सरकार लगातार बोल रही है कि भारत विकास कर रहा है और रोजगारों का लगातार सृजन हो रहा है। महंगायी को रोक पाने में भी विफल रही सरकार ने बेरोजगारी का दंश झेल रहे लोगों की तकलीफों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए अनेक तरह के आंकड़े पेश करती रही है।
उदाहरण के लिए इस प्रश्न के लिखित उत्तर में भी बताया गया कि 11वीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य सामान्य विकास प्रक्रिया के माध्यम से तथा पुरूषों , महिलाओं एवं युवाओं के लिए विभिन्न रोजगार सृजन कार्यक्रमों को कार्यान्वित कर वर्तमान दैनिक स्थिति आधार पर 58 मिलियन रोजगार अवसरों का सृजन करना है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना , स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं ।
साथ में यह भी जानकारी दी गयी कि रोजगार एवं बेरोजगारी के विश्वसनीय अनुमान राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा किए जाने वाले पंचवर्षीय श्रम बल सर्वेक्षणों के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं । इस प्रकार का पिछला सर्वेक्षण वर्ष 2004-05 के दौरान किया गया था । इन सर्वेक्षण रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 1993-94, 1999-2000 तथा 2004-05 में बेरोजगार व्यक्तियों की अनुमानित संख्या क्रमश: 7.47 मिलियन, 9.04 मिलियन तथा 10.84 मिलियन थी।
यहां इस बात में किसी को गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि सरकार के पास देश में बेरोजगारी के मामले में ताजा जानकारी किसी के पास नहीं। पिछली जानकारी 2004-05 की है जब देश में 10.84 मिलियन बेरोजगार थे। सरकार की रुचि इसकी जानकारी सालाना आधार पर रखने की नहीं क्योंकि इससे सरकार के रोजगार देने के दावे की पोल खुल सकती है।
सभी बेरोजगारों को रोजगार और वह भी रोजाना देने में और इस आधार पर आंकड़े तैयार करने में भी सरकार की रुचि नहीं दिखती। उदाहरण के लिए यदि 11वीं पंचवर्षीय योजना में 58 मिलियन रोजगार के अवसर पैदा करने की बात कही गयी है तो उसका अर्थ है मानव दिवस, अर्थात् छह साल पुराने आंकड़े के अनुसार भी प्रत्येक बेरोजगार को मात्र पांच दिन के कुछ घंटे अधिक का ही रोजगार देना।
स्पष्ट है कि सरकार और उसके मंत्री ने आंकड़ों का घाल मेल कर दिया है। जवाब देते समय यदि इस बात का भी ख्याल रखा गया होता कि जिन रोजगार कार्यक्रमों का ढोल पीटा जा रहा है उसके तहत तो कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जाना था। यदि यही मान लें तो छह वर्ष पहले के लगभग 11 मिलियन बेरोजगारों के लिए 1100 मिलियन न्यूनतम रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य होना चाहिए था। लेकिन लक्ष्य ही 58 मिलियन का है।
साफ है कि यह घालमेल है और बेरोजगार लोगों की बतायी गयी छह वर्ष पुरानी संख्या और 11वी पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य के बीच कोई न्यायपूर्ण संबंध नहीं है। यह अलग बात है कि कांग्रेस और उसके अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री आदि सभी इन्क्लुसिव विकास की बात कर रहे हैं जिसमें गरीबों की भी न्यायपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने का दावा किया जा रहा है।
जनता को यह साफ-साफ जान लेना चाहिए, विशेषकर उन्हें जो लूट-खसोट वाले कुछ लोगों के विकास में पिस रहे हैं, कि सरकार की रुचि सबको रोजगार देने में कम, ढोल पीटते रहने में ज्यादा है। बहलाने फुसलाने वाली योजनाएं लागू करने या उनके लिए आश्वासन देने से वे कतई ठगे न जायें बल्कि यथार्थ रुप से देखें कि क्या उन्हें रोजगार मिल पा रहा है और क्या उन्हें जीवन-यापन भर के लिए भी संसाधन मिल पा रहे हैं। यदि नहीं तो उनके लिए उठ खड़े होने का समय आ गया है।
भारत में बेरोजगार कितने - सरकार को मालूम नहीं
ज्ञान पाठक - 2010-03-03 17:46
नई दिल्ली: भारत में इस समय बेरोजगारों की संख्या कितनी है यह केन्द्र की डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को नहीं मालूम। आज राज्य सभा में इसका खुलासा तब हुआ जब एक प्रश्न के लिखित उत्तर में श्रम और रोजगार राज्यमंत्री श्री हरीश रावत का जवाब आया। इससे यह भी साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यह संप्रग सरकार बेरोजगारों के प्रति कितनी लापरवाह है।