चिंता की बात यह है कि जहां शहरी व महानगरीय क्षेत्रों में ही करीब 80 फीसदी लोगों को इस वायरस और इससे होने वाली बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वहीं ग्रामीण परिवेश में तो लोग इससे पूरी तरह अनजान ही हैं, इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग द्वारा करीब एक माह बीत जाने के बाद भी ऐसा कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा, जिससे लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा की जा सके। पिछले साल जनवरी-फरवरी माह में भी गुजरात के अहमदाबाद में एक बुजुर्ग तथा दो गर्भवती महिलाओं में जीका के वायरस मिले थे, जिसके बाद उम्मीद जगी थी कि स्वास्थ्य मदों पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये खर्च करने वाली सरकारें कुछ ऐसे पुख्ता प्रबंध करेंगी, जिससे जीका से देश को मुक्ति मिलेगी किन्तु विड़म्बना ही है कि हर साल डेंगू, चिकनगुनिया, निपाह, जापानी इन्सेफेलाइटिस, फाइलेरिया, मलेरिया जैसी मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां देश की बड़ी आबादी को भयाक्रांत करती रही हैं किन्तु इनकी रोकथाम के लिए सरकारें ठोस कदम उठाने में विफल रही हैं।
दरअसल हमारा स्वास्थ्य तंत्र इतना लचर है कि मच्छरों के प्रकोप से पैदा होने वाली बीमारियों पर समय रहते काबू पाने में हम हमेशा नाकाम साबित होते रहे हैं। कभी बर्ड फ्लू का कहर सामने आता है तो कभी स्वाइन फ्लू, कभी इबोला का तो कभी मच्छर जनित किसी अन्य वायरस के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों का लेकिन इनसे निपटने के मामले में हमारा सरकारी तंत्र सदैव फिसड्डी साबित हुआ है। अगर बात जीका वायरस की करें तो करीब दो साल पहले ही केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इसका अलर्ट जारी कर दिया गया था किन्तु उस अलर्ट का क्या प्रभाव रहा, यह सभी के समक्ष है। लोगों को इस बीमारी के प्रति इस दौरान कितना जागरूक किया गया, यह इसी से स्पष्ट है कि अधिकांश लोग नहीं जानते कि जीका आखिर है क्या, इससे क्या बीमारियां पैदा होती हैं और उनके क्या लक्षण सामने आते हैं। देश में जब भी वायरस जनित कोई बीमारी कहर बरपाते हुए सामने आती है, तभी हमारे स्वास्थ्य तंत्र की कुम्भकर्णी नींद खुलती है।
जीका एक बेहद खतरनाक वायरस है, जो उसी एडीज मच्छर के काटने से फैलता है, जो डेंगू, चिकनगुनिया, निपाह, जापानी इन्सेफेलाइटिस, फाइलेरिया, मलेरिया इत्यादि बीमारियों का जनक है, यह मच्छर प्रायः दिन के समय सक्रिय रहता है। इस वायरस की शिकार अधिकांशतः गर्भवती महिलाएं ही बनती हैं। यह जन्म लेने वाले बच्चे के विकास पर बहुत दुष्प्रभाव डालता है, इससे पीड़ित महिलाओं के बच्चे अविकसित दिमाग के साथ पैदा होते हैं। करीब 70 से 80 फीसदी मामलों में जीका संक्रमित व्यक्ति में लक्षणों की पहचान नहीं हो पाती, इसलिए जीका वायरस से बचने के लिए सबसे बड़ा हथियार जागरूकता को ही माना गया है लेकिन राजस्थान में जिस प्रकार जीका का कहर सामने आ रहा है, उससे स्पष्ट है कि बारिश के बाद मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए सरकारी तंत्र ने लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए समुचित प्रबंध नहीं किए।
स्मरण रहे कि जीका वायरस इससे पहले कई देशों में दहशत फैला चुका है और अब भारत में इसकी दस्तक की अनदेखी नहीं की जा सकती। माना जाता है कि फिलहाल दुनियाभर के करीब 86 देशों में इस वायरस के लक्षण मौजूद हैं। 2007 में जीका वायरस का प्रकोप माइक्रोनेशिया में फैला था और मार्च 2015 में ब्राजील में भी बड़े पैमाने पर इसका प्रकोप देखा गया था, जहां से यह अमेरिका, अफ्रीका सहित दुनिया के कई अन्य हिस्सों में भी फैल गया था, जिसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जीका वायरस के प्रसार को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल घोषित कर दिया था। सबसे पहले यह वायरस 1947 में युगांडा के बंदरों में पाया गया था, जब पूर्व अफ्रीका में युगांडा के जंगलों में यह संक्रमण फैला था। मनुष्यों में सबसे पहले 1952 में युगांडा तथा तंजानिया में इसके लक्षण देखे गए थे, जिसके पश्चात् यह वायरस अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका तथा एशिया के कई हिस्सों में भी फैला था और 1960 से 1980 के दौरान हल्की बीमारी के साथ इसके कुछ दुर्लभ मामले भी सामने आए थे।
