सबसे आश्चर्यजनक यह है कि प्रधानमंत्री ने एचएएल को छोड़ने वाले सौदे की घोषणा करने में असामान्य दिलचस्पी दिखाई घोषणा के पहले उच्चतम रैंकिंग अधिकारियों को भी उनकी मंशा की जानकारी नहीं थी। प्रधानमंत्री द्वारा सौदा की घोषणा करने से केवल दो दिन पहले तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर ने 8 अप्रैल, 2015 को राफले पर प्रेस के लिए अपनी ब्रीफिंग में एचएएल की भागीदारी के बारे में बात की और कहा कि मौजूदा रक्षा अनुबंध एक अलग ट्रैक पर था।

प्रधान मंत्री ने खुद सौदे को रिवाइज किया और रिलायंस डिफेंस लिमिटेड, जो रिलायंस समूह की सहायक कंपनी है, को आॅफसेट ठेका सौंप दिया। उसे नए सौदे पर हस्ताक्षर करने से केवल दस दिन पहले ही गठित किया गया था। यह अजीब बात थी कि प्रधानमंत्री ने सरकार की अपनी प्रमुख रक्षा विनिर्माण कंपनी एचएएल को डंप कर दिया, जिसके पास उस तरह के काम का 60 साल का अनुभव है और एक अनुभवहीन कंपनी को रखरखाव का ठेका दे दिया।

बुधवार को तीन वरिष्ठ नेताओं यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने मीडिया से कहा कि जब अप्रैल 2015 में पेरिस में प्रधानमंत्री द्वारा नए सौदे की घोषणा की गई थी, तो इसे सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था और यह स्पष्ट था कि उनके अनुसार रक्षा मंत्रालय ने कई नियमों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया था।

इन नेताओं ने इंगित किया कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रैल 2015 में घोषणा की कि भारत 36 राफेल विमानों को बनी बनाई स्थिति में खरीद लेगा, तो उन्होंने न केवल कई प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया, बल्कि पिछली सस्ते सौदे को भी नजरअंदाज कर दिया। वह सौदा यूपीए सरकार द्वारा पहले ही कर लिया गया था।

उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार ने आधिकारिक बोली प्रक्रिया के बाद दासॉल्ट के साथ सौदा किया था, जिसके बाद दासॉल्ट एविएशन को 18 मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को भारत में फ्लाई-अवे हालत में सौंपने का अनुबंध दिया गया था और भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को वह अपनी प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करके 108 अन्य विमानों का निर्माण किया जाना था। नेताओं ने कहा कि उस सौदे के तहत भारत को 42,000 करोड़ रुपये खर्च होने थे।

हालांकि, मोदी ने पहले वालं सौदे को नजरअंदाज कर दिया और 60,000 करोड़ रुपये (दासॉल्ट और रिलायंस द्वारा जारी दस्तावेजों के मुताबिक) 36 विमानों की खरीद पर बातचीत की। तीनों ने कहा कि यह आंकड़ा सरकार के लिए शर्मनाक है, क्योंकि अब प्रत्येक विमान के लिए 1,660 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

नेताओं ने कहा कि दूरदर्शन को दिए एक साक्षात्कार में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर द्वारा अनुमानित राशि की तुलना में यह एक बड़ा आंकड़ा है। पर्रिकर ने 126 विमानों के लिए 9 0,000 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान होने की बात की थी, जो प्रति विमान 715 करोड़ रुपये होता। उन्होंने इंगित किया कि पर्रिकर का साक्षात्कार पेरिस से 36 विमानों की खरीद के मोदी की घोषणा से कुछ ही दिन पहले का था। यह दर्शाता है कि अंतिम सौदा होने से पहले रक्षा मंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं थी।

नेताओं ने कहा कि यह आंकड़ा सरकार के लिए शर्मनाक है क्योंकि प्रत्येक विमान के लिए 1,660 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके अतिरिक्त नए सौदे सं एचएएल गायब है और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण का जिक्र नहीं है। यानी नये सौदे से देश के राजस्व का भी नुकसान, प्रौद्योगिकी का भी नुकसान और सरकारी कंपनी एचएएल का भी नुकसान होना है। (संवाद)