ये शब्द हैं जयप्रकाश नारायण के जिसे उन्होेंने भारी मन से एक अपील के रूप में कहा था। जयप्रकाशजी ने यह भी कहा था कि मैं इस समय भारी दुःख और मानसिक पीड़ा महसूस कर रहा हूं। जयप्रकाश जी ने यह अपील 21 जून 1978 को जारी की थी। जैसा कि ज्ञात है जयप्रकाशजी ने आपातकाल के विरोध का नेतृत्व किया था। अपने विरोध को उन्होने ‘संपूर्ण क्रांति‘ का नाम दिया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने सन् 1975 के 26 जून के दिन आपातकाल लागू किया था। आपातकाल लगभग दो साल रहा और सन् 1977 में चुनाव हुए। चुनाव में इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी की जबरदस्त हार हुई और कई पार्टियोे के विलय से बनी जनता पार्टी की सरकार ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सत्ता संभाली। परंतु एक वर्ष के भीतर ही सत्ताधारी पार्टी में भारी फूट पड़ गई।

पता नहीं भारतीय जनता पार्टी के कितने सदस्यों को यह कड़वा सच मालूम है। भारतीय जनता पार्टी प्रतिवर्ष 25 जून को काला दिवस के रूप में बनाती है और इंदिराजी की अत्यधिक घटिया भाषा में आलोचना करती है। परंतु इन्हें यह मालूम होना चाहिए कि सत्ता में आने के एक वर्ष के भीतर ही जनता पार्टी में ऐसे मतभेद उभरे कि केन्द्र सरकार का संचालन करना ही कठिन हो गया। सन् 1978 के जून माह मे ही राजनारायण, जिन्होंने इंदिरा गांधी को हराया था, जनता पार्टी के नेतृत्व का चुनौती देने लगे। राजनारायण की मांग थी कि चन्द्रशेखर को जनता पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाया जाए और जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया जाए। राजनारायण ने पार्टी के संसदीय मंडल की वैधता पर भी सवाल उठाए। राजनारायण की बात को बेबुनियाद बताते हुए जनता पार्टी अध्यक्ष एवं महासचिव रामकृष्ण हेगड़े ने कहा कि संसदीय मंडल की वैधता पर प्रश्न उठाने की कतई गुजांइश नहीं है।

जहां राजनारायण चन्द्रशेखर के त्यागपत्र की मांग कर रहे थे वहीं स्वयं चन्द्रशेखर और जनता पार्टी के अन्य घटक राजनारायण के विरूद्ध अनुशासन भंग का आरोप लगाकर सख्त कार्यवाही चाहते थे। इन सभी घटकों का यह कहना था कि पार्टी के भीतर चल रहे आंतरिक टकराव से पार्टी और सरकार की छवि धूमिल हो रही है। इससे आम आदमी यह सोच रहा है कि जनता पार्टी की सरकार को शासन करना नहीं आता है।

जयप्रकाश नारायण के अतिरिक्त जनता पार्टी की आंतरिक कलह को लेकर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बहुत दुःखी थे। दिनांक 18 जून 1978 को संवाददाताओं से बात करते हुए मोरारजी ने कहा कि मुझे पार्टी अध्यक्ष चन्द्रशेखर को हटाने की मांग मंजूर नहीं है। इसी तरह मुझे पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पुर्नगठन की मांग भी स्वीकार नहीं है।

जहां प्रधानमंत्री मोरारजी पूरी तरह से चन्द्रशेखर के साथ थे वहीं जनता पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री चरणसिंह पूरी तरह से राजनारायण का साथ दे रहे थे। जून 19 के समाचारपत्रों में छपा कि चरण सिंह इस बात से सख्त नाराज हैं कि प्रधानमंत्री ने चन्द्रशेखर को अध्यक्ष पद से हटाए जाने की मांग नामंजूर कर दी है।

