राज्य सभा में इस विधेयक को तो पहले ही पेश किया जा चुका थाए लेकिन इस पर छिड़े विवाद के कारण यह विधेयक संसदीय स्थाई समिति को सुपूर्द कर दिया गया था। स्थाई समिति ने उसपर विचार कर अपनी अनुशंसा के साथ सरकार को वापस कर दिया और केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने उसे एक बार फिर मंजूर कर लिया है। अब सरकार उसे फिर राज्य सभा में पेश कर रही है और इसे वहां से पारित कराने की कोशिश भी होगी। पर सवाल उठता है कि क्या वह विधेयक पारित हो पाएगा?

चूंकि वह एक संविधान संशोधन विधेयक है, इसलिए उसे पारित होने के लिए उसे राज्य सभा में उपस्थित होकर मतदान कर रहे सांसदों के दो तिहाई का समर्थन मिलना चाहिए। 225 सांसदों वाली राज्य सभा में 167 सांसदों का समर्थन उस विधेयक को मिलता दिखाई देता हैए जो दो तिहाई से 4 अधिक है इस लिहाज से इसे राज्य सभा में पास हो जाना चाहिए। कांग्रेस और भाजपा ने तो व्हिप जारी कर अपने सांसदों को सोमवार को राज्य सभा में उपस्थित रहकर विधेयक का समर्थन करने के लिए कहा है। वाम मोर्चे की पार्टियां भी इस विधेयक का पुरजोर समर्थन करती रही है, इसलिए उसके सांसद भी राज्य सभा में उपस्थित रहेंगे। इसके अलावा कुछ छोटे छोटे दल भी इसका समर्थन कर रहे हैं। उनके सदस्यों की भूमिका इसे पाहरत कराने में महत्वपूर्ण होगी।

राज्य सभा में संख्या बल तो महिला आरक्षण के पक्ष में है, लेकिन इसके विरोधी इतना हल्ला हंगामा मचाते हैं कि सभापति को सदन की कार्रवाई ही स्थगित करनी पड़ती है। इस बार भी विरोघी अपनी उस रणनीति का इस्तेमाल करेंगे। पेश होने मे तो कोई समस्या नहीं आएगी, लेकिन पेश होने के बाद आगे की कार्रवाई क्या होती है, यह बहमत कुछ इस पर निर्भर करता है कि सरकार क्या चाहती है। अभी यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि सरकार इस विधेयक को कानून बना ही देना चाहती है। इसका कारण यह है कि इसका विरोध करते हुउ जो मुद्दे उटाए जाते हैं, उन मुद्दों से कांग्रेस भी घबराती है।

एक मुद्दा तो पिछड़े वर्गों की महिलाओं के आरक्षण का उठाया जाता है। लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यको की बात करते हैं। लालू और मुलायम की पार्टी पिछड़े और मुसलमानों के बीच अपना आधार खोती जा रही है। दोनो ंयादव नेता सिर्फ अपनी जाति के नेता बनकर ही रह गए हैं। मुसलमान उन्हें छोड़कर कांग्रेस की ओर मुखातिब हो रहे हैं। मुसलमानों के बीच भी प्रस्तावित महिला आरक्षण को लेकर विरोघ है। इसलिए वर्तमान रूप में यदि महिला आरक्षण विधेयक को पारित कर उसे कानून बना दिया जाता है तो दोनों यादव नेताओं की फीकी पड़ती राजनीति एक बार फिर चमक सकती है। भारतीय जनता पार्टी को तो मुयलमानों के मतो की कोई खास चिंता नहीं है, लेकिन कांग्रेस को तो उनके मतो की परवाह होगी ही। इसलिए देश की सबसे बड़ी पार्टी को इस मसले पर दुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

