मायावती ने स्पष्ट रूप से कहा कि कांग्रेस को उनका समर्थन भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए है।

यह उल्लेखनीय होगा कि बीएसपी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी ताकत बढ़ा दी है। तीन राज्यों में कुल उसके कुल 10 विधायकों की जीत हुई है।

2013 में इन राज्यों में बसपा के केवल आठ विधायक थे। छत्तीसगढ़ में बसपा ने दो विधायक जीते, अजीत जोगी की पार्टी के साथ संयुक्त रूप इस बार लड़ने वाली बसपा के 2013 में केवल एक विधायक था। राजस्थान में बीएसपी ने 2013 में तीन सीटें जीती थीं। इस बार उसके छह विधायकों जीते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में 2013 में उसके चार उम्मीदवार जीते थे, लेकिन इस बार मात्र दो ही जीते हैं। जाहिर है इस बार मध्यप्रदेश में उसे दो सीटों का नुकसान हुआ है।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश ने भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को अपने पार्टी विधायक के समर्थन की घोषणा की है। सपा मध्यप्रदेश में केवल एक सीट जीत सकी है, जबकि पार्टी 2013 में कुल 3.7 प्रतिशत मतों के साथ सात सीटों पर जीत दर्ज की थी।

राजस्थान और मध्यप्रदेश में बीएसपी और एसपी ने कांग्रेस का समर्थन किया। इससे यह स्पष्ट है कि दोनों पक्ष यूपी में गठबंधन के बारे में अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करेंगे। इससे पहले, दोनों पक्षों ने इंप्रेशन दिया था कि वे केवल चैधरी अजीत सिंह के आरएलडी को समायोजित करेंगे।

चूंकि मायावती कांग्रेस की आलोचना करती थीं, इसलिए अखिलेश यादव के पास उनकी हां में हां मिलाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था और उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ भी बोलना शुरू कर दिया था। मायावती ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह कांग्रेस के लिए कोई सीट छोड़ने को तैयार नहीं थीं और लोकसभा चुनावों के लिए आरएलडी और अन्य छोटे समूहों को समायोजित करने के लिए समाजवादी पार्टी से कह रही थी।

यह उल्लेख किया जा सकता है कि एसपी और बीएसपी द्वारा तैयार फाॅर्मूले के अनुसार कांग्रेस के लिए केवल छह सीटों को छोड़ दिया जाना था। इनमें रायबरेली में सोनिया गांधी और अमेठी में राहुल गांधी द्वारा जीती गई दो सीटें शामिल थीं, जबकि चार वे सीटें थीं, जहां पर पार्टी दूसरे स्थान पर आई थीं।

दोनों पक्षों को अतीत का कड़वा अनुभव था जब 2017 के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के हाथों उन्हें पिटना पड़ा। राहुल और अखिलेश ने तब हाथ मिलाए थे, पर दोनों की सीटों की संख्या काफी गिर गई और मत प्रतिशत में भी भारी गिरावट देखी गई थी।

तीन राज्यों में सफलता पाने के बाद कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है। अब वह उत्तर प्रदेश में सीट साझा करने के लिए फिर से नये सिरे से बातचीत करने को आ सकती है और सपा व बसपा के लिए अब कांग्रेस की उपेक्षा करना आसान नहीं होगा।

शिवपाल यादव का प्रगतिशील समाजवादी मोर्चा, राजा भैया की जनसत्ता पार्टी सुहलदेव समाजवादी पार्टी और पीस पार्टी भ्ज्ञी अब भावी गठबंधन को प्रभावित कर सकती हैं। इनके अलावा एनसीपी और वामपंथी पार्टियों की भी कुछ न कुछ भूमिका जरूर होगी। (संवाद)