जीका वायरस खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इसके इंफैक्शन तथा उससे होने वाली बीमारियों का अभी तक कोई उपचार उपलब्ध नहीं है और कुछ मामलों में इससे लकवे के साथ मौत होने की संभावना भी रहती है। यह वायरस गर्भवती मां से बच्चे में तथा शारीरिक संबंधों से भी स्थानांतरित होते हैं। इससे प्रभावित लोगों को हल्का बुखार, आंखों में संक्रमण, सिरदर्द, मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द, त्वचा पर चकते इत्यादि लक्षण सामने आते हैं, जो प्रायः 2-5 दिन तक रहते हैं। हालांकि कुछ लोगों में कई दिनों तक कोई लक्षण सामने नहीं आते। जीका वायरस से गुलियन-बार सिंड्रोम नामक नर्वस सिस्टम की बीमारी भी हो जाती है और इस वायरस के संक्रमण से अस्थायी रूप से लकवा भी मार जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जीका वायरस वीर्य में पहुंच जाए तो यह करीब दो सप्ताह तक जीवित रह सकता है और यही कारण है कि जीका वायरस के संक्रमण से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को सुरक्षित यौन संबंध बनाने की सलाह दी जाती है और ऐसे क्षेत्रों में रक्तदान भी प्रतिबंधित किया जाता है।
जो उपाय डेंगू, चिकनगुनिया इत्यादि फैलाने वाले मच्छरों से बचने के लिए बताए जाते रहे हैं, वही उपाय जीका वायरस फैलाने वाले मच्छर से बचने के लिए भी किए जाते हैं, जैसे अपने आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना, कहीं भी पानी को ठहरने न देना, मच्छरदानी का प्रयोग, मच्छरों की अधिकता वाले क्षेत्रों में पूरे कपड़े पहनना, मच्छरनाशक चीजों का इस्तेमाल तथा बगैर जांच के रक्त शरीर में न चढ़वाना इत्यादि। जीका वायरस से संक्रमित होने पर दर्द तथा बुखार की सामान्य दवाएं दी जाती हैं किन्तु लक्षण प्रबल होने पर विशेषज्ञ से परामर्श करना अत्यावश्यक हो जाता है। हालांकि जीका वायरस पर नियंत्रण के लिए दुनियाभर में अभी तक वैक्सीन नहीं बनी है किन्तु फिलहाल अमेरिका के नेशनल इंस्टीच्यूट आॅफ हैल्थ द्वारा जीका वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो चुका है, जिसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि जीका प्रभावित लोगों का इलाज करने में इससे मदद मिलेगी। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    कहर बरपाता जीका वायरस
कैसे निपटें इसके प्रकोप से?
        
        
              योगेश कुमार गोयल                 -                          2018-10-20 12:01
                                                
            
                                            कुछ दिनों पहले पोलियो के विलुप्त हुए वायरस दोबारा मिलने के बाद देश में भय का माहौल पहले से ही व्याप्त है और अब राजस्थान में बेहद खतरनाक जीका वायरस के सैंकड़ों मामले सामने आने के बाद हड़कम्प मचा है। 25 सितम्बर को सबसे पहले जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में एक वृद्ध महिला में इस वायरस की पुष्टि हुई थी किन्तु देखते ही देखते प्रदेशभर में जीका से प्रभावित ऐसे लोगों की संख्या सौ का आंकड़ा भी पार कर गई है और अभी भी दुविधा यह है कि यह पता नहीं चल सका है कि राजस्थान में फैल रहे इस वायरस का स्रोत कौन है क्योंकि ऐसी आशंका जताई जा रही है कि उस व्यक्ति के जरिये अभी भी यह वायरस फैल रहा हो और राजस्थान के बाद देश के अन्य हिस्सों में इसके फैलने की संभावना जताई जा रही है।