पिछले दो सालों में मध्यप्रदेश में हुए उपचुनावों में मिली सफलता के बाद कांग्रेस ने मध्यप्रदेश पर ध्यान देना शुरू किया था। मध्यप्रदेश के सभी दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को एक-दूसरे के काम में बिना हस्तक्षेप करते हुए अलग-अलग जिम्मेदारी दे दी। भले ही मीडिया रिपोटर््स में यह देखने को मिलता हो कि अभी भी नेताओं में एक-दूसरे को कमजोर करने की होड़ है, या फिर किसी नेता को हाशिये पर कर दिया गया है, लेकिन कांग्रेस अपनी बनाई हुई रणनीति पर ही चल रही है। प्रत्याशी चयन में संतुलन साधने के बाद कांग्रेस ने लगातार भाजपा पर तीखे प्रहार कर रही है और साथ-साथ ही विकास के एजेंडे को आगे रख रही है। नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता को लेकर लगातार किए जाने वाले सवालों में कोई भी बड़ा नेता उलझ नहीं रहा है। दिग्गज कांग्रेसी सत्यव्रत चतुर्वेदी के टिकट काटकर यह बताया गया कि टिकट पाने के लिए सिर्फ नेता पुत्र होना ही काफी नहीं है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को बुदनी से टिकट देकर कांग्रेस ने चुनाव के प्रति अपनी गंभीरता को दर्शाया। कांग्रेस ने घोषणा-पत्र को वचन-पत्र नाम देकर घोषणाओं को नए अंदाज में पेश किया। कांग्रेस द्वारा जारी आरोप-पत्र में रिसर्च की भारी कमी दिखती है, लेकिन अपने भाषणों में कांग्रेसी नेता बड़े ही आक्रामक तरीके से भाजपा सरकार को घेर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मीडिया में भले ही हाशिये पर दिख रहे हैं, लेकिन वे मुख्य रणनीतिकारों में है, जिनकी बातों को केन्द्रीय नेतृत्व लगातार तरजीह दे रहा है।

मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा कमलनाथ इस बात से वाकिफ है कि भाजपा की तरह कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा जमीनी स्तर पर मजबूत नहीं है, इसलिए वे महत्वपूर्ण चुनावी घोषणाओं की रणनीति पर काम कर रहे हैं। घोषणा-पत्र जारी होने के बाद भी कई ऐसी घोषणाएं कर रहे हैं, जिसकी जरूरत आम लोगों की है। जैसे कि उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार आने पर पुलिस वालों को साप्ताहिक छुट्टी दी जाएगी और तनाव कम करने के उपाया किए जाएंगे। इसी तरह उन्होंने स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्ववपूर्ण घोषणा की कि सभी मेडिकल काॅलेज में निजी अस्पतालों की तरह हर तरह के आॅपरेशन की सुविधा होगी, जिससे कि लोगों का मेडिकल खर्च न हो। मध्यप्रदेश में दूसरा विकल्प बनने की कवायद कर रही आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में कई महत्वपूर्ण घोषणााओं को शामिल किया है, जिनमें उक्त घोषणाएं भी हैं। संभवतः कमलनाथ अन्य पार्टियों की बेहतर घोषणाओं को भी अपने भाषणों में शामिल कर बेहतर विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस के ‘‘वक्त है बदलाव का’’ नारे के विरूद्ध भाजपा ने ‘‘माफ करो महराज, हमारे नेता शिवराज’’ नारा देकर कांग्रेस को घेरने की पुरजोर कोशिश की है। लेकिन यह नारा जुबां पर चढ़ जाने के बाद भी भाजपा चुनावी सफलता को लेकर आशंकित है। पहले उसने सारा ध्यान कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को घेरने में लगाया। काग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ अन्य केन्द्रीय नेता घेर रहे हैं। भाजपा ने अपनी जमीनी संगठनात्मक ढांचे को सक्रिय कर दिया है, उदासीन बैठे संघ कार्यकर्ताओं को भी सक्रिय कर दिया है, लेकिन इसके बावजूद भाजपा अपने चुनाव प्रचार और मीडिया अभियानों से आश्वस्त नहीं है। मौजूदा विधायकों के खिलाफ विरोध की आ रही लगातार खबरें उसके खिलाफ जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की पत्नी और बेटे के विरोध की खबरों ने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया है।

अब भाजपा अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पर तीखे प्रहार करने पर जोर दे रही है। इसके साथ ही वह आखिरी दौर में इमोशनल कार्ड चलकर गुजरात की तरह मध्यप्रदेश में भी अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रही है। अब प्रधानमंत्री मोदी अपनी रैली में कांग्रेस नेता द्वारा मां के अपमान का मुद्दा उठा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि कांग्रेसी मोदी का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उनकी मां को गाली दे रहे हैं। इसी तरह वे यह भी कह रहे हैं कि वे शिवराज मामा के विरोध करने वाले अपने मामा गैस कांड के आरोपी एंडरसन और बोफोर्स कांड के आरोपी क्वात्रोची को क्यों नहीं याद करते। भाजपा की कोशिश है कि इस बहाने चुनाव के आखिरी चरण को इमोशनल इफेक्ट दे दिया जाए, क्योंकि गुजरात में ‘‘नीच’’ शब्द ने भाजपा को लाभ पहुंचाया था। यद्यपि इमोशन को भुनाने में कांग्रेस पीछे है। एक सभा में मोदी ने राहुल गांधी द्वारा नोटबंदी को लेकर उठाए जा रहे सवालों पर कहा कि जवान बेटे के मर जाने पर बूढ़ा बाप भी एक साल में संभल जाता है, लेकिन कांग्रेस आज तक संभल नहीं पाई। मोदी के इस वक्तव्य को कांग्रेसियों ने मुद्दा नहीं बनाया।

भाजपा के इमोशनल कार्ड और कांग्रेस की रणनीति के बीच चुनावी मुकाबला महत्वपूर्ण हो चला है। विकास, बेहतर उम्मीदवार, इमोशनल ड्रामे, सामाजिक समस्याओं, चुनावी घोषणाओं और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के बीच मतदाता का रुख क्या होगा, इसका ठीकठाक अंदाजा दोनों प्रमुख दलों को अभी भी नहीे है। और इसलिए वे आखिरी क्षणों में भी अपनी रणनीतियों में फेरबदल करते हुए दिखाई दे रहे हैं। (संवाद)