चरण सिंह इसलिए भी नाराज थे क्योंकि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पुनर्गठन की मांग को भी नामंजूर कर दिया था। चरण सिंह ने राजनारायण के इस सुझाव का पूरी तरह से समर्थन किया कि नई कार्यकारिणी का गठन सांसद, विधायक और विधान परिषद के सदस्य करें। प्रधानमंत्री का कहना था कि जब तक संगठनात्मक चुनाव नहीं हो जाते तब तक चन्द्रशेखर के त्यागपत्र देने का सवाल ही नहीं उठता।

चरण सिंह के रवैये से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के बीच सीधे टकराव की स्थिति निर्मित हो गई और जनता पार्टी उपहास की पात्र बन गई। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के बीच सीधी टक्कर की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए जयप्रकाश नारायण ने कहा कि ‘‘पार्टी की आंतरिक फूट से ‘संपूर्ण क्रांति‘ के उद्धेश्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ‘संपूर्ण क्रांति‘ के नारे से आम आदमी के मन में अनेक अपेक्षाएं जागृत हो गईं थीं। चूंकि फूट के कारण ‘संपूर्ण क्रांति‘ के कार्यक्रम पर अमल नहीं हो पा रहा है इससे आम आदमी निराशा अनुभव कर रहा है।‘‘

इन विवादों के साथ-साथ जनता पार्टी के भीतर एक और गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया। यद्यपि जनता पार्टी अनेक पार्टियों के विलय से बनी थी और लगभग सभी पार्टियों ने अपने मौलिक स्वरूप को समाप्त कर दिया था परंतु जनसंघ के मामले में एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई। यद्यपि जनसंघ से आए सभी कार्यकर्ताओं ने जनसंघ का विघटन कर दिया था परंतु यह प्रश्न उठा कि अकेले जनसंघ को समाप्त करना पर्याप्त नहीं है जनसंघ के कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भी नाता तोड़ना चाहिए। यह मांग समाजवादी चिंतक मधु लिमये एवं मधु दंडवते ने उठाई थी। परंतु जनसंघ के सभी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि वे किसी हाल में आरएसएस से नाता नहीं तोड़ेंगे। इस मुद्दे को लेकर जनता पार्टी की फूट और गहरा गई और अंततः मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। इसी विवाद के अगले चरण में चरण सिंह के नेतृत्व में एक नई सरकार का गठन हुआ। चरण सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के लिए उस इंदिरा गांधी का समर्थन स्वीकार किया जिन्हें उन्होंने जेल भेजने की जिद की थी और जिन्हें चरण सिंह के चेले राजनारायण ने चुनाव मंे हराया था। कुछ समय बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापिस ले लिया। शायद चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्हें एक दिन भी प्रधानमंत्री की हैसियत से संसद में बैठने का अवसर नहीं मिल सका। इस तरह जयप्रकाश नारायण का ‘संपूर्ण क्रांति‘ का सपना चूर-चूर हो गया।

इस समूचे घटनाक्रम पर यदि विचार किया जाए तो ‘संपूर्ण क्रांति‘ के नाम पर जो आंदोलन हुआ था उसने देश का कितना नुकसान पहुंचाया इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि खिचड़ी सरकारें ज्यादा दिन नहीं चलती हैं। भारतीय जनता पार्टी 25 जून को काला दिवस के रूप में मनाती है परंतु इस दिन उसे जनता को यह भी बताना चाहिए कि हम कितने अक्षम शासक हैं। संपूर्ण क्रांति आंदोलन का जबरदस्त लाभ व्यक्तिगत रूप से उन लोगों को हुआ जिन्हें आपातकाल के दौरान जेल जाना पड़ा था। अब इन्हें मीसाबंदी होने के कारण 10 से लेकर 25 हजार रूपये प्रतिमाह तक की पंेशन मिल रही है। इस तरह जनता पार्टी की सरकार से भले ही आम जनता को कुछ भी हासिल न हुआ हो परंतु इन मीसाबंदियों के जीवन में आर्थिक खुशहाली आ गई है। (संवाद)