यही कारण है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और करुणानिधि की पार्टी ने पेट्रोल की कीमत बढ़ाने के वित्तमंत्री के फैसले का विरोध किया है। ये दोनों पार्टियां सेवा कर और वस्तु कर लगाए जाने का भी विरोध कर रही हैं। खादों पर सब्सिडी देने की नीति में जो बदलाव लाया गया है, उसे भी ये दोनों पार्टियां पसंद नहीं कर रही हैं। आने वाले समय में ये दोनों पार्टिया केन्द्र सरकार के और भी फैसले का विरोध करती दिखाई पड़ेगी और उनके विरोध के कारण केन्द्र की सरकार अपने आपको बार बार परेशानी में पड़ती दिखाई पड़ेगी।
2006 में तमिलनाडु का पिछला विधानसभा आमचुनाव हुआ था। उसके बाद करुणानिघि की सरकार बनी। करुणानिघि की सरकार तो वहां बन गई है और वह बिना किसी परेशानी के चल भी रही है, लेकिन करुणानिघि को इस बात का मलाल है कि उनकी पार्टी को विधानसभा में बहुमत प्राप्त नहीं है। सरकार अपने अस्तित्व के लिए कांग्रेस के समर्थन पर टिकी हुई है। डीएमके को वहां बहुमत प्राप्त नहीं है, लेकिन उसके बानजूद उसने किसी अन्य पार्टी के साथ सत्ता की भागीदारी करने से तरफ इनकार कर दिया। उसे कांग्रेस का समर्थन तो अपनी सरकार के लिए चाहिए, लेकिन कांग्रेस के किसी व्यक्ति को मंत्री का पद देना उन्हांेंने मंजूर नहीं किया। केन्द्र की मनमोहन सरकार डीएमके के समर्थन से चल रही है, इसलिए कांग्रेस ने तमिलनाडु में करुणानिघि की सरकार को समर्थन दे रखा है।
यानी करुणानिघि ने केन्द्र में मनमोनि सिंह सरकार को बनाण् रखने के लिए भारी कीमत वसूल की है। पिछली सरकार में भी इसने अनेक मंत्रालय केन्द्र में ले रखे थे और इस बार भी ज्यादा से ज्यादा मंत्रालय लेने के लिए उन्होंने जमकर सौदेबाजी की थी और राज्य की सरकार में कांग्रेस को पहले भी हिस्सेदारी करने से इनकार किया था और अभी भी इनकार कर रहे हैं। अगले चुनाव में वे कांग्रेस के साथ समझौता करके चुनाव लड़ने के बावजूद अपनी पार्टी के लिए पूर्ण बहुमत सुनिश्चित करना चाहते हैं। और इसके लिए केन्द्र सरकार को कोई ऐसा निर्णय वे नहीं करने देना चाहते।
करुणानिधि ने उस समय तहलका मचा दिया थाण् जब उन्होंने कहा कि वे कुछ महीने के बाद मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे और अपने आपको समाजसेवा में लगा देंगे। तग लोगों को लगा था के वे अपने दूसरे बेटे स्तालिन को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देंगे। उन्होंने अपने उस बेटे को पहले ही उपमुख्यमंत्री बना रखा है और सरकार चलाने की मुख्य जिम्मेदारी भी उन्हीें को सौंप रखी है। उनकी उस घोषणा के बाद राज्य की राजनीति में हलचल मच गई थी। उस घोषणा के कुछ पहले ही राहुल गांधी का तमिलनाडु में दौरा हुआ था और उसे दौरे के दौरान लाखों युवाओं ने कांग्रेस की सदस्यता हासिल की थी। उस दौरे के दौरान राहुल गांधी ने साफ लहजों में कहा था कि उनका लक्ष्य तमिलनाडू में फिर कांग्रेस की सरकार लाने की है। कांग्रेसी वहां करुणानिधि के बाद अपनी राजनीति का सितारा बुलंद मान रहे हैं। इसलिए मुख्यमंत्री द्वारा राजनीति से संन्यास लेने की इच्छा जताने के बाद उनके बीच हलचल हुई। जयललिता भी सक्रिय हो गईं, हालांकि उन्होंने कहा कि करुणानिघि के उस बयान मे कोई दम नहीं है और अपने बयान से पलटने का करुणानिधि का पुराना इतिहास रहा है।
हलचल तों पार्टी के अंदर भी हुई, क्योंकि करुणानिधि का बड़ा बेटा उनके दूसरे बेटे के दावे को स्वीकार नहीं करता। उनके समर्थकों के बीच करुणानिधि के मुख्यमंत्री पद छोड़ने की इच्छा जताने पर प्रतिक्रिया होने लगी और अंत में करुणानिधि ने वही कियाख् जिसकी भविष्यवाणी जयललिता ने की थी। मुख्यमंत्री ने एक तरह से अपना पुराना बयान वापस लेते हुए कहा कि वे राजनीति को कब अलविदा करेंगे, इसका फेसला वे उचित समय पर करेगे।
यानी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते। उनकी पहली प्राथमिकता राज्य में अपनी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाना है। उन्होंने कांग्रेस को 35 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लिया है। ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार को खड़ा कर वे अपनी पार्टी के लिए पूर्ण बहुमत हासिल करना चाहेंगे। इसके लिए वे खुद अपने ही नेतृत्व में पार्टी को चुनाव मैदान में उतारेगे और केन्द्र सरकार को वैसा कुछ भी नहीं करने देा चाहेंगेख् जिससे उनकी पार्टी के चुनाव परिणामों पर कोई खराब असर पड़ता हो। (संवाद)
अगले विधानसभा चुनाव में डीएमके की बहुमत पाने की कोशिश
करुणानिधि और ममता के कारण केन्द्र सरकार रहेगी परेशान
एस सेतुरमण - 2010-03-02 11:05
केन्द्र सरकार बजट पेश करने के बाद विपक्ष के अलावा ममता बनर्जी की पार्टी और डीएमके के असंतोष का सामना कर रही है। ममता बनर्जी को 2011 के चुनाव में वामपंथियों को पराजित कर सत्ता हासिल करनी है, तो उसी साल तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में करुणानिधि को अपनी पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल करनी है। जाहिर है दोनों पार्टियां केन्द्र सरकार को वे कदम उठाने नहीं देना चाह्रेगी, जिनसे लोगों को परेशानी होती हो और जिन्हें मुद्दा बनाकर उनके प्रतिद्वंद्वी उनपर हावी होना चाहते हैं।