चाड के परिवार वाले उत्तरी सेंटिनेल द्वीप के उन आदि मानवों को माफ करें या न करें, यह उनका मामला है, लेकिन भारतीय कानून के तहत भी उन आदिमानवों को हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। वे भारत के नागरिक हैं, लेकिन अपने टापू पर वे संप्रभु हैं और वहां उनका अपना कानून चलता है। उनके अपने कानून के अनुसार यदि कोई दो पैर वाला प्राणी भी उनके क्षेत्र में पहुंचता है, तो उनका स्वागत वे उनकी मौत से ही करते हैं।

यह कोई नई बात नहीं है। वे करीब 55 हजार साल से वहां रह रहे हैं और वे अभी भी उसी समय की जिंदगी बिता रहे हैं। अतीत में भी उस द्वीप के पास के अन्य द्वीपों पर रहने वाले लोगों से उनका सामना हुआ होगा, लेकिन वे किसी के साथ मिलकर रहने को तैयार नहीं हैं। वे न तो किसी बाहरी से मिलना चाहते हैं और न ही किसी से सीखना चाहते हैं। उनके बारे मे बहुत कम जानकारी उपलब्घ है और दावे से यह नहीं कहा जा सकता कि वे किस प्रकार का जीवन बसर करते हैं।

उनकी जो तस्वीरें हेलिकाप्टर, ड्रोन या थोड़ी दूर से नावों या जहाजों से ली गई हैं, उनसे तो यही पता चलता है कि वे कपड़े तक नहीं पहनते हैं। पुरूष अपने पेट पर कुछ बांधते हैं और वे अपने जननांगों को नहीं ढकते। महिलाएं अपनी कमर में कुछ बांधी रहती हैं, जिससे उसके जननांग ढके रहते हैं। वे लोग गले में मालाएं पहनते हैं। शायद यह उनका सिंगार है। कुछ लोग सिर पर कोई उजली पदार्थ भी लगाए दिखते हैं। शायद यह भी उनका सिंगार है। उनके हाथों मे बड़े बड़े धनुष दिखते हैं। उनके पास नुकीले धातु के बाण होते हैं, जो यदि किसी को लग जाय, तो वह जानलेवा हो सकता है। उनके पास नुकीले भाले भी होते हैं।

वे मछली पकड़ते हैं। जाहिर है, इसका इस्तेमाल वे भोजन के लिए करते होंगे, लेकिन वे जानवर मारकर खाते हैं, इसमे शक है। इसका कारण है कि एक बार एक दल उनके टापू पर एक सुअर, एक गुड़िया और अल्मुनियम के कुछ बर्तन छोड़ आए थे और दूर से निरीक्षण करने पर पाया कि उन्होंने सुअर और गुड़िया को जमीन में गाड़ दिया और बर्तन लेकर चले गए। यानी उन्होंने बर्तन की उपयोगिता समझी और उन्हें अपने पास रख लिया, लेकिन सुअर और गुड़िया उन्हें खतरनाक लगे और उन्हें जमीन में गाड़ दिया। वे आदमखोर भी नहीं हैं, क्योंकि ताजा घटना में जिस चाउ की उन्होंने हत्या की, उसका शव रेत में गाड़ते हुए मछुआरों ने दखा था।

वे अपने अलावा किसी और से क्यों नहीं मिलना चाहते, इसके बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। एक अनुमान तो यही होगा कि बाहर से आने वाले लोगों को वे अपने लिए खतरा मानते हों। हो सकता है कि सुदूर अतीत मे कभी बाहरी लोगों से उनका खूनी भिड़त हुआ होगा, जिसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को समझाया गया होगा कि बाहर के किसी लोगों से न तो कोई संबंध रखना है और न ही किसी बाहरी को टापू में आने देना है। उन्होंने अबतक न तो चक्के का आविष्कार किया है और न ही किसी जानवर का वाहन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने नौका तक का निर्माण नहीं किया है, हालांकि तस्वीर में किसी बड़े पेड़ के धड़ को पानी में डालकर उसी को नौका के रूप में इस्तेमाल करते देखे जा सकते हैं।

वर्तमान सभ्यता की रोशनी से 55 हजार साल दूर उस आदिवासी समुदाय को भारत सरकार ने संरक्षित कर रखा है और उस द्वीप में किसी के भी प्रवेश पर मनाही है। वहां लोगों के जाने से जान का खतरा तो है ही, वहां के आदिवासी समुदाय के समाप्त हो जाने का भी खतरा है, क्योंकि सभ्य समाज की बीमारियों से वे दूर रहे हैं और इन बीमारियों की अंटीबाडीज उनके शरीर में नहीं है। यदि एक साधारण फ्लू या सर्दी-जुकाम भी उन्हें लग गई, तो फिर उनकी मौत हो सकती है। उनकी क्या उनके पूरे समुदाय की मौत हो सकती है।

एक बार 18वीं सद में अंग्रेज वहां से 6 लोगों को पकड़कर ले आए थे। आते ही सभी बीमार पड़ गए और उनमें से दो व्यस्क मर भी गए। फिर बचे चार बच्चों को शीघ्र उसी टापू पर वापस छोड़ दिया गया, क्योंकि अंग्रेजों को डर लगा कि कहीं वे भी मर नहीं जाएं। उसके बाद अंग्रेजों ने उस टापू उसके लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया। उसके बाद भी दुर्घटनावश एकाध बार उनका सामना सभ्य समाज के लोगों के साथ हुआ है और हमेशा उन्होंने तीर और भाले से ही सभ्य समाज का स्वागत किया है। टापू के ऊपर से हेलिकाॅप्टर उड़ाए जाते हैं और उनपर भी उनकी तरफ से बाणों की वर्षा कर दी जाती है। कोई जहाज या नाव उनके द्वीप के पास गुजरता है, तो उस पर भी तीर बरसते हैं।

यही कारण है कि वहां जाना निषेध है। पर उस प्रतिबंध को तोड़कर ईसाई मिशनरी चाऊ वहां अपने धर्म का प्रचार करने गए था। उसे रोकना प्रशासन की जिम्मेदारी थी, लेकिन प्रशासन इसमे विफल रहा। चाउ तो मरा ही, लेकिन उन आदिवासियों को भी हो सकता है, उसने संकट में डाल दिया हो। वह तीन दिनों तक वहां घूमता रहा। उसके संक्रमण से यदि वहां के निवासी जिसकी संख्या कम से कम 50 या ज्यादा से ज्यादा 400 है, यदि ग्रस्त हुए, तो उस समुदाय का ही सफाया हो जाएगा। लिहाजा इस चूक की जांच की जानी चाहिए किस प्रशासनिक लापरवाही के कारण चाउ वहां तक पहुंचने में सफल हुआ। (संवाद)