बीएसपी ने स्पष्ट संकेत दिया है कि मायावती किसी सुरक्षित सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने दलित स्वाभिमान के मुद्दे पर राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था।
यह सिर्फ एक संयोग नहीं था कि पार्टी के समन्वयकों की बैठक ने मायावती के संभावित प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने की मांग के प्रस्ताव को पारित किया, क्योंकि मायावती के स्पष्ट निर्देश के बिना पार्टी में कुछ भी नहीं चलता है। सार्वजनिक रूप ये या मीडिया में उनकी अनुमति के बिना बोलने के लिए कोई भी अधिकृत नहीं है। सतीश मिश्रा सांसद जैसे शक्तिशाली नेता को भी किसी भी मुद्दे पर बात करने के लिए मायावती से अनुमति मांगनी पड़ती है। उन्होंने बैठक में पारित प्रस्ताव पर कोई विरोध नहीं किया।
बसपा के सर्वोच्च नेता ने पार्टी के शक्तिशाली नेता और राष्ट्रीय समन्वयक जयप्रकाश को उनके पद से हटा दिया। ऐसा उन्होंने जयप्रकाश द्वारा सभी सीमाओं के पास करने के बाद किया। गौरतलब हो कि उन्होंने सोनिया गांधी को विदेशी कहा और उसके साथ राहुल गांधी की विदेशी उत्पत्ति के बारे में भी बात की। जयप्रकाश को हटाकर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि बीएसपी अन्य राज्यों के साथ-साथ आगामी चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार है।
मायावती और सोनिया गांधी के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मुलाकात हुई थी। उस मुलाकात में दोनांे ने एक दूसरे में काफी दिलचस्पी दिखाई दी थी। शपथ ग्रहण समारोह में अन्य अनेक नेता भी आए थे और उन लोगों ने संयुक्त होकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने में भरोसा दिखाया था।
जब मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में प्रवेश किया और तीन लोक सबा और उत्तर प्रदेश में एक विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव में बीजेपी को हराया तो उन्होंने लाइटलाइट को हराया। 20 प्रतिशत से अधिक वोटों के समर्थन के साथ, केंद्र में और यूपी में बीजेपी सरकार पर उनका लगातार हमला तेजी से विश्वसनीय लगता है और बीएसपी को राष्ट्रीय राजनीति में माना जाने वाला बल माना जाता है।
मायावती को यह अहसास है कि प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा को पूरा करने का यह अच्छा समय है। उन्हें लगता है कि वे अपने आपकों उस रूप में चुनाव के पहले पेश कर पाएगी। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों की हार के बाद बसपा नेता का महत्व देश की राजनीति में बढ़ गया है। भाजपा की हार के लिए मायावती द्वारा भाजपा विरोधी उम्मीदवारों को दिए गए समर्थन को जिम्मेदार माना जा रहा है। अब वह देश भर में क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन करने की इच्छुक हैं।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि भाजपा के अनेक सांसद इस समय बसपा के साथ संपर्क मंे हैं और वे अगला चुनाव मायावती की पार्टी से लड़ना चाहते हैं। ये वे सांसद हैं, जिन्हें लगता है कि बसपा के चुनाव चिन्ह पर वे अगला चुनाव आसानी से जीत सकते हैं।
इन सांसदों में एक भावना है कि केंद्र सरकार के साथ-साथ यूपी में योगी सरकार के खिलाफ मोदी सरकार के खिलाफ एक मजबूत एंटी-इनकंबेंसी का माहौल बन गया है। इसलिए बीएसपी से टिकट लेकर चुनाव लड़ना बेहतर रहेगा, क्योंकि यह पार्टी भाजपा विरोधी मोर्चे का हिस्स होगी।
मायावती ने अपनी पार्टी के नेताओं से किसी भी राजनेता के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से बचने को कहा है और उन्हें किसी भी गठबंधन के बारे में बात नहीं करनी करने को भी कहा है। ऐसा लगता है कि किसी भी गठबंधन पर निर्णय लेने से पहले वह अपने विकल्पों को तौलना चाहती है, क्योंकि वह किसी भी व्यवस्था में प्रवेश करने की जल्दी में नहीं है। सबसे अधिक संभावना है कि वह चुनावों की घोषणा के बाद ही अपने कार्ड का खुलासा करेगी। (संवाद)
मायावती ने प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा की घोषणा की
उन्होंने अपने सारे विकल्प खुल रखे हैं
प्रदीप कपूर - 2018-07-20 16:16
लखनऊः बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद के लिए संभावित विपक्षी उम्मीदवार के रूप में खुद को लॉन्च करने की तैयारी कर रही हैं।