विवाद जनता दल(एस) और कांग्रेस के बीच मंत्रियोें की संख्या और विभागों को लेकर भी था। एक विवाद कुमारस्वामी के कार्यकाल को लेकर भी सामने आया। जब सभी विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम सामने भी नहीं आए थे, तभी कांग्रेस ने कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार के गठन का समर्थन करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि यह नहीं बताया था कि वह खुद सरकार मे शामिल होगी भी या नहीं। इस सवाल का जवाब बताने के लिए उसने सरकार के गठन का समय दिया था।
लेकिन वहां कुमारस्वामी के बदले यदुरप्पा की शपथ करवा दी गई और पूरा प्रयास उस सरकार को गिराने पर केन्द्रित हो गया। सरकार गिरने के बाद आनन फानन में कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और असली समस्या तब शुरू हो गई। इस बीच कांग्रेस ने भी सरकार में शामिल होने का फैसला कर लिया था और उसके अनुरूप कुमारस्वामी के साथ एक और मंत्री ने शपथ ली, जो कांग्रेस के थे।
लेकिन जो समस्या शुरू हुई थी, उसका निदान अभी तक नहीं हो सका है। कांग्रेस मे असंतुष्टों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और कुमारस्वामी उस समस्या को अपनी समस्या नहीं मानते, बल्कि कांग्रेस की समस्या मानते हैं और उसके हल का जिम्मा भी वह कांग्रेस पर ही डाल रहे हैं, जबकि सच यह है कि उनके असंतोष से सरकार कांग्रेस की नहीं गिरेगी, बल्कि खुद कुमारस्वामी की सरकार गिरेगी।
विधायकों की नाराजगी तो अपनी जगह है ही, अब बजट को लेकर भी कांग्रेस के साथ कुमारस्वामी के मतभेद उभर आए हैं। इस तरह के मतभेदों को दूर करने के लिए एक समन्यय समिति भी बनाई गई है और उस समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया हैं। लेकिन आजकल वे हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में एक प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं और अपने आपको राजनैतिक गतिविधियों से अलग रखे हुए हैं। इतना ही नहीं, वे आने वाले फोल काॅल को भी रिसीव नहीं करते। जाहिर है, उनकी दिलचस्पी भी इस समय अपने आपको इस राजनैतिक पचड़े से अलग रखने में ज्यादा है।
दरअसल कुमारस्वामी सरकार का गठन ही सुविधा का गठबंधन है। यह इसलिए हो सका है क्योंकि कांग्रेस किसी भी सूरत में भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहती थी। उसकी दिलचस्पी जनता दल(एस) को सत्ता में बैठाने में नहीं थी, बल्कि भाजपा को सत्ता से बाहर रखने में थी। तत्काल समर्थन की घोषणा के बावजूद कुमारस्वामी की सरकार का गठन कराने में कांग्रेस को भारी मशक्कत करनी पड़ी, क्योंकि राज्यपाल ने सभी मर्यादाओं को ताक पर रखकर यदुरप्पा को मुख्यमंत्री बना दिया थ और दल बदल कराने के लिए उन्हें 15 दिनों का मौका भी दे दिया था।
भाजपा को सत्ता से बाहर रखने में तो कांग्रेस फिलहाल सफल हो गई है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। बस 10 विधायकों को अपने पक्ष में भाजपा को करना है और उसके बाद यह सरकार गिर सकती है। बजट सत्र जुलाई के पहले सप्ताह में शुरू होगा और 5 जुलाई को विधानसभा में बजट पेश किया जाएगा। कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ अभी अविश्वास मत का प्रस्ताव तो पेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि कुछ दिन पहले ही कुमारस्वामी ने विश्वासमत पेश कर उस विधानसभा से पास भी करा दिया था।
लेकिन किसी मनी बिल को पास कराना भी सरकार के अस्तित्व के लिए जरूरी होता है। हमारे संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार यदि मनी बिल सदन में गिर जाता है यानी वह पास नहीं हो पाता है, तो माना जाता है कि उस सरकार का ही पतन हो गया। बजट जिस विधेयक से पेश होता है, वह मनी बिल ही है। यदि वह गिर गया, तो फिर कुमारस्वामी सरकार का ही पतन हो जाएगा। सरकार की समस्या यह है कि बजट प्रस्तावों को लेकर कांग्रेस के साथ मुख्यमंत्री का विरोध है। मुख्यमंत्री किसानों के कर्ज माफ करना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस उसे विलंबित करना चाहती है।
इस समय वित्त मंत्रालय खुद मुख्यमंत्री के पास है। जाहिर है, बजट वही बनाएंगे और वही पेश करेंगे, पर उसे पास कराने का जिम्मा पूरे गठबंघन को है, जिसमें सबसे बड़ा भागीदार कांग्रेस ही है। जाहिर है, कांग्रेस के सामन सबसे बड़ी चुनौती है कि वह मुख्यमंत्री को ऐसा बजट पेश करने को तैयार करे, जो सभी को मंजूर हो, लेकिन किसानों की कर्जमाफी के मसले पर कुमारस्वामी किसी की भी सुनने को तैयार नहीं दिखाई पड़ते।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी से शांत रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती। कर्नाटक से आ रही खबरों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के नेता कांग्रेसी असंतुष्टों के साथ संपर्क में हैं। वहां कुछ ऐसे कांग्रेसी विधायक भी है, जो सरकारी एजेंसियो ंके छापे से त्रस्त हैं। उन पर भी कांग्रेस छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है। जाति के नाम पर भी कांग्रेस में दरार डालने की कोशिश की जा रही है। गौरतलब हो कि यदुरप्पा लिंगायत हैं और कांग्रेस के लिंगायत विधायकों को जाति भावना में बहाकर वे उनका समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं
यह सच है कि असंतोष कांग्रेस के अंदर ही है और उसके असंतुष्ट विधायकों के कारण ही कुमारस्वामी सरकार को खतरा हो सकता है। इसलिए यह मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वे उन असंतुष्टों के असंतोष को कम करने की कोशिश करें। सत्ता उनके पास है, इसलिए उनका असंतोष दूर करने में वे ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। कांग्रेस के ऊपर उनका जिम्मा छोड़कर निश्चिंत हो जाना मुख्यमंत्री कि लिए उचित नहीं होगा। (संवाद)
संकट में कुमारस्वामी सरकार
दारोमदार मुख्यमंत्री पर
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-06-26 10:33
कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, क्योेकि मंत्री बनने से वंचित रह गए अनेक कांग्रेसी नाराज हैं। जिन लोगों को मंत्री बनाया गया है, उनमें से अनेक इसलिए नाखुश हैं क्योंकि उन्हें मनपसंद मंत्रालय नहीं मिले हैं। सच तो यह है कि कुमारस्वामी सरकार के गठन के बाद ही असंतोष की स्थिति पैदा हो गई थी और उसके कारण ही मंत्रिमंडल के विस्तार में जरूरत से ज्यादा अन्य मंत्री सरकार में शामिल हुए थे और उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था।