपर गोली की बौछार करने वाले आतंकवादी भी इसी धर्म के अनुयायी रहे जिनके लिये भी रमजान का महीना चल रहा था। जिसके चलते शांति सौहार्द का प्रतीक रमजान काल अशांति के लाल चादर में लिपट कर अपवित्र हो गया । इस तरह के उभरे परिवेश की निंदा देश भर में हो रही है एवं सरकार से तत्काल कार्यवाही की मांग की जा रही है।

इस तरह के उभरे हालात से यह बात साफ हो गई कि आतंकवादियों का ना कोई अपना धर्म होता है, ना कोई अपना ईमान, वे केवल रोबर्ट की मशीनी जिंदगीं जीते है जिसकी कमान किसी और के हाथ होती है। उनके लिये मरना और मारना ही प्रमुख होता है। इस तरह के परिवेश में कार्य करने वालों के लिये अपना कोई नहीं होता। इनका कोई अपना वतन नहीं होता । इनका केवल अपने आका के इसारे पर आतंक मचाना प्रमुख कार्य होता है। इस तरह के कारनामें से जुड़ा हर प्रमुख शख्स अर्थ का गुलाम होता है जो अर्थ पाने के लिये किसी भी तरह की हद पार कर सकता है। आज पड़ौसी पाक इस तरह के समूह का शिकार है जिसके बल पर वह देश के भीतर एवं सीमा पर आतंक फैलाये हुए है।

आजादी के बाद से पनपा उसके मन में भारत के लिये द्वेष भाव आज तक नहीं मिट पाया जिसके लिये कई प्रयास किये गये । विदेशी शक्तियां भी अप्रत्यक्ष रूप से भारत के खिलाफ महौल बनाने में पाक एवं आतंकवादी गिरोहों को आर्थिक सहयोग भी देती रहती है एवं बाहरी मन से आतंकवाद के खिलाफ एकजूट होने का स्वांग भी रचती है। फिर इस तरह के परिवेश से जुड़े समूहों के साथ किस प्रकार की हमदर्दी जो इसकी कीमत नहीं समझते। जैसा को तैसा का सिद्धान्त ही इस तरह के परिवेश से देश को मुक्ति दिला सकता है वरना बेगुनाह लहू बहते ही रहेंगे। सेना का हर जवान हमारे लिये महत्वपूर्ण है जिसकी जान इन नापाक हरकतों के लिये जोखिम में नहीं डाली जा सकती । देश के खिलाफ जो आवाजें उठती है उसे हर कीमत पर दबाना ही होगा। हमारी सेना के खिलाफ उठे हर हाथ को जड़ से काट देना होगा , चाहें वे हाथ बाहरी शक्तियों के हों या देश के भीतर स्वहित कारनामों में लिप्त अपने के ही क्यो न हो ? इसके लिये हमें कठोर बनने की जरूरत है। शांति के समर्थक हम जरूर है पर अशांति के लिये शांति की बलि कभी नहीं दी जा सकती।

आज जो जम्मू - कश्मीर में हो रहा है, किसी से छिपा नहीं है। वहां के युवा गुमराह हो चले है, जो आतंकवादी गिरोहों के शिकार होकर अपने पर ही धावा बोल रहे है। जम्मू - कश्मीर में पत्थरबाजी की घटना सबसे खतरनाक खेल है जहां अपने ही अपने के खिलाफ खड़े दिखाई दे रहे है। इस तरह के परिवेश में विरोध जता पाना एवं इसके खिलाफ लड़ पाना कठिन अवश्य पर नामुमकिन नहीं । इस तरह के परिवेश को वहां के जन नेताओं का भी कहीं न कहीं समर्थन अवश्य है जो इसे उभारने में प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर रहे है। तभी तो जम्मू - कश्मीर में घटित घटनाओं पर इस तरह की आवाजें आमजन की ओर से खुलकर सामने आने लगी है कि इस तरह के हालात के लिये नेता जिम्मेंवार है जिन्हें बाहर किया जाना चाहिए। आम जनता सरकार से भी मांग करने लगी है कि, इस तरह के हालात पर नियंत्रण के लिये कथनी करनी एक जैसी हो। जो इस तरह की आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो, उसके खिलाफ कठोर से कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए । जहां सरकार इस तरह के कदम उठाने में विफल हो रही हो वहां का कार्यभार सेना के हाथ सौप देना चाहिए , जब तक स्थिति नियंत्रण में न हो। पाक से जुडी सीमाएं सदा से ही असुरक्षित रही है। जहां सावधान रहने की ज्यादा जरूरत है। पाक पर नियंत्रण वहां की सेना के हाथ सदैव रही है भले ही लोकतांत्रिक सरकार कार्यरत रही हो । भारत के खिलाफ सबसे ज्यादा बोल पाक के अन्दर से ही आज तक आते रहे है, जिसमें वहां सक्रिय आतंकवादी गिरोह विशेष रूप से शामिल है। इसी कारण आज पाक पास में रहकर भी अच्छा पड़ौसी नहीं बन पाया। आतंकवादियों का अपना न तो कोई धर्म होता है न अपना कोई ईमान। इस तरह के हालात पर नजर रखते हुए सीमा प्रांतों पर अपनी कार्यशैली को बनाना ही हितकर साबित हो सकता है। (संवाद)