देश राज्य सरकारों तथा केन्द्र के समन्वित प्रयासों से सर्वाधिक कम मानसून का सामना करने में समर्थ हुआ है। राज्यों तथा केन्द्र सरकार द्वारा किसानों को कई प्रोत्साहन तथा रियायतें प्रदान की गयी जिसके परिणामस्वरूप खरीफ उत्पादन में नुकसान को कम किया जा सका और रबी उत्पादन को बढा़या जा सका । खरीफ उत्पादन के हिस्से में हुई हानि की क्षतिपूर्ति रबी मौसम में पूरा कर ली जाएगी । तथापि , यह क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना करता है । जिनका देर-सबेर समाधान किया जाना आवश्यक है ।

यद्यपि खाद्यान्नों की प्रति हेक्टेयर उपज मे हाल के वर्षों में कुछ सुधार दिखाई दिया है लेकिन यह बढत़ी जनसंख्या विशेषकर जब आय स्तर भी बढ ऱहा है, की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पर्याप्त नहीं है । चूंकि कृषि उत्पादकता वांछनीय वृद्धि नहीं दिखा रही है, इसलिए अनुसंधान तथा बेहतर कृषि प्रक्रियाओं पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है ताकि उत्पादकता को अल्पावधि संभाव्य समय में बढा़या जा सके । कम उत्पादकता वाले राज्यों को सापेक्ष रूप से इन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।

दालों तथा तिलहनों के उत्पादन तथा उत्पादकता बढत़ी चिंता का विषय हैं । इन मदों का एक बड़ा हिस्सा आयातों से पूरा किया जाता है । दालों के आयात की संभावना सीमित है चूंकि दालों के उत्पादक देशों की संख्या सीमित है । इस आपूर्ति तथा मांग अंतराल के कारण उपलब्धता के साथ घरेलू कीमतें और घरेलू उत्पादन प्रवृत्तियों के प्रभाव से पृथक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटती-बढत़ी रहती हैं ।

इसके अतिरिक्त, लघु तथा सीमांत किसानों को बड़ी संख्या में कृषि बाजार तक सीधी पहुंच न होने से एमएसपी में बढा़ेत्तरी के संदर्भ में , जिससे वास्तव में ऐसे किसान लाभान्वित हो रहे हैं, चुनौती पेश आ रही है ।

अध्ययनों में यह पाया गया कि कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । फसल सुधार तथा सूखा रोधीउच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास हेतु अनुसंधान करना महत्वपूर्ण है ताकि खाद्य उत्पादन पर सूखे के प्रतिकूल प्रभाव का मुकाबला किया जा सके और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके ।