इसका कारण यह है कि बहुमत में होने के बावजूद केन्द्र की मनमोहन सिंह सरकार यूपीए के घटक दलों की ओर से भी समस्या का सामना कर सकती है। तृणमूल कांग्रेस और डीएमके की ओर से उन्हें निश्चिंत नहीं रहना चाहिए। अब तो दोनों पार्टियों ने एक दूसरे के साथ हाथ मिलाकर यूपीए के अन्दर दबाव बनाने का काम भी शुरू कर दिया है।

ममता बनर्जी भी तेल उत्पादों की कीमतों के बढ़ाए जाने का विरोध कर रही हैं। रेल बजट पेश करते समय सुश्री बनर्जी ने लोकप्रितावादी रुख अपनाया, क्योंकि उन्हें अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा के आम चुनाव का सामना करना है और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा भी करना है। लेकिन आम बजट के कारण बंगाल की जनता उनसे नाराज भी हो सकती है, इसलिए उन्हें भी विपक्ष की हां में हां मिलाते हुए अपनी ही सरकार द्वारा पेश किए गए आमबजट के खिलाफ बोलना पड़ रहा है।

ममता बनर्जी का संबंध कांग्रेस के साथ कभी ठंढा तो कभी गरम रहता है। खासकर अपने राज्य के कांग्रेसियों के साथ तो उनकी एकदम नहीे बन रही है। उन पर कांग्रेसी मनमानी करने का आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने उसके साथ मिलकर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उनके समर्थन से ही केन्द्र की सरकार चल रही है, इसलिए कांग्रेस को उन्हें ंबर्दाश्त करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ ममता को लगता है कि उनकी पार्टी कांग्रेस के बाद यूपीए का सबसे बड़ा धटक दल है, इसलिए उन्हें उचित महत्व मिलना ही चाहिए।

डीएमके भी अगले साल विधानसभा के आमचुनाव का सामना करेगा। उसकी एक और समस्या है। मुखमंत्री करुणानिघि जून में 85 साल के होने वाले हैं। उन्होंने राजनीति से हट जाने की इच्छा जाहिर की है, हालांकि उनके समर्थक उनकी उस घोषणा को पचा नही्र पाद रहे हैं और यही चाह रहे हैं कि वे पार्टी और सरकार का नेतृत्व करता रहें। उनकी घोषणा से उनके परिवार में भी हलचल है। जाहिर है, राजनीति से उनके हटने के बाद उनकी पार्टी में उथल पुथल होना स्वाभाविक है और उसका फायदा जयललिलता उठाना चाहेंगी। यही कारण है कि करुणानिधि नहीं चाहेगे कि उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी को केन्द्र की नीतियों के कारण राज्य में अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिले और उनके उत्तराधिकारी का काम कठिन हो जाय।

इसलिए केन्द्र सरकार को विपक्ष के अलावा अपने सहयोगी दलों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। बसपा, सपा और राजद भी केन्द्र की सहयोगी पार्टियां हैं। इन तीनों ने तो महंगाई के मसले पर केन्द्र सरकार के खिलाफ जंग का एलान भी कर दिया है। कांग्रेस के लिए तीन यादव नेताओं का एक साथ आना भी परेशानी कारण बन सकता है। लालू, मुलायम और शरद अब एक साथ अनेक मसलों पर खड़े दिखाई देते हैं। वे पहले भी एक साथ रह चुके हैं। इसलिए फिर से एक साथ आने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। महिला आरक्षण के मसले पर भी तीनों का रवैया एक सा है।

भारत के इतिहास में इस बार पहली बार विपक्ष ने वित्तमंत्री के भाषण के बीच में ही उठकर सदन से बहिर्गमन किया। वित्तमंत्री कहते रहे कि बजट पेश करना उनका सवैधानिक दायित्व है और विपक्ष को बजट भाषण का सम्मान करना चाहिए, लेकिन विपक्ष पर उनकी बातों का कोई असर नहीं पड़ा। मुख्य विपक्षी दल भाजपा 21 अप्रैल को महंगाई और केन्द्र सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल कर रही है। राज्यों मे तो उसका आंदोलन जारी है। वामपंथी पार्टियों ने भी 12 मार्च को विरोध करने का एलान किया है। विपक्ष में बढ़ रही एकता को सरकार द्वारा गंभीरता से लेना चाहिए और टकराव का रास्ता छोड़कर बीच का रास्ता निकालना चाहिए। (संवाद)