उसकी अस दुविधा के कारण दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता है कि वा महिला आरक्षण विधेयक को वास्तव में पारित करवाना ही चाहती है। लंकिन फिर भी उसने जब विधेयक को राज्य सभा में पेश करने का फैसला किया है, तो यह फैसला बेवजह नहीं हो सकता। एक बजह तो यह हो सकता है कि कांग्रेस इसके द्वारा विपक्ष में विभाजन पैदा करना चाहती है। बजट प्रस्तावों के द्वारा तेल उत्पादों की कीमतें बढ़ाने के कारण केन्द्र सरकार और कांग्रेस सम्मिलित विपक्ष का सामना रही है। ऐसा कई सालों के बाद हुआ है कि सारा विपक्ष एक साथ कांग्रेस के ख्लिाफ मह्रगाई के मसले पर आ खड़ा हुआ है। विपक्ष देश के कर्इ्र इलाको में महंगाई के मसले पर आंदोलन भी कर रहा है। 21 अप्रैल को भाजपा भारत व्यापी आंदोलन की घोषणा कर चुकी है, तो 12 मार्च को वामपंथी दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है। मायावती सभी विपक्षी पार्टियों सक केन्द्र सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की अपील कर रही है।

ऐसे माहौल में महिला आरक्षण विधेयक का एक फायदा तो कांग्रेस को यह मिलेगा कि इससे विपक्ष विभाजित हो जाएगा। सपा, बसपा, जद(यू) और राजद वर्तमान रूप में महिला आरक्षण विधेयक का घोर विरोधी है, जबकि भाजपा और वामपंथी दल इसके घोर समर्थक। जाहिर है महिला आरक्षण विधेयक पर विपक्ष बंटा हुआ दिखेगा, जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन में इस मसले पर अभूतपूर्व एकता है। एकता अभूतपूर्व इसलिए है कि मनमोहन सरकार के पिछले कार्यकाल में राष्ट्रीय जनता दल इसका विरोध करता था और वाजपेयी की सरकार में जनता दल(यू) इसका विरोधी था। अपने घ्टक के ही विरोधी होने के कारण वे दोनों सरकारे इस विधेयक पर आगे बढ़ नहीं पाती थी। लेकिन इस बार मनमोहन सिेह सरकार के सामने इस तरह की विवशता नहीं हैए उसे सिर्फ चुनावी नफा नुकसान देखना है और यह देखना है कि विधेसक को दोनों सदनों मे दो तिहाई सांसदों का समर्थन मिल पाता है या नहीं।

बहरहाल विपक्ष में फूट डालने और महंगाई के मसले को महिला आरक्षण के विवाद से ढकने में मदद तो मिल ही रही है। राज्य सभा में इसे पेश करने मात्र से केन्द्र सरकार का एक मकसद पूरा हो जाता है। भाजपा ने तो व्हिप जारी करके अपने सांसदों को राज्य सभा में उपस्थित रहकर विधेयक का समर्थन करने के लिए कह दिया है, लेकिन भाजपा में भी विनय कटियार जैसे नेता हैं, जो इसका विरोध करते है। इस विधेयक से मुख्य विपक्षी भाजपा के अंतर्विरोध भी सामने आ सकते हैं। यह भी कांग्रेस के पक्ष में ही जाएगा। और यदि भाजपा के कुछ सांसदों व कुछ अन्य सांसदों द्वारा पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर मतदान करने से यदि विधेयक पराजित भी हो जाता है, तो केन्द्र की सरकार की कोई किरकिरी नहीं होगी, क्योंकि वह इसके लिए आरक्षण समर्थक विपक्षी पार्टियों को जिम्मेदार ठहरा देगी।

यदि यह विधेयक राज्य सभा से पारित भी हो जाता है, तो फिर उसके बाद उसकी चुनौती लोकसभा से पारित होने ही रहेगी, जहां पास होने में उसके सामने सबसे ज्यादा समस्या आती है, क्योंकि इस विघेयक से लोकसभा के वर्तमान सांसद सीघे तौर पर प्रभावित होगे और उनकां अपने चुनावी क्षेत्र से फिर चुनाव लड़ना संदेहास्पद हो जाता है। जाहिर है, महिला आरक्षण विधेयक को अभी बहुत सी वाधाएं पार करनी होगी। (संवाद)