लेकिन इसमें उत्सुकता इस बात को लेकर थी कि मोदी सरकार अपने ऊपर लगाए जाने वाले आरोपों का किस तरह जवाब देती है। यह देखना भी दिलचस्प था कि विपक्षी पार्टियां सरकार को किस तरह कटघरे में खड़ी करती है। इन दोनों मानदंडों पर हम विपक्ष को सफल देख रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बहस को जो जवाब दिया गया, वह बिल्कुल ही स्तरहीन था। अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ बोलते हुए अब तक किी भी प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया यह सबसे अधिक उबाऊ भाषण था, जिसमें श्री मोदी उन्हीं बातांे को दुहरा रहे थे, जो उनकी पार्टी के छुटभैया नेता टीवी समाचार चैनलों पर पूछे गए किसी भी सवाल के जवाब में बोलते दिखाई देते हैं।

अपनी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री ने बहस का जवाब देते हुए कांग्रेस सरकारों की कथित विफलताओं का जिक्र करना शुरू किया और यकीनन उनके भाषण सुनने वाले लोगों ने 15 या बीस मिनट के अंदर उनका भाषण सुनना बंद कर दिया होगा, क्योंकि वे नया कुछ बोल नहीं रहे थे और न ही बहस के दौरान उनसे जो सवाल किए गए थे, उसका जवाब दे रहे थे। उनकी सरकार पर लगाए गए आरोपों पर भी वे कुछ नहीं बोल रहे थे। भाषण के अंतिम हिस्से में उन्होंने कुछ आरोपों पर कुछ कहा, लेकिन शुरुआती भाषण वैसा पिटा पिटाया था कि अंत तक उनका भाषण सुनने वाले लोग बहुत ज्यादा नहीं रहे होंगे। अंत में उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ लगाए गए आरोप का कुछ खंडन किया, लेकिन जो बड़े आरोप थे, उस पर उन्होंने चुप्पी साधे रखना ही ठीक समझा। गौरतलब हो कि प्रधानमंत्री जितने वाचाल और मुखर हैं, समय पड़ने पर वे उतने ही मौन हो जाते हैं।

अविश्वास प्रस्ताव तेलुगू देशम पार्टी ने पेश किया था। उसकी शिकायत थी कि मोदीजी ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का जो वायदा 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले किया था, उसे पूरा नहीं किया। बहस के दौरान टीडीपी वक्ताओं ने विशेष दर्जा न देने के केन्द्र सरकार के बहानों की धज्जियां उड़ा दी थीं। प्रधानमंत्री को उनके सवालों पर जरूर बोलना चाहिए था। उन्हें अपनी सरकार की विवशताओं का जिक्र करना चाहिए था और वायदे न पूरा करने के लिए आंध्र के लोगों से माफी भी मांग लेनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।

इस तरह मोदीजी ने एक बड़ा मौका संसद में खो दिया। उन्हें देश के एक बड़े राजनेता के रूप में अपने आपको अपने भाषण में साबित करना चाहिए था, लेकिन वे अपने आपको भाजपा के नेता के रूप में ही साबित करते दिखाई पड़े, जिसका उद्देश्य एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाना है। उनकी बातें इतनी बासी हो गई हैं कि लोग सुनते सुनते बोर हो गए हैं, लेकिन उन्हे लगता है कि वे ही बातें उन्हें एक बार फिर सत्ता में पहुंचा देगी। अपनी काबिलियत से ज्यादा उनका कांग्रेस की नाकाबिलियत पर भरोसा है। इसलिए वे लोगों को बताते रहे कि कांग्रेस किस तरह से नकारा है।

लेकिन राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का पूरा पूरा फायदा उठा लिया। उनका भाषण आक्रामक तो था ही, भाषण के बाद उन्होने जो कुछ किया, उससे मोदी स्तब्ध रह गए और पूरा सदन ठहाको से गूंज उठा। खुद लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के लिए वह एक मनोरंजक वाकया था। हंसी तो चेहरे पर नरेन्द्र मोदी की भी थी, लेकिन बाद में पता चला कि राहुल गांधी के उस कमद से वे आहत हो गए थे और शायद स्पीकर के सामने अपने मन की व्यथा बताई और स्पीकर सुमित्रा महाजन ने राहुल के उस कारनामे के साढ़े तीन घंटे के बाद उसे आपत्तिजनक बताया।

यदि वास्तव मे राहुल द्वारा मोदी को गले लगाना स्पीकर को आपत्तिजनक लगता, तो उसी समय वह कांग्रेस अध्यक्ष के उस बर्ताव पर अपनी आपत्ति जता देती और से सदन के रिकाॅर्ड में शामिल करवा देतीं। पर उन्होंने वैसा नहीं किया, जबकि मोदी मंत्रिपरिषद की एक मंत्री हरमीत कौर उस पर आपत्ति व्यक्त करती हुई कह रही थीं कि सदन पप्पी और झप्पी देने और लेने की जगह नहीं है। उस समय तो स्पीकर ने मंत्री हरमीत कौर को ही लताड़ दिया और उन्हे आगे बोलने ही नहीं दिया। जाहिर है, राहुल द्वारा मोदी को दी गई झप्पी सुमित्री महाजन के लिए कोई आपत्तिजनक घटना नहीं थी, लेकिन बाद में उन्होंने किसी ( मोदीजी) के दबाव में राहुल गांधी के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज करा दी।

दरअसल राहुल गांधी ने अपने भाषण में भी नरेन्द्र मोदी पर एक से बढ़कर एक हमला किया था। उनके हमलों से भाजपा के सांसद तिलमिला रहे थे। यही कारण है कि हंगामे के कारण बीच में ही सदन की कार्रवाई को स्थगित करनी पड़ी। जब दुबारा कार्रवाई शुरू हुई, तो राहुल ने फिर अपने शब्द बाण चलाने जारी रखे। उन्होंने राफेल मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधा सीधा भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया। रक्षामंत्री पर भी गलतबयानी का आरोप लगा दिया। और अंत में उन्होंने जो किया वह अभूतपूर्व और अप्रत्याशित था।

नफरत की राजनीति के विरूद्ध मोहब्बत की राजनीति करने का संकल्प करते हुए और अपने विरोधी भाजपाइयों को भी कांग्रेसी बना देने का संकल्प करते हुए राहुल मोदीजी के पास जा पहुंचे और उन्हें गले लगा लिया। यदि बात वहीं समाप्त हो जाती, तो फिर भी भाजपा के लिए गणीमत थी, लेकिन उसके कुछ बाद भाजपा की ओर से राहुल के उस व्यवहार के खिलाफ बयानबाजी का जो दौर शुरू हुआ, उसने राहुल गांधी को अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस का हीरो बना दिया। भले ही अविश्वास प्रस्ताव पर मोदी सरकार की जीत हुई हो, लेकिन इसमें बाजी राहुल ने ही मारी, क्योंकि उनकी झप्पी की राजनीति के आगे भाजपा पस्त होती दिखाई पड़ी। (संवाद)