यह सच है कि बुलंदशहर के जिस थाने में हिंसा और आगजनी हुई, वह इज्तेमा के स्थल से करीब 45 से 50 किलामीटर दूर था। लेकिन लाखों लोगों का जब कोई जमावड़ा होता है, तो उसके बाद लोग वहां से वापस लौटते हैं और आसपास की सड़को पर उनकी उपस्थिति बढ़ जाती है। बुलंदशहर के जिस स्थल पर सड़क को जाम किया गया था, वहां से भी मुस्लिमों की भारी संख्या गुजरती, क्योंकि घटना की पूर्व संध्या को ही वह इज्तेमा समाप्त हुआ था और लोग अपने अपने गांवों और शहरों की ओर वापस लौट रहे थे। हफ्रिगटोन पोस्ट की एक खबर के अनुसार बुलंदशहर के घटना स्थल के पास से कुछ मुस्लिम जाम के दौरान गुजर भी रहे थे और भीड़ उनको अपना शिकार बनाती, उसके पहले ही थानेदार सुबोध कुमार सिह ने भीड़ पर लाठी चार्ज करवा दिया और वहां उसे उसे हटाने लगे।
जाहिर है, भीड़ अपने मंसूबे मे ंकामयाब नहीं हुई और उसने पुलिस पर ही हमला बोल दिया और लोगों की भारी संख्या के दबाव में पुलिस को पीछे हटना पड़ा और भीड़ ने पुलिस थानेदार को ही मार डाला। इस तरह थानेदार तो शहीद हो गए, लेकिन उन्होंने प्रदेश को एक भयानक खून खराबे से बचा लिया। उसका कारण यह है कि यदि घटनास्थल पर कुछ अघटित घट जाता, तो वह वहीं तक सीमित नहीं रहता। दंगे दोतरफा होते और उसकी आग चारों तरफ फैलती। दोनों पक्षों के लोग मारे जाते और फिर उत्तेजना एक स्थान तक ही सीमित नहीं रह जाती। इज्तेमा से वापस हो रहे मुस्लिम समुदाय के लोग दंगाइयों का आसान निशाना बन जाते। चूंकि उस मुस्लिम महाकुंभ में भाग लेने वाले लोग पूरे देश भी में आए थे, इसलिए उन पर हमले के बाद आग पूरे देश मे फैलती और शायद हम आजादी के बाद से सबसे बड़े सांप्रदायिक दंगे के साक्षी होते।
आखिर इतने पैमाने पर दंगा फैलाने की साजिश किसकी हो सकती है? इस सवाल का सीधा जवाब देना मुश्किल है, क्योंकि देश के दुश्मन कोई एक नहीं हैं। अनेक निहित स्वार्थ दंगा करवाकर अपने स्वार्थ की रोटियों सेकना चाहते हैं। जब खुद पुलिस प्रमुख ने इसे एक बड़ी साजिश का हिस्सा माना है, तो उम्मीद करनी चाहिए कि वे साजिशकत्र्ताओं को बेनकाब भी करेंगे, लेकिन हम सिर्फ उम्मीद ही कर सकते हैं, यकीन नहीं, क्योंकि जांच एजेंसियां अपनी विश्वसनीयता खो चकी हैं।
पुलिस प्रमुख का साजिश वाले बयान की सत्यता संदेह से परे है। इसका कारण यह है कि गौ या गौवंश की हत्या जिस गांव में कथित तौर पर हुई, वहां और उसके आसपास से कोई गाय या बैल गायब नहीं पाया गया। जाहिर है, हत्या के अवशेष बाहर से लाकर वहां रखे गए थे। ट्रैक्टर में जिन लोगों ने अवशेष देखे थे, उनका कहना है कि वे एक दर्जन जानवर की हत्या के बाद के बचे अवशेष थे। मतलब कि यदि वे हत्याएं वहीं होती तो लगभग एक दर्जन गाय या बैल उस इलाके से गायब होते, तो लेकिन एक भी गाय या बैल वहां से गायब नहीं है।
एक पुलिस अधिकारी, जिसने खेतों मे जाकर खुद वहां का हाल देखा, उसका कहना है कि जानवर कुछ दिन पहले के कटे हुए थे। यानी घटना वाली रात को कुछ लोगों ने कहीं और से लाकर गन्ने के एक खेत में वहां मवेशियों के कटे हिस्से रख दिए थे और वह रखा भी था गन्ने में लटकाकर, ताकि वे बहुत दूर से ही दिखाई दें। जिस खेत में वह रखे गए थे, उसके मालिक को किसी ने सुबह 8 बजे उसकी सूचना दी। उसे वह सूचना खेतों में काम करने वाले मजदूरों से मिली थी। सूचना पाकर वह वहां से अपने खेत की ओर गया और धीरे धीरे गांव के अन्य लोग भी वहां इकट्ठा होने लगे। फिर पुलिस को बताया गया।
थानेदार हत्या के मुख्य अभियुक्त योगेश राज ने दाखिल किए गए अपने एफआइआर में दावा किया है कि उसने वहां उन मवेशियों की हत्या होते देखा, लेकिन उसकी बहन ने एक पत्रकार को बताया कि उसे साढ़े 8 बजे किसी ने फोनकर बताया था महाव नाम के गांव में गौवंश की हत्या हुई है और उसके बाद ही वह वहां से घटनास्थल पर पहुंचा। योगेश राज ने मवेशी हत्या के लिए अपने गांव के छह मुस्लिम नाम एफआइआर में दर्ज करवा दिए, जबकि दोनों गांवों का फासला 6 किलोमीटर का है और उन छह नाम में दो नाम तो 11 और 12 साल के दो बच्चे का है। जाहिर है राज द्वारा लिखाया गया एफआइआर फर्जी है। उसमें जो चार अन्य नाम दिए गए हैं, उनमें से कुछ नाम वाले लोग उसके गांव में हैं ही नहीं।
जाहिर है, मवेशियों को कहीं और मारा गया था और उस गांव के खेत में उन्हें लटका दिया गया था। योगेश राज जैसे लोग मात्र कठपुतली बने हुए थे। पर सवाल उठता है कि कठपुतलियों की डोर किसके हाथ मंे थी? यह पता लगाना योगी सरकार और उनकी पुलिस का काम है। क्या वे इस खूनी साजिश का पर्दाफाश कर पाएंगी? वैसे देश को उस शहीद थानेदार का एहसानमंद होना चाहिए कि अपनी जान गंवाकर भी उसने देश में खून की नदियां बहने से रोक दिया। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में थी भारी दंगे की साजिश
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-12-06 10:19
उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने भी यह बता दिया है कि बुलंदशहर में गोवंश की हत्या का मामला एक बड़ी सजिश का हिस्सा था और वह कानून-व्यवस्था बिगड़ने का कोई साधारण मामला नहीं था। पुलिस प्रमुख के उस बयान के बाद अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि कुछ देश और समाज विरोधी तत्व भारी पैमाने पर दंगा करवाना चाहते थे और उसके लिए ही गौहत्या का ताना बाना बुना गया था। यह तो स्थानीय पुलिस और उसके प्रमुख शहीद सुबोध कुमार सिंह की दुरदर्शिता थी कि उत्तर प्रदेश एक भारी खून खराबे से बच गया। वह खून खराबा आजाद भारत का सबसे बड़ा खून खराबा भी हो सकता था, क्योंकि बुलंदशहर जिले के ही एक छोर पर तीन दिनों का मुस्लिम इज्तेमा संपन्न हुआ था, जिसमें कम से कम 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था, वैसे उसमें हिस्सा लेने वालों का एक अनुमान 50 लाख भी है।